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"डुबकनी ( सानेट )/ ज़िया फ़तेहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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:पस ए पर्दा किसी ने मेरे अरमानों  की महफ़िल को  
 
:पस ए पर्दा किसी ने मेरे अरमानों  की महफ़िल को  
 
:कुछ इस अंदाज़ से देखा कुछ ऐसे तौर से देखा
 
:कुछ इस अंदाज़ से देखा कुछ ऐसे तौर से देखा
 
:ग़ुबार ए आह से देकर जिला आइना ए दिल को  
 
:ग़ुबार ए आह से देकर जिला आइना ए दिल को  
 
:हर इक सूरत को मैंने ख़ूब देखा गौर से देखा  
 
:हर इक सूरत को मैंने ख़ूब देखा गौर से देखा  
नज़र आई न वो सूरत मुझे जिसकी तमन्ना थी  
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:नज़र आई न वो सूरत मुझे जिसकी तमन्ना थी  
बहुत ढूँढा किया गुलशन में वीराने में बस्ती में  
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:बहुत ढूँढा किया गुलशन में वीराने में बस्ती में  
मुन्नवर शमअ  ए मेहर ओ माह से दिन रात दुनिया थी   
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:मुन्नवर शमअ  ए मेहर ओ माह से दिन रात दुनिया थी   
मगर चारों तरफ़ था घुप अँधेरा मेरी हस्ती में  
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:मगर चारों तरफ़ था घुप अँधेरा मेरी हस्ती में  
दिल ए मजबूर को मजरूह ए उल्फ़त कर दिया किसने  
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:दिल ए मजबूर को मजरूह ए उल्फ़त कर दिया किसने  
मेरे अहसास की गहराईयों में है चुभन ग़म की  
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:मेरे अहसास की गहराईयों में है चुभन ग़म की  
मिटा कर जिस्म मेरी रूह को अपना लिया किसने  
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:मिटा कर जिस्म मेरी रूह को अपना लिया किसने  
जवानी बन गई आमाजगाह सदमात ए पैहम की  
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:जवानी बन गई आमाजगाह सदमात ए पैहम की  
हिजाबात ए नज़र का सिलसिला तोड़ और आ भी जा
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:हिजाबात ए नज़र का सिलसिला तोड़ और आ भी जा
मुझे इक बार अपना जलवा ए रंगीं दिखा भी जा
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:मुझे इक बार अपना जलवा ए रंगीं दिखा भी जा
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07:12, 7 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

पस ए पर्दा किसी ने मेरे अरमानों की महफ़िल को
कुछ इस अंदाज़ से देखा कुछ ऐसे तौर से देखा
ग़ुबार ए आह से देकर जिला आइना ए दिल को
हर इक सूरत को मैंने ख़ूब देखा गौर से देखा
नज़र आई न वो सूरत मुझे जिसकी तमन्ना थी
बहुत ढूँढा किया गुलशन में वीराने में बस्ती में
मुन्नवर शमअ ए मेहर ओ माह से दिन रात दुनिया थी
मगर चारों तरफ़ था घुप अँधेरा मेरी हस्ती में
दिल ए मजबूर को मजरूह ए उल्फ़त कर दिया किसने
मेरे अहसास की गहराईयों में है चुभन ग़म की
मिटा कर जिस्म मेरी रूह को अपना लिया किसने
जवानी बन गई आमाजगाह सदमात ए पैहम की
हिजाबात ए नज़र का सिलसिला तोड़ और आ भी जा
मुझे इक बार अपना जलवा ए रंगीं दिखा भी जा