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| |पीछे=प्रस्तावना / तुलसीदास | | |पीछे=प्रस्तावना / तुलसीदास |
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| {गीता.[बाल] 058.03} परसि जो पाँय पुनीत सुरसरी सोहै तीनि-गवनी | | | {गीता.[बाल] 058.03} परसि जो पाँय पुनीत सुरसरी सोहै तीनि-गवनी | |
| {गीता.[बाल] 058.03} तुलसिदास तेहि चरन-रेनुकी महिमा कहै मति कवनी || | | {गीता.[बाल] 058.03} तुलसिदास तेहि चरन-रेनुकी महिमा कहै मति कवनी || |
− | {गीता.[बाल] 059.01} भूरिभाग-भाजनु भई |
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− | {गीता.[बाल] 059.01} रुपरासि अवलोकि बन्धु दोउ प्रेम-सुरङ्ग रई ||
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− | {गीता.[बाल] 059.02} कहा कहैं, केहि भाँति सराहैं, नहि करतूति नई |
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− | {गीता.[बाल] 059.02} बिनु कारन करुनाकर रघुबर केहि-केहि गति न दई ||
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− | {गीता.[बाल] 059.03} करि बहु बिनय, राखि उर मूरति मङ्गल-मोदिमई |
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− | {गीता.[बाल] 059.03} तुलसी ह्वै बिसोक पति-लोकहि प्रभुगुन गनत गई ||
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− | {गीता.[बाल] 060.राग} कान्हरा
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− | {गीता.[बाल] 060.01} कौसिकके मखके रखवारे |
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− | {गीता.[बाल] 060.01} नाम राम अरु लखन ललित अति, दसरथ-राज-दुलारे ||
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− | {गीता.[बाल] 060.02} मेचक पीत कमल कोमल कल काकपच्छ-धर बारे |
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− | {गीता.[बाल] 060.02} सोभा सकल सकेलि मदन-बिधि सुकर सरोज सँवारे ||
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− | {गीता.[बाल] 060.03} सहस समूह सुबाहु सरिस खल समर सूर भट भारे |
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− | {गीता.[बाल] 060.03} केलि-तून-धनु-बान-पानि रन निदरि निसाचर मारे ||
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− | {गीता.[बाल] 060.04} ऋषितिय तारि स्वयम्बर पेखन जनकनगर पगु धारे |
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− | {गीता.[बाल] 060.04} मग नर-नारि निहारत सादर, कहैं बड़ भाग हमारे ||
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− | {गीता.[बाल] 060.05} तुलसी सुनत एक-एकनि सो चलत बिलोकनिहारे |
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− | {गीता.[बाल] 060.05} मूकनि बचन-लाहु, मानो अंधनि लहे हैं बिलोचन-तारे ||
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− | {गीता.[बाल] 061.01} जनकपुर-प्रवेश
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− | {गीता.[बाल] 061.राग} टोड़ी
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− | {गीता.[बाल] 061.01} आये सुनि कौसिक जनक हरषाने हैं |
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− | {गीता.[बाल] 061.01} बोलि गुर भूसुर, समाज सों मिलन चले,
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− | {गीता.[बाल] 061.01} जानि बड़े भाग अनुराग अकुलाने हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 061.02} नाइ सीस पगनि, असीस पाइ प्रमुदित,
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− | {गीता.[बाल] 061.02} पाँवड़े अरघ देत आदर सों आने हैं |
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− | {गीता.[बाल] 061.02} असन, बसन, बासकै सुपास सब बिधि,
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− | {गीता.[बाल] 061.02} पूजि प्रिय पाहुने, सुभाय सनमाने हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 061.03} बिनय बड़ाई ऋषि-राजौउ परसपर
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− | {गीता.[बाल] 061.03} करत पुलकि प्रेम आनँद अघाने हैं |
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− | {गीता.[बाल] 061.03} देखे राम-लखन निमेषै बिथकित भईं
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− | {गीता.[बाल] 061.03} प्रानहु ते प्यारे लागे बिनु पहिचाने हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 061.04} ब्रह्मानन्द हृदय, दरस-सुख लोयननि
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− | {गीता.[बाल] 061.04} अनभये उभय, सरस राम जाने हैं |
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− | {गीता.[बाल] 061.04} तुलसी बिदेहकी सनेहकी दसा सुमिरि,
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− | {गीता.[बाल] 061.04} मेरे मन माने राउ निपट सयाने हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 062.राग} मलार
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− | {गीता.[बाल] 062.01} कोसलरायके कुअँरोटा |
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− | {गीता.[बाल] 062.01} राजत रुचिर जनक-पुर पैठत स्याम गौर नीके जोटा ||
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− | {गीता.[बाल] 062.02} चौतनि सिरनि, कनककली काननि, कटि पट पीत सोहाये |
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− | {गीता.[बाल] 062.02} उर मनि-माल, बिसाल बिलोचन, सीय-स्वयम्बर आये ||
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− | {गीता.[बाल] 062.03} बरनि न जात, मनहिं मन भावत, सुभग अबहिं बय थोरी |
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− | {गीता.[बाल] 062.03} भई हैं मगन बिधुबदन बिलोकत बनिता चतुर चकोरी ||
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− | {गीता.[बाल] 062.04} कहँ सिवचाप, लरिकवनि बूझत, बिहँसि चितै तिरछौंहैं |
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− | {गीता.[बाल] 062.04} तुलसी गलिन भीर, दरसन लगि लोग अटनि आरोहैं ||
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− | {गीता.[बाल] 063.01} ये अवधेसके सुत दोऊ |
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− | {गीता.[बाल] 063.01} चढ़ि मन्दिरनि बिलोकत सादर जनकनगर सब कोऊ ||
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− | {गीता.[बाल] 063.02} स्याम गौर सुन्दर किसोर तनु, तून-बान-धनुधारी |
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− | {गीता.[बाल] 063.02} कटि पट पीत, कण्ठ मुकुतामनि, भुज बिसाल, बल भारी ||
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− | {गीता.[बाल] 063.03} मुख मयङ्क, सरसीरुह लोचन, तिलक भाल, टेढ़ी भौंहैं |
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− | {गीता.[बाल] 063.03} कल कुण्डल, चौतनी चारु अति, चलत मत्त-गज-गौंहैं ||
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− | {गीता.[बाल] 063.04} बिस्वामित्र हेतु पठये नृप,इनहि ताडुका मारी |
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− | {गीता.[बाल] 063.04} मख राख्यो रिपु जीति, जान जग, मग मुनिबधू उधारी ||
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− | {गीता.[बाल] 063.05} प्रिय पाहुने जानि नर-नारिन नयननि अयन दये |
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− | {गीता.[बाल] 063.05} तुलसिदास प्रभु देखि लोग सब जनक समान भये ||
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− | {गीता.[बाल] 064.राग} टोड़ी
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− | {गीता.[बाल] 064.01} बूझत जनक नाथ, ढोटा दोउ काके हैं ?
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− | {गीता.[बाल] 064.01} तरुन तमाल चारु चम्पक-बरन तनु
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− | {गीता.[बाल] 064.01} कौन बड़े भागीके सुकृत परिपाके हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 064.02} सुखके निधान पाये, हियके पिधान लाये,
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− | {गीता.[बाल] 064.02} ठगके-से लाडू खाये, प्रेम-मधु छाके हैं |
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− | {गीता.[बाल] 064.02} स्वारथ-रहित परमारथी कहावत हैं,
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− | {गीता.[बाल] 064.02} भे सनेह-बिबस बिदेहता बिबाके हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 064.03} सील-सुधाके अगार, सुखमाके पारावार,
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− | {गीता.[बाल] 064.03} पावत न पैरि पार पैरि पैरि थाके हैं |
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− | {गीता.[बाल] 064.03} लोचन ललकि लागे, मन अति अनुरागे,
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− | {गीता.[बाल] 064.03} एक रसरुप चित सकल सभाके हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 064.04} जिय जिय जोरत सगाई राम लखनसों
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− | {गीता.[बाल] 064.04} आपने आपने भाय जैसे भाय जाके हैं |
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− | {गीता.[बाल] 064.04} प्रीतिको, प्रतीतिको, सुमिरिबेको, सेइबेको,
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− | {गीता.[बाल] 064.04} सरनको समरथ तुलसिहु ताके हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 065.01} ए कौन कहाँतें आए ?
