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00:10, 31 जनवरी 2022 के समय का अवतरण
सावन और भादों की बाढ़ से 
टूट कर, बह कर ढके रास्तों में 
ढार और ढाल में 
बड़े कष्ट से , यातना से 
गेंदा, गोदावरी खिले हुए चबूतरे में 
विश्राम करने आया है शरद 
मुस्कुराने आया है शरद 
पर विस्मृति और भ्रम विलीन नहीं हुए हैं,
कल पतझड़ बनकर आने वाले दिनों के 
अक्षत विश्वास को खंड-खंड नहीं किया है !
ढोलक की ताल, देवसुरे मैलेनी के संग 
रमाना तो नाम मात्र है 
रामाया नहीं है !
कल पतझड़ का विश्वास है अक्षत 
मुस्कुराने का नाम मात्र है 
मुस्कुराया नहीं है शरद !
मूल नेपाली से अनुवाद: बिर्ख खड़का डुबर्सेली