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'''(लंकादहन -2)'''
बसन बटोरि बोरि-बोरि तेल तमीचर,
खोरि-खोरि धाइ आइ बाँधत लँगूर हैं।
तैसो कपि कौतुकी डेरात ढीले गात कै-कैदेखि ज्वालजालु, हाहाकारू दसकंघ सुनि,
लातके अधात सहैकह्यो धरो धरो, जीमें कहै, कूर हैं।।धाए बीर बलवान हैं।
बाल किलकारी कैलिएँ सूल-कैसेल, तारी दैपास-दै गारी देतपरिध, प्रचंड दंड, भोजन सनीर, धीर धरें धनु -बान हैं। ‘तुलसी ’ समिध सौंज, लंक जग्यकुंडु लखि, जातुधान पुंगीफल जव तिल धान है।
पाछें लागेस्त्रुवा सो लँगूल , बलमूल प्रतिकूल हबि, बाजत निसान ढोल तूर हैं।।
बालधी बढ़न लागी, ठौर -ठौर दीन्हीं आगी, स्वाहा महा हाँकि हाँकि हुनैं हनुमान हैं।7।
बिंधकी दवारि कैधौं कोटिसत सूर हैं।3।
गाज्यो कपि गाज ज्यों , बिराज्यो ज्वालजालजुत,
लाइ-लाइ आगि भागे बालजाल जहाँ तहाँभाजे बीर धीर, अकुलाइ उठ्यो रावनो।
लघु ह्वै निबुकि गिरि मेरूतें बिसाल भो। धावौं , धावौ, धरौ, सुनि धाए जातुधान धारि,
कौतुकी कपीसु कुदि कनक-कँगूराँ चढ्यो, रावन-भवन चढ़ि ठाढ़ेा तेहि काल भो।। बारिधारा उलदै जलदु जौन सावनो।।
‘तुलसी’ विराज्यो ब्योम बालधी पसारि भारीलपट झपट झहराने, हहराने बात,
देखें हहरात भहराने भट, कालु सो कराल भो।। पर्यो प्रबल परावनो।।
तेजको निदानु मानेा कोटिक कृसानु-भानुढकनि ढकेलि, पेलि सचिव चले लै ठेलि,
नख बिकरालनाथ! न चलैगो बलु, मुखु तेसो रिस लाल भो।4।अनलु भयावनो।8।
बालसी बिसाल बडो़ बिकरालबेषु देखि, सुनि सिंघनादु, ज्वालजाल मानो ।
लंक लीलिबेको काल रसना पसारी हैं। उठ्यो मेघनादु, सबिषाद कहै रावनो।
कैधों ब्योमबीधिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,  बीररस बीर तरवारि सो उधारी है।  ‘तुलसी’ सुरेस-चापुबेग जित्यो मारूत, कैधों दामिनि-कलापुप्रताप मारतंड कोटि,
कैंधों चली मेरू तें कृसानु-सरि भारी है। कालऊ करालताँ, बड़ाई जित्यो बावनो।।
देखें ‘तुलसी’ सयाने जातुधान-जातुधानीं अकुलानी पछिताने कहैं,
काननु उजार्योजाको ऐसो दूतु, अब नगरू प्रजारिहैं।5। सो तो साहेबु अबै आवनो।।
काहेको कुसल रोषें राम बामदेवहू की,
जहाँ-तहाँ बुबुक बिलोकि बुबुकारी देत,बिषम बलीसों बादि बैरको बढ़ावनो।9।
जरत निकेत, धावौ, धावौ लागी आगि रे।।
पानी!पानी! पानी! स्ब रानी अकुलानी कहैं, कहाँ तातु-मातु, भ्रात-भगिनी, भामिनी-भाभीजाति हैं परानी, गति जानी गजचालि है।
ढोटा छोटे छोहरा अभागे भोंडे भागि रे।।बसन बिसारै, मनिभूषन सँभारत न, हाथी छोरौ, घोरा छोरौआनन सुखाने , महिष बृषभ छोरौकहै ,क्योंहू कोऊ पालिहै।।
छेरि छोरौ‘तुलसी’ मँदोवै मीजि हाथ, सोवै सो जगावौ धुनि माथ कहै, जागि, जागि रे।।
काहूँ कान कियो न, मैं कह्यो केतो कालि है।
‘तुलसी’ बिलोकि अकुलानी जातुधानीं कहैंबापुरें बिभीषन पुकारि बार बार कह्यो,
बार-बार कह्यौं , प्रिय! क्पिसों न लागि रे।6।बानरू बड़ी बलाइ घने घर घालिहै।10।
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