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<poem>
सुनो, साधो!
वानप्रस्थी ये हवाएँ- कहाँ जाएँ
वन नहीं हैं!
दूर तक सड़कें-इमारत
हर ओर नीरस
सुनो, साधो!
इस नगर में सिर्फ़ हैं अंधी गुफ़ाएँ
वन नहीं हैं!
एक कोने में खड़ी हैं
वक्त है गदहा-पचीसी
सुनो साधो!
जल रही है झील- झुलसी हैं दिशाएँ
वन नहीं हैं!
सोचती ये
चिड़ियों के ठिकाने
सुनो, साधो!
क्यों अपाहिज हो रही हैं ये हवाएँ
वन नहीं हैं!
</poem>
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