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− | {गीता.[बाल] 065.01} नील-पीत पाथोज-बरन, मन-हरन, सुभाय सुहाए ||
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− | {गीता.[बाल] 065.02} मुनि सुत किधौं भूप-बालक, किधौं ब्रह्म-जीव जग जाए |
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− | {गीता.[बाल] 065.02} रुप जलधिके रतन, सुछबि-तिय-लोचन ललित ललाए ||
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− | {गीता.[बाल] 065.03} किधौं रबि-सुवन, मदन-ऋतुपति, किधौं हरि-हर बेष बनाए |
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− | {गीता.[बाल] 065.03} किधौं आपने सुकृत-सुरतरुके सुफल रावरेहि पाए ||
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− | {गीता.[बाल] 065.04} भए बिदेह बिदेह नेहबस देहदसा बिसराए |
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− | {गीता.[बाल] 065.04} पुलक गात, न समात हरष हिय, सलिल सुलोचन छाए ||
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− | {गीता.[बाल] 065.05} जनक-बचन मृदु मञ्जु मधु-भरे भगति कौसिकहि भाए |
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− | {गीता.[बाल] 065.05} तुलसी अति आनन्द उमगि उर राम लषन गुन गाए ||
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− | {गीता.[बाल] 066.01} कौसिक कृपालहूको पुलकित तनु भौ |
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− | {गीता.[बाल] 066.01} उमगत अनुराग, सभाके सराहे भाग,
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− | {गीता.[बाल] 066.01} देखि दसा जनककी कहिबेको मनु भौ ||
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− | {गीता.[बाल] 066.02} प्रीतिके न पातकी, दियेहू साप पाप बड़ो,
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− | {गीता.[बाल] 066.02} मख-मिस मेरो तब अवध-गवनु भौ |
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− | {गीता.[बाल] 066.02} प्रानहूते प्यारे सुत माँगे दिये दसरथ,
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− | {गीता.[बाल] 066.02} सत्यसिन्धु सोच सहे, सूनो सो भवनु भौ ||
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− | {गीता.[बाल] 066.03} काकसिखा सिर, कर केलि-तून-धनु-सर,
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− | {गीता.[बाल] 066.03} बालक-बिनोद जातुधाननिसों रनु भौ |
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− | {गीता.[बाल] 066.03} बूझत बिदेह अनुराग-आचरज-बस,
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− | {गीता.[बाल] 066.03} ऋषिराज जाग भयो, महाराज अनु भौ ||
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− | {गीता.[बाल] 066.04} भूमिदेव, नरदेव, सचिव परसपर
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− | {गीता.[बाल] 066.04} कहत, हमहिं सुरतरु सिवधनु भौ |
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− | {गीता.[बाल] 066.04} सुनत राजाकी रीति उपजी प्रतीति-प्रीति,
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− | {गीता.[बाल] 066.04} भाग तुलसीके, भले साहेबको जनु भौ ||
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− | {गीता.[बाल] 067.01} चार्यो भले बेटा देव दसरथ रायके |
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− | {गीता.[बाल] 067.01} जैसे राम-लषन, भरत-रिपुहन तैसे,
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− | {गीता.[बाल] 067.01} सील-सोभा-सागर, प्रभाकर प्रभायके ||
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− | {गीता.[बाल] 067.02} ताड़का सँहारि मख राखे, नीके पाले ब्रत,
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− | {गीता.[बाल] 067.02} कोटि-कोटि भट किये एक एक घायके |
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− | {गीता.[बाल] 067.02} एक बान बेगही उड़ाने जातुधान-जात,
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− | {गीता.[बाल] 067.02} सूखि गये गात हैं, पतौआ भये बायके ||
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− | {गीता.[बाल] 067.03} सिलाछोर छुवत अहल्या भई दिब्यदेह,
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− | {गीता.[बाल] 067.03} गुन पेखे पारसके पङ्करुह पायके |
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− | {गीता.[बाल] 067.03} रामके प्रसाद गुर गौतम खसम भये,
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− | {गीता.[बाल] 067.03} रावरेहु सतानन्द पूत भये मायके ||
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− | {गीता.[बाल] 067.04} प्रेम-परिहास-पोख बचन परसपर
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− | {गीता.[बाल] 067.04} कहत सुनत सुख सब ही सुभायके |
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− | {गीता.[बाल] 067.04} तुलसी सराहैं भाग कौसिक जनकजूके,
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− | {गीता.[बाल] 067.04} बिधिके सुढर होत सुढर सुदायके ||
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− | {गीता.[बाल] 068.01} ये दोऊ दसरथके बारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.01} नाम राम घनस्याम, लखन लघु, नखसिख अँग उजियारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.02} निज हित लागि माँगि आने मैं धरमसेतु-रखवारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.02} धीर, बीर बिरुदैत, बाँकुरे, महाबाहु, बल भारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.03} एक तीर तकि हती ताडका, किये सुर-साधु सुखारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.03} जग्य राखि, जग साखि, तोषि ऋषि, निदरि निसाचर मारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.04} मुनितिय तारि स्वयम्बर पेखन आये सुनि बचन तिहारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.04} एउ देखिहैं पिनाकु नेकु, जेहि नृपति लाज-ज्वर जारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.05} सुनि, सानन्द सराहि सपरिजन, बारहि बार निहारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.05} पूजि सप्रेम, प्रसंसि कौसिकहि भूपति सदन सिधारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.06} सोचत सत्य-सनेह-बिबस निसि, नृपहि गनत गये तारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.06} पठये बोलि भोर, गुरके सँग रङ्गभूमि पगु धारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.07} नगर-लोग सुधि पाइ मुदित, सबही सब काज बिसारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.07} मनहु मघा-जल उमगि उदधि-रुख चले नदी-नद-नारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.08} ए किसोर, धनु घोर बहुत, बिलखात बिलोकनिहारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.08} टर्यो न चाप तिन्हते, जिन्ह सुभटनि कौतुक कुधर उखारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.09} ए जाने बिनु जनक जानियत करि पन भूप हँकारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.09} नतरु सुधसागर परिहरि कत कूप खनावत खारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.10} सुखमा सील-सनेह सानि मनो रुप बिरञ्चि सँवारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.10} रोम-रोमपर सोम-काम सत कोटि बारि फेरि डारे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.11} कोउ कहै, तेज-प्रताप-पुञ्ज चितये नहिं जात, भिया रे !
