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| |रचनाकार=तुलसीदास | | |रचनाकार=तुलसीदास |
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| + | |संग्रह=विनयावली / तुलसीदास |
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− | <poem>
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− | '''पद 91 से 100 तक'''
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− | (91)
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− | नचत ही निसि-दिवस मर्यो।
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− | तब ही ते न भयो हरि थिर जबतें जिव नाम धर्यो।।
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− | बहु बासना बिबिध कुचुकि भूषन लोभादि भर्यो।
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− | चय अरू अचर गगन जल थल मे, कौन न स्वाँग कर्यो।
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− | देव-दनुज, मुनि,नाग, मनुज नहिं जाँचत कोउ हर्यो।।
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− | थके नयन, पद, पानि, सुमति, बल, संग सकल बिछुर्यो।
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− | अब रघुनाथ सरन आयो, भव-भय बिकल डर्यो।।
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− | जेहि गुनतें बस होहु रीझि करि, सो मोहि सब बिसर्यो।
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− | तुलसिदास निज भवन-द्वार प्रभु दीजै रहन पर्यो।।
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− | (99)
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− | श्री बिरद गरीब निवाज रामको।
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− | गावत बेद-पुरान, संभु-सुक, प्रगट प्रभाउ नामको।
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− | ध्रुव, प्रह्लाद, विभीषन, कपिपति, जड़ पतंग,पांडव, सुदामको।
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− | लोक सुजस परलोक सुगति, इन्हमें को है राम कामको।।
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− | गनिका, कोल, किरात, आबिकब इन्हते अधिक बाम को।
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− | बाजिमेध कब कियो अजामिल, गज गायो कब सामको।
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− | छली, मलीन, हीन सब ही अँग, तुलसी सो छीन छामको।
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− | नाम-नरेस-प्रताप प्रबल जग, जुग-जुग चालत चामको।।
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