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जहां प्रेम तड़प रहा / राकेश प्रियदर्शी
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15:34, 24 मई 2011
<poem>
हवा!
तेज
तेज़
मत बहो,
मन की धुरी पर
इच्छाओं की पृथ्वी स्थिर है
योगेंद्र कृष्णा
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