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कभी सोचा मैं ने, सिर पर बड़े भार धर के,
 
कभी सोचा मैं ने, सिर पर बड़े भार धर के,
 
 
सधे पैरों यात्रा सबल पद से भी कठिन है,
 
सधे पैरों यात्रा सबल पद से भी कठिन है,
 
 
यहाँ तो प्राणों का विचलन मुझे रोक रखता
 
यहाँ तो प्राणों का विचलन मुझे रोक रखता
 
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रहा है, कोई क्यों इस पर करे मौन करूणा
रहा है, कोई क्यों इस पर करे मौन करूणा.
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05:17, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

कभी सोचा मैं ने, सिर पर बड़े भार धर के,
सधे पैरों यात्रा सबल पद से भी कठिन है,
यहाँ तो प्राणों का विचलन मुझे रोक रखता
रहा है, कोई क्यों इस पर करे मौन करूणा ।