|
|
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 2: |
पंक्ति 2: |
| {{KKRachna | | {{KKRachna |
| |रचनाकार=तुलसीदास | | |रचनाकार=तुलसीदास |
− | }}
| + | |संग्रह=विनयावली / तुलसीदास |
− | {{KKCatKavita}}
| + | }} |
− | [[Category:लम्बी रचना]] | + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 251 से 260 तक / पृष्ठ 1]] |
− | {{KKPageNavigation
| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 251 से 260 तक / पृष्ठ 2]] |
− | |पीछे=विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 25
| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 251 से 260 तक / पृष्ठ 3]] |
− | |आगे=विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 27
| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 251 से 260 तक / पृष्ठ 4]] |
− | |सारणी=विनयावली() / तुलसीदास
| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 251 से 260 तक / पृष्ठ 5]] |
− | }}
| + | |
− | <poem>
| + | |
− | '''पद 251 से 260 तक'''
| + | |
− | | + | |
− | (251)
| + | |
− | श्री राम! रावरो सुभाउ, गुन सील महिमा प्रभाउ,
| + | |
− | जान्यो हर, हनुमान, लखन, भरत।
| + | |
− | | + | |
− | जिन्हके हिये-सुथरू राम-प्रेम-सुरतरू,
| + | |
− | लसत सरस सुख फूलत फरत।।
| + | |
− | | + | |
− | आप माने स्वामी कै सखा सुभाइ भाइ,
| + | |
− | पति, ते सनेेह-सावधान रहत डरत।
| + | |
− | | + | |
− | साहिब-सेवक-रीति, प्रीति-परिमिति,
| + | |
− | नीति, नेमको निबाह एक टेक न टरत।।
| + | |
− | | + | |
− | सुक-सनकादि, प्रहलाद-नारदादि कहैं,
| + | |
− | रामकी भगति बड़ी बिरति-निरत।
| + | |
− | | + | |
− | जाने बिनु भगति न, जानिबो तिहारे हाथ,
| + | |
− | समुझि सयाने नाथ! पगनि परत। ।
| + | |
− | | + | |
− | छ-मत बिमत, न पुरान मत, एक मत,
| + | |
− | नेति-नेति-नेति नित निगम करत।
| + | |
− | | + | |
− | औरनिकी कहा चली? एकै बात भलै भली,
| + | |
− | राम-नाम लिये तुलसी हू से तरत।।
| + | |
− | | + | |
− | (253)
| + | |
− | श्री राम ! राखिये सरन, राखि आये सब दिन।
| + | |
− | | + | |
− | बिदित त्रिलोक तिहुँ काल न दयालु दूजो,
| + | |
− | आरत-प्रनत -पाल को है प्रभु बिन।।
| + | |
− | | + | |
− | लाले पाले, पोषे तोषे आलसी-अभागी -अघी,
| + | |
− | नाथ! पै अनाथनिसों भये न उरिन।
| + | |
− | | + | |
− | स्वामी समरथ ऐसो, हौं होति हिये घनी घिन।।
| + | |
− | खीझि-रीझि , बिहँसि-अनख, क्यों हूँ एक बार।
| + | |
− | | + | |
− | ‘तुलसी तू मेरो’ , बलि, कहियत किन?
| + | |
− | जाहिं सूल निरमूल, होहिं सुख अनुकूल,
| + | |
− | महाराज राम! रावरी सौं, तेहि छिन।।
| + | |
− | | + | |
− | (254)
| + | |
− | श्री राम! रावरो नाम मेरो मातु-पितु है।
| + | |
− | | + | |
− | सुजन-सनेही, गुरू-साहिब, सखा-सुहृदय,
| + | |
− | राम-नाम प्रेम -पन अबिचल बितु हैं। ।
| + | |
− | | + | |
− | सतकोटि चरित अपार दधिनिधि मथि,
| + | |
− | लियो काढ़ि वामदेव नाम-घृतु है।
| + | |
− | | + | |
− | नामको भरोसो-बल चारिहू फलको फल,
| + | |
− | सुमिरिये छाड़ि छल, भलो कृतु है। ।
| + | |
− | | + | |
− | स्वारथ-साधक, परमारथ-दायक नाम,
| + | |
− | राम-नाम सारिखेा न और हितु है,
| + | |
− | | + | |
− | तुलसी सुभाव कही, साँचिये परैगी सही,
| + | |
− | सीतानाथ-नाम नित चितहूको चितु है।।
| + | |
− | | + | |
− | </poem>
| + | |