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− | {गीता.[बाल] 068.11} छुअत सरासन-सलभ जरैगो ए दिनकर-बंस-दिया रे ||
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− | {गीता.[बाल] 068.12} एक कहै, कछु होउ, सुफल भये जीवन-जनम हमारे |
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− | {गीता.[बाल] 068.12} अवलोके भरि नयन आजु तुलसीके प्रानपियारे ||
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− | {गीता.[बाल] 069.01} जनक बिलोकि बार-बार रघुबरको |
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− | {गीता.[बाल] 069.01} मुनिपद सीस नाय, आयसु-असीस पाय,
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− | {गीता.[बाल] 069.01} एई बातैं कहत गवन कियो घरको ||
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− | {गीता.[बाल] 069.02} नीन्द न परति राति, प्रेम-पन एक भाँति,
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− | {गीता.[बाल] 069.02} सोचत, सकोचत बिरञ्चि-हरि-हरको |
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− | {गीता.[बाल] 069.02} तुम्हते सुगम सब देव! देखिबेको अब
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− | {गीता.[बाल] 069.02} जस हंस किए जोगवत जुग परको ||
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− | {गीता.[बाल] 069.03} ल्याए सङ्ग कौसिक, सुनाए कहि गुनगन,
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− | {गीता.[बाल] 069.03} आए देखि दिनकर कुल-दिनकरको |
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− | {गीता.[बाल] 069.03} तुलसी तेऊ सनेहको सुभाउ बाउ मानो
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− | {गीता.[बाल] 069.03} चलदलको सो पात करै चित चरको ||
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− | {गीता.[बाल] 070.राग} केदारा
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− | {गीता.[बाल] 070.01} रङ्ग-भूमि भोरे ही जाइकै |
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− | {गीता.[बाल] 070.01} राम-लषन लखि लोग लूटिहैं लोचन-लाभ अघाइकै ||
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− | {गीता.[बाल] 070.02} भूप-भवन, घर घर, पुर बाहर, इहै चरचा रही छाइकै |
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− | {गीता.[बाल] 070.02} मगन मनोरथ-मोद नारि-नर, प्रेम-बिबस उठैं गाइकै ||
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− | {गीता.[बाल] 070.03} सोचत बिधि-गति समुझि, परसपर कहत बचन बिलखाइकै |
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− | {गीता.[बाल] 070.03} कुँवर किसोर, कठोर सरासन, असमञ्जस भयो आइकै ||
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− | {गीता.[बाल] 070.04} सुकृत सँभारि, मनाइ पितर-सुर, सीस ईसपद नाइकै |
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− | {गीता.[बाल] 070.04} रघुबर-करधनु-भङ्ग चहत सब अपनो सो हितु चितु लाइकै ||
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− | {गीता.[बाल] 070.05} लेत फिरत कनसुई सगुन सुभ, बूझत गनक बोलाइकै |
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− | {गीता.[बाल] 070.05} सुनि अनुकूल, मुदित मन मानहु धरत धीरजहि धाइकै ||
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− | {गीता.[बाल] 070.06} कौसिक-कथा एक एकनिसों कहत प्रभाउ जनाइकै |
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− | {गीता.[बाल] 070.06} सीय-राम सञ्जोग जानियत, रच्यो बिरञ्चि बनाइकै ||
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− | {गीता.[बाल] 070.07} एक सराहि सुबाहु-मथन बर बाहू, उछाह बढ़ाइकै |
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− | {गीता.[बाल] 070.07} सानुज राज-समाज बिराजिहैं राम पिनाक चढ़ाइकै ||
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− | {गीता.[बाल] 070.08} बड़ी सभा बड़ो लाभ, बड़ो जस, बड़ी बड़ाई पाइकै |
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− | {गीता.[बाल] 070.08} को सोहिहै, और को लायक रघुनायकहि बिहाइकै?||
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− | {गीता.[बाल] 070.09} गवनिहैं गँवहिं गवाँइ गरब गृह नृपकुल बलहि लजाइकै |
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− | {गीता.[बाल] 070.09} भलीभाँति साहब तुलसीके चलिहैं ब्याहि बजाइकै ||
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− | {गीता.[बाल] 071.01} पुष्पवाटिकामें
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− | {गीता.[बाल] 071.राग} टोड़ी
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− | {गीता.[बाल] 071.01} भोर फूल बीनबेको गये फुलवाई हैं |
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− | {गीता.[बाल] 071.01} सीसनि टिपारे, उपबीत, पीत पट कटि,
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− | {गीता.[बाल] 071.01} दोना बाम करनि सलोने भे सवाई हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 071.02} रुपके अगार, भूपके कुमार, सुकुमार,
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− | {गीता.[बाल] 071.02} गुरके प्रानाधार सङ्ग सेवकाई हैं |
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− | {गीता.[बाल] 071.02} नीच ज्यों टहल करैं, राखैं रुख अनुसरैं,
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− | {गीता.[बाल] 071.02} कौसिक-से कोही बस किये दुहुँ भाई हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 071.03} सखिनसहित तेहि औसर बिधिके सँजोग
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− | {गीता.[बाल] 071.03} गिरिजाजू पूजिबेको जानकीजू आई हैं |
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− | {गीता.[बाल] 071.03} निरखि लषन-राम जाने ऋतुपति-काम,
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− | {गीता.[बाल] 071.03} मोहि मानो मदन मोहनी मूड़ नाई हैं ||
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− | {गीता.[बाल] 071.04} राघौजू-श्रीजानकी-लोचन मिलिबेको मोद
| + | |
− | {गीता.[बाल] 071.04} कहिबेको जोगु न, मैं बातैं-सी बनाई हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 071.04} स्वामी, सीय, सखिन्ह, लषन तुलसीको तैसो
| + | |
− | {गीता.[बाल] 071.04} तैसो मन भयो जाकी जैसिये सगाई हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.01} पूजि पारबती भले भाय पाँय परिकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.01} सजल सुलोचन, सिथिल तनु पुलकित,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.01} आवै न बचन, मन रह्यो प्रेम भरिकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.02} अंतरजामिनि भवभामिनि स्वामिनिसों हौं,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.02} कही चाहौं बात, मातु अंत तौ हौं लरिकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.02} मूरति कृपालु मञ्जु माल दै बोलत भई,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.02} पूजो मन कामना भावतो बरु बरिकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.03} राम कामतरु पाइ, बेलि ज्यों बौण्ड़ी बनाइ,
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− | {गीता.[बाल] 072.03} माँग-कोषि तोषि-पोषि, फैलि-फूलि-फरिकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.03} रहौगी, कहौगी तब, साँची कही अंबा सिय,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.03} गहे पाँय द्वै, उठाय, माथे हाथ धरिकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.04} मुदित असीस सुनि, सीस नाइ पुनि पुनि,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.04} बिदा भई देवीसों जननि डर डरिकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.04} हरषीं सहेली, भयो भावतो, गावतीं गीत,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 072.04} गवनी भवन तुलसीस-हियो हरिकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.01} रङ्गभूमिमें
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.01} रङ्गभूमि आए, दसरथके किसोर हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.01} पेखनो सो पेखन चले हैं पुर-नर-नारि,
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− | {गीता.[बाल] 073.01} बारे-बूढ़े, अंध-पङ्गु करत निहोर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.02} नील पीत नीरज कनक मरकत घन
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− | {गीता.[बाल] 073.02} दामिनी-बरन तनु रुपके निचोर हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.02} सहज सलोने, राम-लषन ललित नाम,
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− | {गीता.[बाल] 073.02} जैसे सुने तैसेई कुँवर सिरमौर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.03} चरन-सरोज, चारु जङ्घा जानु ऊरु कटि,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.03} कन्धर बिसाल, बाहु बड़े बरजोर हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.03} नीकेकै निषङ्ग कसे, करकमलनि लसै
