Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | ||
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− | गरमी में प्रात:काल पवन | + | <poem> |
− | + | गरमी में प्रात: काल पवन | |
− | बेला से खेला करता जब | + | बेला से खेला करता जब |
− | + | तब याद तुम्हारी आती है। | |
− | तब याद तुम्हारी आती है। | + | |
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जब मन में लाखों बार गया- | जब मन में लाखों बार गया- | ||
− | + | आया सुख सपनों का मेला, | |
− | आया सुख सपनों का मेला, | + | |
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जब मैंने घोर प्रतीक्षा के | जब मैंने घोर प्रतीक्षा के | ||
− | + | युग का पल-पल जल-जल झेला, | |
− | युग का पल-पल जल-जल झेला, | + | मिलने के उन दो यामों ने |
− | + | ||
− | मिलने के उन दो यामों ने | + | |
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दिखलाई अपनी परछाईं, | दिखलाई अपनी परछाईं, | ||
+ | वह दिन ही था बस दिन मुझको | ||
+ | वह बेला थी मुझको बेला; | ||
+ | उड़ती छाया सी वे घड़ियाँ | ||
+ | बीतीं कब की लेकिन तब से, | ||
+ | गरमी में प्रात:काल पवन | ||
+ | बेला से खेला करता जब | ||
+ | तब याद तुम्हारी आती है। | ||
− | + | तुमने जिन सुमनों से उस दिन | |
− | + | केशों का रूप सजाया था, | |
− | + | उनका सौरभ तुमसे पहले | |
− | + | मुझसे मिलने को आया था, | |
− | + | बह गंध गई गठबंध करा | |
− | + | तुमसे, उन चंचल घड़ियों से, | |
− | + | उस सुख से जो उस दिन मेरे | |
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− | तुमने जिन सुमनों से उस दिन | + | |
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− | केशों का रूप सजाया था, | + | |
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− | उनका सौरभ तुमसे पहले | + | |
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− | मुझसे मिलने को आया था, | + | |
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− | बह गंध गई गठबंध करा | + | |
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− | तुमसे, उन चंचल घड़ियों से, | + | |
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− | उस सुख से जो उस दिन मेरे | + | |
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प्राणों के बीच समाया था; | प्राणों के बीच समाया था; | ||
− | + | वह गंध उठा जब करती है | |
− | वह गंध उठा जब करती है | + | दिल बैठ न जाने जाता क्यों; |
− | + | गरमी में प्रात:काल पवन, | |
− | दिल बैठ न जाने जाता क्यों; | + | प्रिय, ठंडी आहें भरता जब |
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− | गरमी में प्रात:काल पवन, | + | |
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− | प्रिय, ठंडी आहें भरता जब | + | |
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तब याद तुम्हारी आती है। | तब याद तुम्हारी आती है। | ||
− | + | गरमी में प्रात:काल पवन | |
− | गरमी में प्रात:काल पवन | + | बेला से खेला करता जब |
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− | बेला से खेला करता जब | + | |
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तब याद तुम्हारी आती है। | तब याद तुम्हारी आती है। | ||
− | + | चितवन जिस ओर गई उसने | |
− | चितवन जिस ओर गई उसने | + | मृदों फूलों की वर्षा कर दी, |
− | + | मादक मुसकानों ने मेरी | |
− | मृदों फूलों की वर्षा कर दी, | + | गोदी पंखुरियों से भर दी |
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− | मादक मुसकानों ने मेरी | + | |
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− | गोदी पंखुरियों से भर दी | + | |
− | + | ||
हाथों में हाथ लिए, आए | हाथों में हाथ लिए, आए | ||
+ | अंजली में पुष्पों से गुच्छे, | ||
+ | जब तुमने मेरी अधरों पर | ||
+ | अधरों की कोमलता धर दी, | ||
+ | कुसुमायुध का शर ही मानो | ||
+ | मेरे अंतर में पैठ गया! | ||
+ | गरमी में प्रात: काल पवन | ||
+ | कलियों को चूम सिहरता जब | ||
+ | तब याद तुम्हारी आती है। | ||
− | + | गरमी में प्रात: काल पवन | |
− | + | बेला से खेला करता जब | |
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तब याद तुम्हारी आती है। | तब याद तुम्हारी आती है। | ||
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21:18, 26 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
गरमी में प्रात: काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
जब मन में लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर प्रतीक्षा के
युग का पल-पल जल-जल झेला,
मिलने के उन दो यामों ने
दिखलाई अपनी परछाईं,
वह दिन ही था बस दिन मुझको
वह बेला थी मुझको बेला;
उड़ती छाया सी वे घड़ियाँ
बीतीं कब की लेकिन तब से,
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
तुमने जिन सुमनों से उस दिन
केशों का रूप सजाया था,
उनका सौरभ तुमसे पहले
मुझसे मिलने को आया था,
बह गंध गई गठबंध करा
तुमसे, उन चंचल घड़ियों से,
उस सुख से जो उस दिन मेरे
प्राणों के बीच समाया था;
वह गंध उठा जब करती है
दिल बैठ न जाने जाता क्यों;
गरमी में प्रात:काल पवन,
प्रिय, ठंडी आहें भरता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
चितवन जिस ओर गई उसने
मृदों फूलों की वर्षा कर दी,
मादक मुसकानों ने मेरी
गोदी पंखुरियों से भर दी
हाथों में हाथ लिए, आए
अंजली में पुष्पों से गुच्छे,
जब तुमने मेरी अधरों पर
अधरों की कोमलता धर दी,
कुसुमायुध का शर ही मानो
मेरे अंतर में पैठ गया!
गरमी में प्रात: काल पवन
कलियों को चूम सिहरता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
गरमी में प्रात: काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।