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"कवि ने लिखी कविता / शिवदयाल" के अवतरणों में अंतर
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कवि ने देखा | कवि ने देखा | ||
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भीड़ वाली सड़क पर | भीड़ वाली सड़क पर | ||
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बीचोंबीच गिरा पड़ा | बीचोंबीच गिरा पड़ा | ||
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एक अभावग्रस्त बीमार आदमी | एक अभावग्रस्त बीमार आदमी | ||
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और कवि ने लिखी कविता! | और कवि ने लिखी कविता! | ||
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कवि ने देखा | कवि ने देखा | ||
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वर्दीवालों से सरेआम पिटता | वर्दीवालों से सरेआम पिटता | ||
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और अपने निर्दोष होने की | और अपने निर्दोष होने की | ||
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और कवि ने लिखी कविता! | और कवि ने लिखी कविता! | ||
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कवि ने देखे | कवि ने देखे | ||
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झगड़े-झंझट | झगड़े-झंझट | ||
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दंगे-फसाद | दंगे-फसाद | ||
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लूटमार | लूटमार | ||
− | + | अँधेरगर्दी और अनाचार... | |
− | + | और लिख डाली कितनी ही कविताएँ ! | |
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− | और लिख डाली कितनी ही कविताएँ! | + | |
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धन्य है कवि की कविताई | धन्य है कवि की कविताई | ||
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जो दिनोंदिन निखरती चली गई | जो दिनोंदिन निखरती चली गई | ||
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धन्य है कवि का यश | धन्य है कवि का यश | ||
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जो चहुँओर फैलता चला गया | जो चहुँओर फैलता चला गया | ||
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कवि ने | कवि ने | ||
− | + | कवि होने का फ़र्ज़ निभाया | |
− | कवि होने का | + | बाक़ी को |
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मनुष्य होने का धर्म निभाना था! | मनुष्य होने का धर्म निभाना था! | ||
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21:47, 19 मई 2011 के समय का अवतरण
कवि ने देखा
भीड़ वाली सड़क पर
बीचोंबीच गिरा पड़ा
एक अभावग्रस्त बीमार आदमी
और उससे नज़रें चुराते
कन्नी काटते गुज़र जाते लोग
और कवि ने लिखी कविता!
कवि ने देखा
वर्दीवालों से सरेआम पिटता
और अपने निर्दोष होने की
सफ़ाई देने की कोशिश करता
एक शख़्स
और कवि ने लिखी कविता!
कवि ने देखे
झगड़े-झंझट
दंगे-फसाद
लूटमार
अँधेरगर्दी और अनाचार...
और लिख डाली कितनी ही कविताएँ !
धन्य है कवि की कविताई
जो दिनोंदिन निखरती चली गई
धन्य है कवि का यश
जो चहुँओर फैलता चला गया
कवि ने
कवि होने का फ़र्ज़ निभाया
बाक़ी को
मनुष्य होने का धर्म निभाना था!