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.03} बान-बिसिषासन मनोहर कठोर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.04} काननि कनकफूल, उपबीत अनुकूल,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.04} पियरे दुकूल बिलसत आछे छोर हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.04} राजिव नयन, बिधुबदन टिपारे सिर,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.04} नख-सिख अंगनि ठगौरी ठौर ठौर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.05} सभा-सरवर लोक-कोक-नद-कोकगन
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.05} प्रमुदित मन देखि दिनमनि भोर हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.05} अबुध असैले मन-मैले महिपाल भये,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.05} कछुक उलूक कछु कुमुद चकोर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.06} भाईसों कहत बात, कौसिकहि सकुचात,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.06} बोल घन घोर-से बोलत थोर-थोर हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.06} सनमुख सबहि, बिलोकत सबहि नीके,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 073.06} कृपासों हेरत हँसि तुलसीकी ओर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.01} एई राम-लषन जे मुनि-सँग आये हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.01} चौतनी-चोलना काछे, सखि सोहैं आगे-पाछे,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.01} आछेहुते आछे, आछे आछे भाय भाये हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.02} साँवरे गोरे सरीर, महाबाहु महाबीर,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.02} कटि तून तीर धरे, धनुष सुहाये हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.02} देखत कोमल, कल, अतुल बिपुल बल,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.02} कौसिक कोदण्ड-कला कलित सिखाये हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.03} इन्हहीं ताडका मारी, गौतमकी तिय तारी,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.03} भारी भारी भूरि भट रन बिचलाये हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.03} ऋषि मख रखवारे, दसरथके दुलारे,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.03} रङ्गभूमि पगु धारे, जनक बुलाये हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.04} इन्हके बिमल गुन गनत पुलकि तनु
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.04} सतनन्द-कौसिक नरेसहि सुनाये हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.04} प्रभु पद मन दिये, सो समाज चित किये
| + | |
− | {गीता.[बाल] 074.04} हुलसि हुलसि हिये तुलसिहुँ गाये हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 075.राग} कान्हरा
| + | |
− | {गीता.[बाल] 075.01} सीय स्वयम्बरु, माई दोउ भाई आए देखन |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 075.01} सुनत चलीं प्रलदा प्रमुदित मन,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 075.01} प्रेम पुलकि तनु मनहुँ मदन मञ्जुल पेखन ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 075.02} निरखि मनोहरताई सुख पाई कहैं एक-एक सों,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 075.02} भूरिभाग हम धन्य, आलि ! ए दिन, एखन|
| + | |
− | {गीता.[बाल] 075.02} तुलसी सहज सनेह सुरँग सब
| + | |
− | {गीता.[बाल] 075.02} सो समाज चित-चित्रसार लागी लेखन ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 076.राग} गौरी
| + | |
− | {गीता.[बाल] 076.01} राम-लषन जब दृष्टि परे, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 076.01} अवलोकत सब लोग जनकपुर मानो बिधि बिबिध बिदेह करे, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 076.02} धनुषजग्य कमनीय अलनि-तल कौतुकही भए आय खरे, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 076.02} छबि-सुरसभा मनहु मनसिजके कलित कलपतरु रुप फरे, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 076.03} सकल काम बरषत मुख निरखत, करषत, चित, हित हरष भरे, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 076.03} तुलसी सबै सराहत भूपहि भलै पैत पासे सुढर ढरे, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 077.01} नेकु, सुमुखि, चित लाइ चितौ, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 077.01} राजकुँवर-मूरति रचिबेकी रुचि सुबिरञ्चि श्रम कियो है कितौ, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 077.02} नख-सिख-सुदंरता अवलोकत कह्यो न परत सुख होत जितौ, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 077.02} साँवर रुप-सुधा भरिबे कहँ नयन-कमल कल कलस रितौ, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 077.03} मेरे जान इन्हैं बोलिबे कारन चतुर जनक ठयो ठाट इतौ, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 077.03} तुलसी प्रभु भञ्जिहैं सम्भु-धनु, भूरिभाग सिय मातु-पितौ, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 078.राग} सारङ्ग
| + | |
− | {गीता.[बाल] 078.01} जबतें राम-लषन चितए, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 078.01} रहे इकटक नर-नारि जनकपुर, लागत पलक कलप बितए, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 078.02} प्रेम-बिबस माँगत महेस सों, देखत ही रहिये नित ए, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 078.02} कै ए सदा बसहु इन्ह नयनन्हि, कै ए नयन जाहु जित ए, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 078.03} कौऊ समुझाइ कहै किन भूपहि, बड़े भाग आए इत ए री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 078.03} कुलिस-कठोर कहाँ सङ्कर-धनु, मृदुमूरति किसोर कित ए, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 078.04} बिरचत इन्हहिं बिरञ्चि भुवन सब सुन्दरता खोजत रित ए, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 078.04} तुलसिदास ते धन्य जनम जन, मन-क्रम-बच जिन्हके हित ए, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 079.01} सुनु, सखि!भूपति भलोई कियो, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 079.01} जेहि प्रसाद अवधेस-कुवँर दोउ नगर-लोग अवलोकि जियो, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 079.02} मानि प्रतीति कहे मेरे तैं कत सँदेह-बस करति हियो, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 079.02} तौलौं है यह सम्भु सरासन, श्रीरघुबर जौलौं न लियो, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 079.03} जेहि बिंरचि रचि सीय सँवारी, औ रामहि एसो रुप दियो, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 079.03} तुलसिदास तेहि चतुर बिधाता निजकर यह सञ्जोग सियो, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.01} अनुकूल नृपहि सूलपानि हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.01} नीलकण्ठ कारुन्यसिन्धु हर दीनबन्धु दिनदानि हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.02} जो पहिले ही पिनाक जनक कहँ गये सौम्पि जिय जानि हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.02} बहुरि त्रिलोचन लोचनके फल सबहि सुलभ किये आनि हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.03} सुनियत भव-भाव ते राम हैं, सिय भावती-भवानि हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.03} परखत प्रीति-प्रतीति, पयज-पनु रहे काज ठटु ठानि हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.04} भये बिलोकि बिदेह नेहबस बालक बिनु पहिचानि हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.04} होत हरे होने बिरवनि दल सुमति कहति अनुमानि हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.05} देखियत भूप भोर-के-से उडुगन, गरत गरीब गलानि हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.05} तेज-प्रताप बढ़त कुँवरनको, जदपि सँकोची बानि हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.06} बय किसोर, बरजोर, बाहुबल-मेरु मेलि गुन तानिहैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.06} अवसि राम राजीव-बिलोचन सम्भु-सरासन भानिहैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.07} देखिहैं ब्याह-उछाह नारि-नर, सकल सुमङ्गल-खानि हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 080.07} भूरिभाग तुलसी तेऊ, जे सुनिहैं, गाइहैं, बखानिहैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 081.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[बाल] 081.01} रामहि नीके कै निरखि, सुनैनी !
| + | |
− | {गीता.[बाल] 081.01} मनसहुँ अगम समुझि, यह अवसरु कत सकुचति, पिकबैनी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 081.02} बड़े भाग मख-भूमि प्रगट भई सीय सुमङ्गल-ऐनी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 081.02} जा कारन लोचन-गोचर भै मूरति सब सुखदैनी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 081.03} कुलगुर-तियके मधुर बचन सुनि जनक-जुबति मति-पैनी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 081.03} तुलसी सिथिल देह-सुधि-बुधि करि सहज सनेह-बिषैनी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.01} मिलो बरु सुन्दर सुन्दरि सीतहि लायकु
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.01} साँवरो सुभग, शोभाहूँको परम सिङ्गारु |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.01} मनहूको मन मोहै, उपमाको को है?
