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"सन्ध्याएँ / देवेन्द्र कुमार" के अवतरणों में अंतर

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मटमैली गीली संध्याएँ ।
 
मटमैली गीली संध्याएँ ।
  
    सूरज बुझा बैंगनी, नीला
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        सूरज बुझा बैंगनी, नीला
    बीत गया दिन पीला-पीला
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        बीत गया दिन पीला-पीला
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हल्के हाथों के तकिए पर
 
हल्के हाथों के तकिए पर
 
सिर रखकर सो गई हवाएँ ।
 
सिर रखकर सो गई हवाएँ ।
  
    टूटे तारों का विज्ञापन
+
        टूटे तारों का विज्ञापन
    खोया-खोया-सा अपनापन
+
        खोया-खोया-सा अपनापन
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दूर अँधेरे में घोड़े की
 
दूर अँधेरे में घोड़े की
 
टाप बन गईं नई दिशाएँ ।
 
टाप बन गईं नई दिशाएँ ।
  
    इस टीले से उस टीले तक
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        इस टीले से उस टीले तक
    एक शब्द सिन्दूर मुबारक
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        एक शब्द सिन्दूर मुबारक
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सबसे भली नींद की गोली
 
सबसे भली नींद की गोली
 
जब चाहें खाकर सो जाएँ ।
 
जब चाहें खाकर सो जाएँ ।
 
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21:58, 2 मई 2011 के समय का अवतरण

मटमैली गीली संध्याएँ ।

        सूरज बुझा बैंगनी, नीला
        बीत गया दिन पीला-पीला

हल्के हाथों के तकिए पर
सिर रखकर सो गई हवाएँ ।

        टूटे तारों का विज्ञापन
        खोया-खोया-सा अपनापन

दूर अँधेरे में घोड़े की
टाप बन गईं नई दिशाएँ ।

        इस टीले से उस टीले तक
        एक शब्द सिन्दूर मुबारक

सबसे भली नींद की गोली
जब चाहें खाकर सो जाएँ ।