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| |रचनाकार=तुलसीदास | | |रचनाकार=तुलसीदास |
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| + | |संग्रह=विनयावली / तुलसीदास |
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− | [[Category:लम्बी रचना]] | + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 211 से 220 तक / पृष्ठ 1]] |
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| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 211 से 220 तक / पृष्ठ 4]] |
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| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 211 से 220 तक / पृष्ठ 5]] |
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− | <poem>
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− | '''पद 211 से 220 तक'''
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− | (215)
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− | श्री रघुबीरकी यह बानि।
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− | नीचहू सों करत नेह सुप्रीति मन अनुमानि।।
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− | परम अधम निषाद पाँवर, कौन ताकी कानि?
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− | लियो सो उर लाइ सुत ज्यों प्रेमको पहिचानि।।
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− | गीध कौन दयालु, जो बिधि रच्यो हिंसा सानि?
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− | जनक ज्यों रघुनाथ ताकहँ दिया ेजल निज पानि।।
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− | प्रकृति-मलिन कुजाति सबरी सकल अवगुन-खानि।
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− | खात ताके दिये फल अति रूचि बखानि।।
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− | रजनिचर अरू रिपु बिभीषन सरन आयो जानि।
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− | भरत ज्यों उठि ताहि भेंटत देह-दसा भुलानि।।
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− | कौन सुभगा सुसील बानर, पूजे भवन बपने आनि।।
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− | राम सहज कृपालु कोमल दीनहित दिनदानि।
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− | भजहि ऐसे प्रभुहि तुलसिदास कुटिल कपट न ठानि।।
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