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.01} सोहै सुखमासागर सङ्ग अनुज राजकुमारु ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.02} ललित सकल अंग, तनु धरे कै अनङ्ग,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.02} नैननिको फल कैन्धौं, सियको सुकृत-सारु |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.02} सरद-सुधा-सदन-छबिहि निन्दै बदन,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.02} अरुन आयत नवनलिन-लोचन चारु ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.03} जनक-मनकी रीति जानि बिरहित प्रीति,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.03} ऐसी औ मूरति देखे रह्यो पहिलो बिचारु |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.03} तुलसी नृपहि ऐसो कहि न बुझावै कोउ,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 082.03} पन औ कुँअर दोऊ प्रेमकी तुला धौं तारु||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 083.01} देखि देखि री! दोउ राजसुवन |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 083.01} गौर स्याम सलोने लोने लोने, लोयननि,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 083.01} जिन्हकी सोभा तें सोहै सकल भुवन ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 083.02} इन्हहीं ताडका मारी, मग मुनि-तिय तारी,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 083.02} ऋषिमख राख्यो, रन दले हैं दुवन |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 083.02} तुलसी प्रभुको अब जनकनगर-नभ,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 083.02} सुजस-बिमल-बिधु चहत उवन ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.राग} टोड़ी
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.01} राजा रङ्गभूमि आज बैठे जाइ जाइकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.01} आपने आपने थल, आपने आपने साज,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.01} आपनी आपनी बर बानिक बनाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.02} कौसिक सहित राम-लषन ललित नाम,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.02} लरिका ललाम लोने पठए बुलाइकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.02} दरसलालसा-बस लोग चले भाय भले,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.02} बिकसित-मुख निकसत धाइ धाइ कै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.03} सानुज सानन्द हिये आगे ह्वै जनक लिये,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.03} रचना रुचिर सब सादर देखाइकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.03} दिये दिब्य आसन सुपास सावकास अति,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.03} आछे आछे बीछे बीछे बिछौना बिछाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.04} भूपतिकिसोर दुहुँ ओर, बीच मुनिराउ
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.04} देखिबेको दाउँ, देखौ देखिबो बिहाइकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.04} उदय-सैल सोहैं सुन्दर कुँवर, जोहैं,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.04} मानौ भानु भोर भूरि किरनि छिपाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.05} कौतुक कोलाहल निसान-गान पुर, नभ
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.05} बरषत सुमन बिमान रहे छाइकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.05} हित-अनहित, रत-बिरत बिलोकि बाल,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.05} प्रेम-मोद-मगन जनम-फल पाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.06} राजाकी रजाइ पाइ सचिव-सहेली धाइ,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.06} सतानन्द ल्याए सिय सिबिका चढ़ाइकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.06} रुप-दीपिका निहारि मृग-मृगी नर-नारि,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.06} बिथके बिलोचन-निमेषै बिसराइकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.07} हानि, लाहु, अनख, उछाहु, बाहुबल कहि
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.07} बन्दि बोले बिरद अकस उपजाइकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.07} दीप दीपके महीप आए सुनि पैज पन,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.07} कीजै पुरुषारथको अवसर भौ आइकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.08} आनाकानी, कण्ठ-हँसी मुँहा-चाही होन लगी,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.08} देखि दसा कहत बिदेह बिलखाइकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.08} घरनि सिधारिए, सुधारिए आगिलो काज,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.08} पूजि पूजि धनु कीजै बिजय बजाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.09} जनक-बचन छुए बिरवा लजारु के से
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.09} बीर रहे सकल सकुचि सिर नाइकै |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.09} तुलसी लषन माषे, रोषे, राखे रामरुख
| + | |
− | {गीता.[बाल] 084.09} भाषे मृदु परुष सुभायन रिसाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.01} भूपति बिदेह कही नीकियै जो भई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.01} बड़े ही समाज आजु राजनिकी लाज-पति
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.01} हाँकि आँक एक ही पिनाक छीनि लई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.02} मेरो अनुचित न कहत लरिकाई-बस,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.02} पन परमिति और भाँति सुनि गई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.02} नतरु प्रभु-प्रताप उतरु चढ़ाय चाप
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.02} देतो पै देखाइ बल, फल, पापमई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.03} भूमिकै हरैया उखरैया भूमिधरनिके,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.03} बिधि बिरचे प्रभाउ जाको जग जई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.03} बिहँसि हिये हरषि हटके लषन राम,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.03} सोहत सकोच सील नेह नारि नई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.04} सहमी सभा सकल, जनक भए बिकल,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.04} राम लखि कौसिक असीस-आग्या दई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.04} तुलसी सुभाय गुरुपाँय लागि रघुराज
| + | |
− | {गीता.[बाल] 085.04} ऋषिराजकी रजाइ माथे मानि लई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.01} सोचत जनक पोच पेच परि गई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.01} जोरि कर कमल निहोरि कहैं कौसिकसों,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.01} आयसु भौ रामको सो मेरे दुचितई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.02} बान, जातु-धानपति, भूप दीप सातहूके,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.02} लोकप बिलोकत पिनाक भूमि लई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.02} जोतिलिङ्ग कथा सुनि जाको अंत पाये बिनु
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.02} आए बिधि हरि हारि सोई हाल भई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.03} आपुही बिचारिए, निहारिए सभाकी गति,
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− | {गीता.[बाल] 086.03} बेद-मरजाद मानौ हेतुबाद हई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.03} इन्हके जितैहैं मन सोभा अधिकानी तन,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.03} मुखनकी सुखमा सुखद सरसई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.04} रावरो भरोसो बल, कै है कोऊ कियो छल,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.04} कैधों कुलको प्रभाव, कैधों लरिकई है ?
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.04} कन्या, कल कीरति, बिजय बिस्वकी बटोरि
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.04} कैधों करतार इन्हहीको निर्मई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.05} पनको न मोह, न बिसेष चिन्ता सीताहूकी,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.05} लुनिहै पै सोई सोई जोई जेहि बई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.05} रहै रघुनाथकी निकाई नीकी नीके नाथ,
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− | {गीता.[बाल] 086.05} हाथ सो तिहारे करतूति जाकी नई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.06} कहि साधु साधु गाधि-सुवन सराहे राउ,
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− | {गीता.[बाल] 086.06} महाराज! जानि जिय ठीक भली दई है|
| + | |
− | {गीता.[बाल] 086.06} हरषै लखन, हरषाने बिलखाने लोग,
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− | {गीता.[बाल] 086.06} तुलसी मुदित जाको राजा राम जई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.01} सुजन सराहैं जो जनक बात कही है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.01} रामहि सोहानी जानि, मुनिमनमानी सुनि,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.01} नीच महिपावली दहन बिनु दही है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.02} कहैं गाधिनन्दन मुदित रघुनन्दनसों,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.02} नृपगति अगह, गिरा न जाति गही है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.02} देखे-सुने भूपति अनेक झूठे झूठे नाम,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.02} साँचे तिरहुतिनाथ, साखि देति मही है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.03} रागौउ बिराग, भोग जोग जोगवत मन,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.03} जोगी जागबलिक प्रसाद सिद्धि लही है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.03} ताते न तरनितें न सीरे सुधाकरहू तें,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.03} सहज समाधि निरुपाधि निरबही है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.04} ऐसेउ अगाध बोध रावरे सनेह-बस,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.04} बिकल बिलोकति, दुचितई सही है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.04} कामधेनु-कृपा हुलसानी तुलसीस उर,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 087.04} पन-सिसु हेरि, मरजाद बाँधी रही है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.01} ऋषिराज राजा आजु जनक समान को ?
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.01} आपु यहि भाँति प्रीति सहित सराहित,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.01} रागी औ बिरागी बड़भागी ऐसो आन को ?||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.02} भूमि-भोग करत अनुभवत जोग-सुक
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.02} मुनि-मन-अगम अलख गति जान को ?
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.02} गुर-हर-पद-नेहु, गेह बसि भौ बिदेह,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.02} अगुन-सगुन-प्रभु-भजन-सयान को ?||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.03} कहनि रहनि एक, बिरति बिबेक नीति,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.03} बेद-बुध-सम्मत पथीन निरबानको ?
