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ज़िल्लेइलाही
 
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शहंशाह-ए-हिंदुस्तान
 
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आफ़ताब-ए-वक़्त
 
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हुज़ूर-ए-आला !
 
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परवरदिगार
 
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जहाँपनाह !
 
जहाँपनाह !
 
  
 
क्षमा कर दें मेरे पाप ।
 
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मगर ये सच है
 
मगर ये सच है
 
 
मेरी क़िस्मत के आक़ा,
 
मेरी क़िस्मत के आक़ा,
 
 
मेरे ख़ून और पसीने के क़तरे-क़तरे  
 
मेरे ख़ून और पसीने के क़तरे-क़तरे  
 
 
के हक़दार,
 
के हक़दार,
 
 
ये बिल्कुल सच है
 
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कि अभी-अभी
 
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आपको
 
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बिल्कुल इंसानों जैसी
 
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छींक आयी ।
 
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23:43, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

ज़िल्लेइलाही
शहंशाह-ए-हिंदुस्तान
आफ़ताब-ए-वक़्त
हुज़ूर-ए-आला !

परवरदिगार
जहाँपनाह !

क्षमा कर दें मेरे पाप ।

मगर ये सच है
मेरी क़िस्मत के आक़ा,
मेरे ख़ून और पसीने के क़तरे-क़तरे
के हक़दार,
ये बिल्कुल सच है

कि अभी-अभी
आपको
बिल्कुल इंसानों जैसी
छींक आयी ।