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"हद अभी पार नहीं / उमेश चौहान" के अवतरणों में अंतर
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पर सूरज तो निकलेगा ही | पर सूरज तो निकलेगा ही | ||
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पर रोशनी तो फैलेगी ही | पर रोशनी तो फैलेगी ही | ||
पतझड़ में पात झरे हैं अभी | पतझड़ में पात झरे हैं अभी | ||
पर कोंपलें तो कल सजेगीं ही | पर कोंपलें तो कल सजेगीं ही | ||
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जब जो होना है, वह होगा ही | जब जो होना है, वह होगा ही | ||
पानी फिर बरसेगा ही | पानी फिर बरसेगा ही | ||
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जब मैं कुछ करूँगा | जब मैं कुछ करूँगा | ||
या आप कुछ करेंगे, | या आप कुछ करेंगे, | ||
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हम सब कुछ करेंगे ही | हम सब कुछ करेंगे ही | ||
− | इसकी हद अभी पार नहीं हुई | + | इसकी हद अभी पार नहीं हुई शायद । |
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03:12, 22 मई 2011 के समय का अवतरण
रात अभी बीती नहीं है
पर रात तो बीतेगी ही
सुबह अभी हुई नहीं है
पर सुबह तो होगी ही
सूरज अभी निकला नहीं है
पर सूरज तो निकलेगा ही
रोशनी अभी फैली नहीं है
पर रोशनी तो फैलेगी ही
पतझड़ में पात झरे हैं अभी
पर कोंपलें तो कल सजेगीं ही
लेकिन ज़रूरी नहीं
यह मान ही लिया जाय कि
जब जो होना है, वह होगा ही
पानी फिर बरसेगा ही
बड़वानल शीध्र बुझेगा ही
कई बार ऐसा होता ही है
राख के ढेर से भी भड़क उठती है चिंगारी
यहाँ बहुत कुछ तभी होगा
जब मैं कुछ करूँगा
या आप कुछ करेंगे,
या काफ़ी कुछ तभी होगा
जब हम सब मिलकर कुछ करेंगे
हम सब कुछ करेंगे ही
इसकी हद अभी पार नहीं हुई शायद ।