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.03} गाँठि बिनु गुनकी कठिन जड़-चेतनकी,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.03} छोरी अनायास, साधु सोधक अपान को ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.04} सुनि रघुबीरकी बचन-रचनाकी रीति,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.04} भयो मिथिलेस मानो दीपक बिहानको |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.04} मिट्यो महामोह जीको, छूट्यो पोच सोच सीको,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.04} जान्यो अवतार भयो पुरुष पुरानको ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.05} सभा, नृप, गुर, नर-नारि पुर, नभ सुर,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.05} सब चितवत मुख करुनानिधानको |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.05} एकै एक कहत प्रगट एक प्रेम-बस,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 088.05} तुलसीस तोरिये सरासन इसानको ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.राग} मारु
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.01} सुनो भैया भूप सकल दै कान |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.01} बज्ररेख गजदसन जनक-पन बेद-बिदित, जग जान ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.02} घोर कठोर पुरारि-सरासन, नाम प्रसिद्ध पिनाकु |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.02} जो दसकण्ठ दियो बाँवों, जेहि हर-गिरि कियो है मनाकु ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.03} भूमि-भाल भ्राजत, न चलत सो, ज्यों बिरञ्चिको आँकु |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.03} धनु तोरै सोई बरै जानकी, राउ होइ कि राँकु ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.04} सुनि आमरषि उठे अवनीपति, लगै बचन जनु तीर |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.04} टरै न चाप, करैं अपनी सी महा महा बलधीर ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.05} नमित-सीस सोचहिं सलज्ज सब श्रीहत भए सरीर|
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.05} बोले जनक बिलोकि सीय तन दुखित सरोष अधीर ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.06} सप्त दीप नव खण्ड बूमिके भूपतिबृन्द जुरे |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.06} बड़ो लाभ कन्या-कीरतिको, जहँ-तहँ महिप मुरे ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.07} डग्यौ न धनु, जनु बीर-बिगत महि, किधौं कहुँ सुभट दुरे |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.07} रोषे लखन बिकट भृकुटी करि, भुज अरु अधर फुरे ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.08} सुनहु भानुकुल-कमल-भानु ! जो तव अनुसासन पावौं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.08} का बापुरो पिनाकु, मेलि गुन मन्दर मेरु नवावौं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.09} देखौ निज किङ्करको कौतुक, क्यों कोदण्ड चढ़ावौं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.09} लै धावौं, भञ्जौं मृनाल, ज्यों, तौ प्रभु-अनुग कहावौं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.10} हरषै पुर-नर-नारि, सचिव, नृप कुँवर कहे बर बैन |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.10} मृदु मुसुकाइ राम बरज्यौ प्रिय बन्धु नयनकी सैन ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.11} कौसिक कह्यो, उठहु रघुनन्दन, जगबन्दन, बलाइन |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 089.11} तुलसिदास प्रभु चले मृगपति ज्यौं निज भगतनि सुखदैन ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.01} जबहिं सब नृपति निरास भए |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.01} गुरुपद-कमल बन्दि रघुपति तब चाप-समीप गए ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.02} स्याम-तामरस-दाम-बरन बपु, उर-भुज-नयन बिसाल |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.02} पीत बसन कटि, कलित कण्ठ सुन्दर सिन्धुर-मनिपाल ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.03} कल कुण्डल, पल्लव प्रसून सिर चारु चौतनी लाल |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.03} कोटि-मदन-छबि-सदन बदन-बिधु, तिलक मनोहर भाल ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.04} रुप अनूप बिलोकत सादर पुरजन राजसमाज |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.04} लषन कह्यो थिर होहु धरनिधरु, धरनि, धरनिधर आज ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.05} कमठ, कोल, दिग-दन्ति सकल अँग सजग करहु प्रभु-काज |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.05} चहत चपरि सिव-चाप चढ़ावन दसरथको जुबराज ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.06} गहि करतल, मुनि-पुलक सहित, कौतुकहि, उठाइ लियो |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.06} नृपगन-मुखनि समेत नमित करि सजि सुख सबहि जियो ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.07} आकरष्यो सिय-मन समेत हरि, हरष्यो जनक-हियो |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.07} भञ्ज्यो भृगुपति-गरब सहित, तिहुँ लोक-बिमोह कियो ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.08} भयो कठिन कोदण्ड-कोलाहल प्रलय-पयोद समान |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.08} चौङ्के सिव, बिरञ्चि, दिसिनायक, रहे मूँदि कर कान ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.09} सावधान ह्वै चढ़े बिमाननि चले बजाइ निसान |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.09} उमगि चल्यौ आनन्द नगर, नभ जयधुनि, मङ्गलगान ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.10} बिप्र-बचन सुनि सुखी सुआसिनि चलीं जानकिहि ल्याइ |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.10} कुँवर निरखि, जयमाल मेलि उर कुँवरि रही सकुचाइ ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.11} बरषहिं सुमन, असीसहिं सुर-मुनि, प्रेम न हृदय समाइ |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 090.11} सीय-रामकी सुन्दरतापर तुलसिदास बलि जाइ ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 091.राग} मलार
| + | |
− | {गीता.[बाल] 091.01} जब दोउ दसरथ-कुँवर बिलोके |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 091.01} जनक नगर नर-नारि मुदित मन निरखि नयन पल रोके ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 091.02} बय किसोर, घन-तड़ित-बरन तनु नखसिख अंग लोभारे |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 091.02} दै चित, कै हित, लै सब छबि-बित बिधि निज हाथ सँवारे ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 091.03} सङ्कट नृपहि, सोच अति सीतहि, भूप सकुचि सिर नाए |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 091.03} उठे राम रघुकुल-कुल-केहरि, गुर-अनुसासन पाए ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 091.04} कौतुक ही कोदण्ड खण्डि प्रभु, जय अरु जानकि पाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 091.04} तुलसिदास कीरति रघुपतिकी मुनिन्ह तिहूँ पुर गाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.राग} टोड़ी
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.01} मुनि-पदरेनु रघुनाथ माथे धरी है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.01} रामरुख निरखि लषनकी रजाइ पाइ,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.01} धरा धरा-धरनि सुसावधान करी है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.02} सुमिरि गनेस-गुर, गौरि-हर भूमिसुर,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.02} सोचत सकोचत सकोची बानि धरी है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.02} दीनबन्धु, कृपसिन्धु साहसिक, सीलसिन्धु,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.02} सभाको सकोच कुलहूकी लाज परी है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.03} पेखि पुरुषारथ, परखि पन, पेम, नेम,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.03} सिय-हियकी बिसेषि बड़ी खरभरी है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.03} दाहिनोदियो पिनाकु, सहमि भयो मनाकु,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.03} महाब्याल बिकल बिलोकि जनु जरी है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.04} सुर हरषत, बरषत फूल बार बार,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.04} सिद्ध-मुनि कहत, सगुन, सुभ घरी है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.04} राम बाहु-बिटप बिसाल बौण्ड़ी देखियत,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.04} जनक-मनोरथ कलपबेलि फरी है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.05} लख्यो न चढ़ावत, न तानत, न तोरत हू,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.05} घोर धुनि सुनि सिवकी समाधि टरी है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.05} प्रभुके चरित चारु तुलसी सुनत सुख,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 092.05} एक ही सुलाभ सबहीकी हानि हरी है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 093.राग} सारङ्ग
| + | |
− | {गीता.[बाल] 093.01} राम कामरिपु-चाप चढ़ायो |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 093.01} मुनिहि पुलक, आनन्द नगर, नभ निरखि निसान बजायो ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 093.02} जेहि पिनाक बिनु नाक किए नृप, सबहि बिषाद बढ़ायो |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 093.02} सोइ प्रभु कर परसत टुट्यो, जनु हुतो पुरारि पढ़ायो ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 093.03} पहिराई जयमाल जानकी, जुबतिन्ह मङ्गल गायो |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 093.03} तुलसी सुमन बरषि हरषे सुर, सुजस तिहू पुर छायो ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 094.राग} टोड़ी
| + | |
