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|रचनाकार=रमेश तैलंग | |रचनाकार=रमेश तैलंग | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=इक्यावन बालगीत / रमेश तैलंग |
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माँ कितनी तकलीफ़ें झेल, | माँ कितनी तकलीफ़ें झेल, | ||
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दया-धर्म सब रूप हैं माँ के, | दया-धर्म सब रूप हैं माँ के, | ||
और हर रूप निराला है। | और हर रूप निराला है। | ||
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14:01, 5 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
घर में अकेली माँ ही बस
सबसे बड़ी पाठशाला है।
जिसने जगत को पहले-पल
ज्ञान का दिया उजाला है।
माँ से हमने जीना सीखा,
माँ में हमको ईश्वर दीखा,
हम तो हैं माला के मनके,
माँ मनकों की माला है।
माँ आँखों का मीठा सपना,
माँ साँसों में बहता झरना,
माँ है एक बरगद की छाया
जिसने हमको पाला है।
माँ कितनी तकलीफ़ें झेल,
बाँटे सुख, सबके दुख ले ले।
दया-धर्म सब रूप हैं माँ के,
और हर रूप निराला है।