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"पहले की तरह / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
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पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर | पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर | ||
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लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर | लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर | ||
− | + | "अरे... सब-कुछ पहले जैसा है | |
− | + | सब वैसा का वैसा है... | |
− | + | पहले की तरह..." | |
− | सब वैसा का वैसा है. . . | + | |
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− | पहले की तरह. . . | + | |
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फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा | फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा | ||
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लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा | लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा | ||
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उदास नज़र से मैं ने उसे ताका | उदास नज़र से मैं ने उसे ताका | ||
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फिर उस की आँखों में झाँका | फिर उस की आँखों में झाँका | ||
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मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी | मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी | ||
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हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी | हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी | ||
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चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम | चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम | ||
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बरसों के बाद इस तरह मिले हम | बरसों के बाद इस तरह मिले हम | ||
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पहले की तरह | पहले की तरह | ||
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(2006 में रचित) | (2006 में रचित) | ||
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11:21, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर
लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर
"अरे... सब-कुछ पहले जैसा है
सब वैसा का वैसा है...
पहले की तरह..."
फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा
लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा
उदास नज़र से मैं ने उसे ताका
फिर उस की आँखों में झाँका
मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी
हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी
चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम
बरसों के बाद इस तरह मिले हम
पहले की तरह
(2006 में रचित)