− | {गीता.[बाल] 094.01} जनक मुदित मन टूटत पिनाकके |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 094.01} बाजे हैं बधावने, सुहावने मङ्गल-गान,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 094.01} भयो सुख एकरस रानी राजा राँकके ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 094.02} दुन्दुभी बजाइ, गाइ हरषि बरषि फूल,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 094.02} सुरगन नाचैं नाच नायकहू नाकके |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 094.02} तुलसी महीस देखे दिन रजनीस जैसे,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 094.02} सूने परे सून-से मनो मोटाए आँकके ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.01} लाज तोरि, साजि साज राजा राढ़ रोषे हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.01} कहा भौ चढ़ाए चाप, ब्याह ह्वै है बड़े खाए,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.01} बोलैं, खोलैं सेल, असि चमकत चोखे हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.02} जानि पुरजन त्रसे, धीर दै लषन हँसे,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.02} बल इनको पिनाक नीके नापे-जोखे हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.02} कुलहि लजावैं बाल, बालिस बजावैं गाल,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.02} कैधौं कूर कालबस, तमकि त्रिदोषे हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.03} कुँवर चढ़ाई भौंहैं, अब को बिलोकै सोहैं,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.03} जहँ तहँ भे अचेत, खेतके-से धोखे हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.03} देखे नर-नारि कहैं, साग खाइ जाए माइ,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.03} बाहु पीन पाँवरनि पीना खाइ पोखे हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.04} प्रमुदित-मन लोक-कोक-नद कोकगन,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.04} रामके प्रताप-रबि सोच-सर सोखे हैं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.04} तबके देखैया तोषे, तबके लोगनि भले,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 095.04} अबके सुनैया साधु तुलसिहु तोषे हैं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.01} जयमाल जानकी जलजकर लई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.01} सुमन सुमङ्गल सगुनकी बनाइ मञ्जु,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.01} मानहु मदनमाली आपु निरमई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.02} राज-रुख लखि गुर भूसुर सुआसिनिन्ह,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.02} समय-समाजकी ठवनि भली ठई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.02} चलीं गान करत, निसान बाजे गहगहे,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.02} लहलहे लोयन सनेह सरसई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.03} हनि देव दुन्दुभी हरषि बरषत फूल,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.03} सफल मनोरथ भौ, सुख-सुचितई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.03} पुरजन-परिजन, रानी-राउ प्रमुदित,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.03} मनसा अनूप राम-रुप-रङ्ग रई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.04} सतानन्द-सिष सुनि पाँय परि पहिराई,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.04} माल सिय पिय-हिय, सोहत सो भई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.04} मानसतें निकसि बिसाल सुतमालपर,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.04} मानहुँ मरालपाँति बैठी बनि गई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.05} हितनिके लाहकी, उछाहकी, बिनोद-मोद,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.05} सोभाकी अवधि नहि अब अधिकई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.05} याते बिपरीत अनहितनकी जानि लीबी
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.05} गति, कहै प्रगट, खुनिस खासी खई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.06} निज निज बेदकी सप्रेम जोग-छेम-मई,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.06} मुदित असीस बिप्र बिदुषनि दई है |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.06} छबि तेहि कालकी कृपालु सीतादूलहकी
| + | |
− | {गीता.[बाल] 096.06} हुलसति हिये तुलसीके नित नई है ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.01} लेहु री! लोचननिको लाहु |
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− | {गीता.[बाल] 097.01} कुँवर सुन्दर साँवरो, सखि सुमुखि ! सादर चाहु ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.02} खण्डि हर-कोदण्ड ठाढ़े, जानु-लम्बित-बाहु |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.02} रुचिर उर जयमाल राजति, देत सुख सब काहु ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.03} चितै चित-हित-सहित नख-सिख अंग-अंग निबाहु |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.03} सुकृत निज, सियराम-रुप, बिरञ्चि-मतिहि सराहु ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.04} मुदित मन बरबदन-सोभा उदित अधिक उछाहु |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.04} मनहु दूरि कलङ्क करि ससि समर सूद्यो राहु ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.05} नयन सुखमा-अयन हरत सरोज-सुन्दरताहु |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 097.05} बसत तुलसीदास-उरपुर जानकीकौ नाहु ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 098.राग} सारङ्ग
| + | |
− | {गीता.[बाल] 098.01} भूपके भागकी अधिकाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 098.01} टूट्यो धनुष, मनोरथ पूज्यौ, बिधि सब बात बनाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 098.02} तबतें दिन-दिन उदय जनकको जबतें जानकी जाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 098.02} अब यहि ब्याह सफल भयो जीवन, त्रिभुवन बिदित बड़ाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 098.03} बारहि बार पहुनई ऐहैं राम लषन दोउ भाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 098.03} एहि आनन्द मगन पुरबासिन्ह देहदसा बिसराई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 098.04} सादर सकल बिलोकत रामहि, काम-कोटि छबि छाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 098.04} यह सुख समौ समाज एक मुख क्यों तुलसी कहै गाई ||
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− | {गीता.[बाल] 099.01} विवाहकी तैयारी
| + | |
− | {गीता.[बाल] 099.राग} सोरठ
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− | {गीता.[बाल] 099.01} मेरे बालक कैसे धौं मग निवहहिङ्गे ?
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− | {गीता.[बाल] 099.01} भूख, पियास, सीत, श्रम सकुचनि क्यों कौसिकहि कहहिङ्गे ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 099.02} को भोर ही उबटि अन्हवैहै, काढ़ि कलेऊ दैहै?
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− | {गीता.[बाल] 099.02} को भूषन पहिराइ निछावरि करि लोचन-सुख लैहै ?||
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− | {गीता.[बाल] 099.03} नयन निमेषनि ज्यों जोगवैं नित पितु-परिजन-महतारी |
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− | {गीता.[बाल] 099.03} ते पठए ऋषि साथ निसाचर मारन, मख रखवारी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 099.04} सुन्दर सुठि सुकुमार सुकोमल काकपच्छ-धर दोऊ |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 099.04} तुलसी निरखि हरषि उर लैहौं बिधि ह्वैहै दिन सोऊ?||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 100.01} ऋषि नृप-सीस ठगौरी-सी डारी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 100.01} कुलगुर, सचिव, निपुन नेवनि अवरेब न समुझि सुधारी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 100.02} सिरिस-सुमन-सुकुमार कुँवर दोउ, सूर सरोष सुरारी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 100.02} पठए बिनहि सहाय पयादेहि केलि-बान-धनुधारी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 100.03} अति सनेह-कातरि माता कहै, सुनि सखि ! बचन दुखारी |
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− | {गीता.[बाल] 100.03} बादि बीर-जननी-जीवन जग, छत्रि-जाति-गति भारी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 100.04} जो कहिहै फिरे राम-लखन घर करि मुनिमख-रखवारी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 100.04} सो तुलसी प्रिय मोहिं लागिहै ज्यौं सुभाय सुत चारी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 101.01} जबतें लै मुनि सङ्ग सिधाए |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 101.01} राम लखनके समाचार, सखि तबतें कछुअ न पाए ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 101.02} बिनु पानही गमन, फल भोजन, भूमि सयन तरुछाहीं |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 101.02} सर-सरिता जलपान, सिसुनके सँग सुसेवक नाहीं ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 101.03} कौसिक परम कृपालु परमहित, समरथ, सुखद, सुचाली |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 101.03} बालक सुठि सुकुमार सकोची, समुझि सोच मोहि आली ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 101.04} बचन सप्रेम सुमित्राके सुनि सब सनेह-बस रानी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 101.04} तुलसी आइ भरत तेहि औसर कही सुमङ्गल बानी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.01} सानुज भरत भवन उठि धाए |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.01} पितु-समीप सब समाचार सुनि, मुदित मातु पहँ आए ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.02} सजल नयन, तनु पुलक, अधर फरकत लखि प्रीति सुहाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.02} कौसल्या लिये लाइ हृदय, बलि कहौ, कछु है सुधि पाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.03} सतानन्द उपरोहित अपने तिरहुति-नाथ पठाए |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.03} खेम कुसल रघुबीर-लषनकी ललित पत्रिका ल्याए ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.04} दलि ताडुका, मारि निसिचर, मख राखि, बिप्र-तिय तारी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.04} दै बिद्या लै गये जनकपुर, हैं गुरु-सङ्ग सुखारी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.05} करि पिनाक-पन, सुता-स्वयम्बर सजि, नृप-कटक बटोर्यो |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.05} राजसभा रघुबर मृनाल ज्यों सम्भु-सरासन तोर्यो ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.06} यों कहि सिथिल-सनेह बन्धु दोउ, अंब अंक भरि लीन्हें |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.06} बार-बार मुख चूमि, चारु मनि-बसन निछावरि कीन्हें ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.07} सुनत सुहावनि चाह अवध घर घर आनन्द बधाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 102.07} तुलसिदास रनिवास रहस-बस, सखी सुमङ्गल गाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.01} रागकान्हरा
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.01} राम-लषन सुधि आई बाजै अवध बधाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.01} ललित लगन लिखि पत्रिका,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.01} उपरोहितके कर जनक-जनेस पठाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.02} कन्या भूप बिदेहकी रुपकी अधिकाई,
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.02} तासु स्वयम्बर सुनि सब आए
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.02} देस देसके नृप चतुरङ्ग बनाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.03} पन पिनाक, पबि मेरु तें गुरुता कठिनाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.03} लोकपाल, महिपाल, बान बानैत,
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− | {गीता.[बाल] 103.03} दसानन सके न चाप चढ़ाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.04} तेहि समाज रघुराजके मृगराज जगाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.04} भञ्जि सरासन सम्भुको जग जय,
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− | {गीता.[बाल] 103.04} कल कीरति, तिय तियमनि सिय पाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.05} पुर घर घर आनन्द महा सुनि चाह सुहाई |
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− | {गीता.[बाल] 103.05} मातु मुदित मङ्गल सजैं,
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− | {गीता.[बाल] 103.05} कहैं मुनि प्रसाद भये सकल सुमङ्गल, माई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.06} गुरु-आयसु मण्डप रच्यो, सब साज सजाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 103.06} तुलसिदास दसरथ बरात सजि,
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− | {गीता.[बाल] 103.06} पूजि गनेसहि चले निसान बजाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 104.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[बाल] 104.01} मनमें मञ्जु मनोरथ हो, री !
