"पुस्तक मेले में / कौशल किशोर" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कौशल किशोर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ज्ञान के इस संसार …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
कैसा है यह समुद्र ? | कैसा है यह समुद्र ? | ||
पार करना तो दूर | पार करना तो दूर | ||
− | एक | + | एक अँजुरी पानी भी |
नहीं पी पाया अब तक | नहीं पी पाया अब तक | ||
रह गया प्यासा का प्यासा | रह गया प्यासा का प्यासा | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
कहीं गहरे अंतर्मन में | कहीं गहरे अंतर्मन में | ||
घूमती मेरी इंद्रियां थीं | घूमती मेरी इंद्रियां थीं | ||
− | शब्द संवेदनाओं के तन्तुओं को | + | शब्द संवेदनाओं के तन्तुओं को जोड़ती |
इधर ज्ञान | इधर ज्ञान | ||
उधर विज्ञान | उधर विज्ञान | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 38: | ||
पत्नी खो जाती प्रेमचंद या शरतचंद में | पत्नी खो जाती प्रेमचंद या शरतचंद में | ||
− | तभी इस्मत चुगताई अपनेपन से | + | तभी इस्मत चुगताई अपनेपन से झिंझोड़ती |
दूर से देखती मन्नू और मैत्रेयी | दूर से देखती मन्नू और मैत्रेयी | ||
बाट जोहती | बाट जोहती |
23:21, 23 मार्च 2011 के समय का अवतरण
ज्ञान के इस संसार में
बहुत बौना
पढ़ ले चाहे जितना भी
वह होता है थोड़ा ही
कैसा है यह समुद्र ?
पार करना तो दूर
एक अँजुरी पानी भी
नहीं पी पाया अब तक
रह गया प्यासा का प्यासा
कुछ-कुछ ऐसा ही अहसास था
कहीं गहरे अंतर्मन में
घूमती मेरी इंद्रियां थीं
शब्द संवेदनाओं के तन्तुओं को जोड़ती
इधर ज्ञान
उधर विज्ञान
बच्चों के लिए अलग
बड़े-बड़े हरफ़ों में
कुछ कार्टून पुस्तकें
कुछ सचित्र
ऐसी भी सामग्री
जो रोमांच से भर दे
मेरे साथ थी पत्नी
बेटा भी
किसी स्टॉल पर मैं अटकता
तो बेटा छिटक जाता
अपनी मनपसन्द की पुस्तकें खोजता
सी०डी० तलाशता
पत्नी खो जाती प्रेमचंद या शरतचंद में
तभी इस्मत चुगताई अपनेपन से झिंझोड़ती
दूर से देखती मन्नू और मैत्रेयी
बाट जोहती
दर्द बांटती तस्लीमा थी
कहती ज़ोर-ज़ोर से
औरतों के लिए कोई देश नहीं होता
कौन गहरा है
दर्द का सागर
या शब्दों का सागर ?
प्रश्न अनुत्तरित है आज भी ।