भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"परिचय / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह= लोक आलोक / केदारनाथ अग…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
1957 में केदारनाथ अग्रवाल जी का तीसरा कविता संग्रह '''लोक आलोक''' इलाहाबाद से छपा जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है | 1957 में केदारनाथ अग्रवाल जी का तीसरा कविता संग्रह '''लोक आलोक''' इलाहाबाद से छपा जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है | ||
− | + | ‘कविताई न मैने पाई, न चुराई मैने इसे जीवन जोतकर, किसान की तरह बोया और काटा है यह मेरी अपनी है और मुझे अपने प्राणों से भी अधिक प्यारी है, | |
− | '''तथा''' | + | '''तथा''' उन्होंने अपने मन को व्यक्त करते हुए लिखा है कि यदि वे काव्यसृजन और पठन-पाठन के रास्ते पर नहीं चलते तो क्या होते |
− | + | ||
− | को बना लेता है यह कविता ही थी जिसने मुझे इस योग्य बनाया कि मै जीवन निर्वाह के लिए उसी हद तक अर्थाजन | + | ‘लक्ष्मी के वाहन बनकर कम पढ़े मूढ़-महाजन होते जो अपने जीवन का एकमात्र ध्येय काग़ज के नोटों का संचयन करने |
+ | को बना लेता है । यह कविता ही थी जिसने मुझे इस योग्य बनाया कि मै जीवन-निर्वाह के लिए उसी हद तक अर्थाजन करूँ जिस हद तक आदमी बना रह सकता हूँ । | ||
</poem> | </poem> |
13:25, 22 मई 2011 के समय का अवतरण
1957 में केदारनाथ अग्रवाल जी का तीसरा कविता संग्रह लोक आलोक इलाहाबाद से छपा जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है
‘कविताई न मैने पाई, न चुराई मैने इसे जीवन जोतकर, किसान की तरह बोया और काटा है यह मेरी अपनी है और मुझे अपने प्राणों से भी अधिक प्यारी है,
तथा उन्होंने अपने मन को व्यक्त करते हुए लिखा है कि यदि वे काव्यसृजन और पठन-पाठन के रास्ते पर नहीं चलते तो क्या होते
‘लक्ष्मी के वाहन बनकर कम पढ़े मूढ़-महाजन होते जो अपने जीवन का एकमात्र ध्येय काग़ज के नोटों का संचयन करने
को बना लेता है । यह कविता ही थी जिसने मुझे इस योग्य बनाया कि मै जीवन-निर्वाह के लिए उसी हद तक अर्थाजन करूँ जिस हद तक आदमी बना रह सकता हूँ ।