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* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 61 से 70 तक / पृष्ठ 1]]
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<poem>
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'''पद 61 से 70 तक'''
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(64)
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बंदौ रधुपति करूना-निधान।
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जाते छूटै भव-भेद-ग्यान।।
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रघुवंश-कुमुद-सुखप्रद निसेस।
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सेवत पद-पाथोज-भृंग।
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लावन्य बपुष अगनित अनंग।।
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अति प्रबल मोह-तम-मारतंड।
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अग्यान-गहन-पावक प्रचंड़।।
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अभिमान-सिंधु-कुंभज उदार।
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सुररंजन, भंजन भूमिभार।।
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रागासि-सर्पगन-पन्नगारि।
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कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारि।।
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भव-जलधि-पोत चरनारबिंद।
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जानकी-रवन आनंद-कंद।।
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हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल।
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निष्काम कामधुक गो दयाल।।
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त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम।
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कह तुलसिदास बिश्राम-धाम।।
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(65)
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जय राम राम रमु, राम राम रटु, राम राम जपु जीहा।
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रामनाम-नवनेह-मेहको, मनं हठि होहि पपीहा।।
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सब साधन-फल कूप-सरित-सर, सागर-सलिल-निरासा।
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रामनाम-रति-स्वाति-सुधा-सुभ-सीकर प्रेमपियासा।।
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गरजि,तरजि, पाषाण बरषि पवि, प्रीति परखि जिय जानै।
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अधिक अधिक अनुराग उमंग उर, पर परमिति पहिचानै।।
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रामनाम-गति, रामनाम-मति, राम-नाम अनुरागी।
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ह्वै गये, हैं जे होहिंगे, तेइ त्रिभुवन गनियत बड़भागी।।
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एक अंग मग अगमु गवन कर, बिलमु न छिन छिन छाहैं।
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तुलसी हित अपनो अपनी दिसि, निरूपधि नेम निबाहै।।
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(66)
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राम जपु, राम जपु, राम जपु, बावरे।
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घोर भव-नीर-निधि नाम निज नाव रे।।
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एक ही साधन सब रिद्वि -सिद्वि साधि रे।
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ग्रसे कलि-रोग जोग -संजम-समाधि रे।।
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भलेा जो है, पोच जो है, दहिनो जो, बाम रे।
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राम-नाम ही सों  अंत सब ही को काम रे।।
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जग नभ-बाटिका रही है फलि फूलि रे।
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धुंवाँ कैसे धौरहर देखि तू न भूलि रे।।
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राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे।
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तुलसी परोसो त्यागि माँगै कूर कौन रे।।
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20:17, 16 जून 2012 के समय का अवतरण