भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 12" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=न…) |
|||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | ''' | + | '''कलि वर्णन-3''' |
− | + | ||
− | (88) | + | |
+ | (87) | ||
+ | |||
+ | दमु दुर्गम, दान, दया , मख, कर्म , सुधर्म अधीन सबै धनको। | ||
+ | तप, तीरथ , साधन, जोग, बिरागसों होइ , नहीं दृढ़ता तनको।। | ||
+ | |||
+ | कलिकाल कराल में ‘राम कृपालु’ यहै अवलंबु बडो मनको।। | ||
+ | ‘तुलसी’ सब संजमहीन सबै, एक नाम -अधारू सदा जनको।। | ||
+ | |||
+ | (88) | ||
+ | |||
+ | पाइ सुदेह बिमोह-नदी-तरनी न लही, करनी न कछू की। | ||
+ | रामकथा बरनी न बनाइ, सुनी न कथा प्रहलाद न ध्रुवकी।। | ||
+ | |||
+ | अब जोर जरा जरि गातु गयो, मम मानि गलानि कुबानि न मूकी। | ||
+ | नीके कै ठीक दई तुलसी, अवलंब बड़ी उर आखर दूकी।। | ||
</poem> | </poem> |
15:46, 7 मई 2011 के समय का अवतरण
कलि वर्णन-3
(87)
दमु दुर्गम, दान, दया , मख, कर्म , सुधर्म अधीन सबै धनको।
तप, तीरथ , साधन, जोग, बिरागसों होइ , नहीं दृढ़ता तनको।।
कलिकाल कराल में ‘राम कृपालु’ यहै अवलंबु बडो मनको।।
‘तुलसी’ सब संजमहीन सबै, एक नाम -अधारू सदा जनको।।
(88)
पाइ सुदेह बिमोह-नदी-तरनी न लही, करनी न कछू की।
रामकथा बरनी न बनाइ, सुनी न कथा प्रहलाद न ध्रुवकी।।
अब जोर जरा जरि गातु गयो, मम मानि गलानि कुबानि न मूकी।
नीके कै ठीक दई तुलसी, अवलंब बड़ी उर आखर दूकी।।