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"परिचय / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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1957 में केदारनाथ अग्रवाल जी का तीसरा कविता संग्रह '''लोक आलोक''' इलाहाबाद से छपा जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है | 1957 में केदारनाथ अग्रवाल जी का तीसरा कविता संग्रह '''लोक आलोक''' इलाहाबाद से छपा जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है | ||
− | + | ‘कविताई न मैने पाई, न चुराई मैने इसे जीवन जोतकर, किसान की तरह बोया और काटा है यह मेरी अपनी है और मुझे अपने प्राणों से भी अधिक प्यारी है, | |
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− | '''तथा''' उन्होंने अपने मन को व्यक्त करते हुए लिखा है कि यदि वे काव्यसृजन और पठन पाठन के रास्ते पर नहीं चलते तो क्या होते | + | '''तथा''' उन्होंने अपने मन को व्यक्त करते हुए लिखा है कि यदि वे काव्यसृजन और पठन-पाठन के रास्ते पर नहीं चलते तो क्या होते |
− | + | ‘लक्ष्मी के वाहन बनकर कम पढ़े मूढ़-महाजन होते जो अपने जीवन का एकमात्र ध्येय काग़ज के नोटों का संचयन करने | |
− | जो अपने जीवन का एकमात्र ध्येय काग़ज के नोटों का संचयन करने को बना लेता है | + | को बना लेता है । यह कविता ही थी जिसने मुझे इस योग्य बनाया कि मै जीवन-निर्वाह के लिए उसी हद तक अर्थाजन करूँ जिस हद तक आदमी बना रह सकता हूँ । |
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13:25, 22 मई 2011 के समय का अवतरण
1957 में केदारनाथ अग्रवाल जी का तीसरा कविता संग्रह लोक आलोक इलाहाबाद से छपा जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है
‘कविताई न मैने पाई, न चुराई मैने इसे जीवन जोतकर, किसान की तरह बोया और काटा है यह मेरी अपनी है और मुझे अपने प्राणों से भी अधिक प्यारी है,
तथा उन्होंने अपने मन को व्यक्त करते हुए लिखा है कि यदि वे काव्यसृजन और पठन-पाठन के रास्ते पर नहीं चलते तो क्या होते
‘लक्ष्मी के वाहन बनकर कम पढ़े मूढ़-महाजन होते जो अपने जीवन का एकमात्र ध्येय काग़ज के नोटों का संचयन करने
को बना लेता है । यह कविता ही थी जिसने मुझे इस योग्य बनाया कि मै जीवन-निर्वाह के लिए उसी हद तक अर्थाजन करूँ जिस हद तक आदमी बना रह सकता हूँ ।