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मदन के शर केवल पाँच हैं
 
मदन के शर केवल पाँच हैं
 
 
बिंध गए सब प्राण, बचा नहीं
 
बिंध गए सब प्राण, बचा नहीं
 
 
हृदय एक कहीं, अधिभूत की
 
हृदय एक कहीं, अधिभूत की
 
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नियति है, यति है, गति है, यही
नियति है, यति है, गति है, यही.
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05:12, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

मदन के शर केवल पाँच हैं
बिंध गए सब प्राण, बचा नहीं
हृदय एक कहीं, अधिभूत की
नियति है, यति है, गति है, यही ।