भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आईना / रेशमा हिंगोरानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> साँस लेना मे…) |
|
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:47, 2 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
साँस लेना मेरा दुशवार हो न जाए कहीं,
मौत! तुझसे भी मुझे प्यार हो न जाए कहीं!
कहाँ-कहाँ से मर्ज़ ढूंढ लाई है दुनिया,
कि चारागर, ख़ुद बीमार हो न जाए कहीं!
जुदाई ही रही ता-उम्र नसीबा अपना,
शबे-आख़िर भी यूँ बेकार हो न जाए कहीं!
शम’अ, आईना लिए घूम रहा है कोई,
चलूं, अपना मुझे दीदार हो न जाए कहीं!