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"स्वर्ग / अनिल विभाकर" के अवतरणों में अंतर

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सिर्फ आस भर है आसमान
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आसमान में नहीं है कहीं स्वर्ग
 
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लौट आए अंतरिक्ष-यात्री चंद्रलोक से
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देखा है करीब से कई ग्रह-पिंडों को
 
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बंजर हैं सारे ग्रह-पिंड
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कहीं नहीं मिला कोई जीवन
 
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चाहे कितना भी बड़ा हो आसमान
 
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जितना भी हो विस्तृत
 
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किसी कल्पित स्वर्ग में नहीं
 
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वह उतरता है तो इसी धरती पर
 
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नदियों में उतरता है पूरा का पूरा आसमान
 
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पसरता है झील में
 
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दिन भर का थका-हारा सूरज विश्राम लेता है अरब सागर में
 
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तरोताजा हो कर, सुबह-सुबह
 
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निकलता है पहाड़ों के पीछे से
 
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आसमान में नहीं है कोई सागर
 
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जहां सूरज स्नान कर सके
 
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थक-हारकर विश्राम कर सके
 
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उसे प्रिय है बंगाल की खाड़ी स्नान के लिए
 
उसे प्रिय है बंगाल की खाड़ी स्नान के लिए
 
 
प्रिय है विश्राम के लिए अरब सागर
 
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लहरों पर लचकने के लिए
 
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चाँद को भी चाहिए झील और नदी
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आसमान में नहीं है कहीं नदी, कोई झील
 
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आसमान में नहीं है लुहार की भाथी
 
आसमान में नहीं है लुहार की भाथी
 
 
नहीं है हल
 
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न तो करघे, न कपास, न सूत
 
न तो करघे, न कपास, न सूत
 
 
न खुरपी, न कुदाल
 
न खुरपी, न कुदाल
 
 
न ढिबरी, न लालटेन
 
न ढिबरी, न लालटेन
 
 
न ढोल, न शहनाई
 
न ढोल, न शहनाई
 
 
खोमचे, लोखर-नरहनी
 
खोमचे, लोखर-नरहनी
 
 
छेनी-हथौड़े कुछ भी तो नहीं है आसमान में
 
छेनी-हथौड़े कुछ भी तो नहीं है आसमान में
 
  
 
न बया के लिए तिनके
 
न बया के लिए तिनके
 
 
न गोरैया के लिए धान
 
न गोरैया के लिए धान
 
 
न तितली के लिए फूल
 
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न अलाव के लिए लकड़ियाँ
न अलाव के लिए लकड़ियां
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स्वर्ग के लिए ज़रूरी है इन चीज़ों का होना
 
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बेज़रूरत की चीज़ भी नहीं है आसमान में ।
 
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स्वर्ग के लिए जरूरी है इन चीजों का होना
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बेजरूरत की चीज भी नहीं है आसमान में।
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23:14, 16 मई 2011 के समय का अवतरण

सिर्फ़ आस भर है आसमान
आसमान में नहीं है कहीं स्वर्ग

छान रहे हैं कब से हम अंतहीन आकाश
लौट आए अंतरिक्ष-यात्री चंद्रलोक से
देखा है करीब से कई ग्रह-पिंडों को
बंजर हैं सारे ग्रह-पिंड

कहीं नहीं मिला कोई जीवन

चाहे कितना भी बड़ा हो आसमान
जितना भी हो विस्तृत
किसी कल्पित स्वर्ग में नहीं
वह उतरता है तो इसी धरती पर

नदियों में उतरता है पूरा का पूरा आसमान
पसरता है झील में
दिन भर का थका-हारा सूरज विश्राम लेता है अरब सागर में
तरोताजा हो कर, सुबह-सुबह
निकलता है पहाड़ों के पीछे से

आसमान में नहीं है कोई सागर
जहां सूरज स्नान कर सके
थक-हारकर विश्राम कर सके
उसे प्रिय है बंगाल की खाड़ी स्नान के लिए
प्रिय है विश्राम के लिए अरब सागर

लहरों पर लचकने के लिए
चाँद को भी चाहिए झील और नदी
आसमान में नहीं है कहीं नदी, कोई झील
आसमान में नहीं है लुहार की भाथी
नहीं है हल

न तो करघे, न कपास, न सूत
न खुरपी, न कुदाल
न ढिबरी, न लालटेन
न ढोल, न शहनाई
खोमचे, लोखर-नरहनी
छेनी-हथौड़े कुछ भी तो नहीं है आसमान में

न बया के लिए तिनके
न गोरैया के लिए धान
न तितली के लिए फूल
न अलाव के लिए लकड़ियाँ
स्वर्ग के लिए ज़रूरी है इन चीज़ों का होना
बेज़रूरत की चीज़ भी नहीं है आसमान में ।