भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जो है सो है / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
 
|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
खिले फूलों से ही खिंच कर रमे जो भुवन में
 
खिले फूलों से ही खिंच कर रमे जो भुवन में
 
 
अभावों की छाया पकड़ कर भावांत उन का
 
अभावों की छाया पकड़ कर भावांत उन का
 
 
दिखाएगी, क्या है ललित रचना, शून्य मन की.
 
दिखाएगी, क्या है ललित रचना, शून्य मन की.
 
+
यहाँ जो है सो है विवश पद की धूल बन के
यहाँ जो है सो है विवश पद की धूल बन के .
+
</poem>

05:14, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

खिले फूलों से ही खिंच कर रमे जो भुवन में
अभावों की छाया पकड़ कर भावांत उन का
दिखाएगी, क्या है ललित रचना, शून्य मन की.
यहाँ जो है सो है विवश पद की धूल बन के ।