| + | |
− | {गीता.[बाल] 104.01} सो हर-गौरि-प्रसाद एकतें, कौसिक, कृपा चौगुनो भो, री !||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 104.02} पन-परिताप, चाप-चिन्ता निसि, सोच-सकोच-तिमिर नहिं थोरी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 104.02} रबिकुल-रबि अवलोकि सभा-सर हितचित-बारिज-बन बिकसोरी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 104.03} कुँवर-कुँवरि सब मङ्गल मूरति, नृप दोउ धरमधुरधर धोरी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 104.03} राजसमाज भूरि-भागी, जिन लोचन लाहु लह्यो एक ठौरी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 104.04} ब्याह-उछाह राम-सीताको सुकृत सकेलि बिरञ्चि रच्यो, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 104.04} तुलसिदास जानै सोइ यह सुख जेहि उर बसति मनोहर जोरी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.01} राजति राम-जानकी-जोरी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.01} स्याम-सरोज जलद सुन्दर बर, दुलहिनि तड़ित-बरन तनु गोरी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.02} ब्याह समय सोहति बितानतर, उपमा कहुँ न लहति मति मोरी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.02} मनहुँ मदन मञ्जुल मण्डपमहँ छबि-सिँगार-सोभा इक ठौरी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.03} मङ्गलमय दोउ, अंग मनोहर, ग्रथित चूनरी पीत पिछोरी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.03} कनककलस कहँदेत भाँवरी, निरखि रुप सारद भै भोरी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.04} इत बसिष्ठ मुनि, उतहि सतानँद, बंस बखान करैं दोउ ओरी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.04} इत अवधेस, उतहि मिथिलापति, भरत अंक सुखसिन्धु हिलोरी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.05} मुदित जनक, रनिवास रहसबस, चतुर नारि चितवहिं तृन तोरी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.05} गान-निसान-बेद-धुनि सुनि सुर बरसत सुमन, हरष कहै कोरी?||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.06} नयननको फल पाइ प्रेमबस सकल असीसत ईस निहोरी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 105.06} तुलसी जेहि आनन्दमगन मन, क्यों रसना बरनै सुख सो री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 106.01} दूलह राम, सीय दुलही री
| + | |
− | {गीता.[बाल] 106.01} घन-दामिनि बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नखसिख निबही, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 106.02} ब्याह-बिभूषन-बसन-बिभूषित, सखि अवली लखि ठगि सी रही, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 106.02} जीवन-जनम-लाहु, लोचन-फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 106.03} सुखमा सुरभि सिँगार-छीर दुहि मयन अमियमय कियो है दही, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 106.03} मथि माखन सिय-राम सँवारे, सकल भुवन छबि मनहु मही, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 106.04} तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा अतुल, न जाति कही, री |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 106.04} रुप-रासि बिरची बिरञ्चि मनो, सिला लवनि रति-काम लही, री ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 107.01} जैसे ललित लषन लाल लोने |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 107.01} तैसिये ललित उरमिला, परसपर लषत सुलोचन कोने ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 107.02} सुखमासार सिगाँरसार करि कनक रचे हैं तिहि सोने |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 107.02} रुपप्रेम-परमिति न परत कहि, बिथकि रही मति मौने ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 107.03} सोभा सील-सनेह सोहावनो, समौ केलिगृह गौने |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 107.03} देखि तियनिके नयन सफल भये, तुलसीदासहूके होने ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.राग} बिलावल
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.01} जानकी-बर सुन्दर, माई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.01} इन्द्रनील-मनि-स्याम सुभग, अँग-अंग मनोजनि बहु छबि छाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.02} अरुन चरन, अंगुली मनोहर, नख दुतिवन्त, कछुक अरुनाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.02} कञ्जदलनिपर मनहु भौम दस बैठे अचल सुसदसि बनाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.03} पीन जानु, उर चारु, जटित मनि नूपुर पद कल मुखर सोहाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.03} पीत पराग भरे अलिगन जनु जुगल जलज लखि रहे लोभाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.04} किङ्किनि कनक कञ्ज अवली मृदु मरकत सिखर मध्य जनु जाई |
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− | {गीता.[बाल] 108.04} गई न उपर, सभीत नमित मुख, बिकसि चहूँ दिसि रही लोनाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.05} नाभि गँभीर, उदर रेखा बर, उर भृगु-चरन-चिन्ह सुखदाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.05} भुज प्रलम्ब भूषन अनेक जुत, बसन पीत सोभा अधिकाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.06} जग्योपबीत बिचित्र हेममय, मुक्तामाल उरसि मोहि भाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.06} कन्द-तड़ित बिच जनु सुरपति धनु रुचिर बलाक पाँति चलि आई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.07} कम्बु कण्ठ चिबुकाधर सुन्दर, क्यों कहौं दसनन की रुचिराई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.07} पदुमकोस महँ बसे बज्र मनो निज सँग तड़ित-अरुन-रुचि लाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.08} नासिक चारु, ललित लोचन, भ्रकुटिल, कचनि अनुपम छबि पाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.08} रहे घेरि राजीव उभय मनो चञ्चरीक कछु हृदय डेराई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.09} भाल तिलक, कञ्चन किरीट सिर, कुण्डल लोल कपोलनि झाँई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.09} निरखहिं नारि-निकर बिदेहपुर निमि नृपकी मरजाद मिटाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.10} सारद-सेस-सम्भु निसि-बासर चिन्तत रुप, न हृदय समाई |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 108.10} तुलसिदास सठ क्यों करि बरनै यह छबि निगम नेति कह गाई ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 109.01} अयोध्या-आगमन
| + | |
− | {गीता.[बाल] 109.राग} कान्हरा
| + | |
− | {गीता.[बाल] 109.01} भुजनिपर जननी वारि-फेरि डारी |
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− | {गीता.[बाल] 109.01} क्यों तोर्यो कोमल कर-कमलनि सम्भु-सरासन भारी? ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 109.02} क्यों मारीच सुबाहु महाबल प्रबल ताडका मारी ?
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− | {गीता.[बाल] 109.02} मुनि-प्रसाद मेरे राम-लषनकी बिधि बड़ि करवर टारी ||
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− | {गीता.[बाल] 109.03} चरनरेनु लै नयननि लावति, क्यों मुनिबधू उधारी |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 109.03} कहौधौं तात! क्यों जीति सकल नृप बरी है बिदेहकुमारी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 109.04} दुसह-रोष-मूरति भृगुपति अति नृपति-निकर खयकारी |
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− | {गीता.[बाल] 109.04} क्यों सौम्प्यो सारङ्ग हारि हिय, करी है बहुत मनुहारी ||
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− | {गीता.[बाल] 109.05} उमगि-उमगि आनन्द बिलोकति बधुन सहित सुत चारी |
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− | {गीता.[बाल] 109.05} तुलसिदास आरती उतारति प्रेम-मगन महतारी ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 110.01} मुदित-मन आरती करैं माता |
| + | |
− | {गीता.[बाल] 110.01} कनक-बसन-मनि वारि-वारि करि पुलक प्रफुल्लित गाता ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 110.02} पालागनि दुलहियन सिखावति सरिस सासु सत-साता |
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− | {गीता.[बाल] 110.02} देहिं असीस ते बरिस कोटि लगि अचल होउ अहिबाता ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 110.03} राम सीय-छबि देखि जुबतिजन करहिं परसपर बाता |
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− | {गीता.[बाल] 110.03} अब जान्यो साँचहू सुनहु, सखि! कोबिद बड़ो बिधाता ||
| + | |
− | {गीता.[बाल] 110.04} मङ्गल-गान निसान नगर-नभ आनँद कह्यो न जाता |
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− | {गीता.[बाल] 110.04} चिरजीवहु अवधेस-सुवन सब तुलसिदास-सुखदाता ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 111.01} अयोध्याकाण्ड
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− | {गीता.[अयो] 111.01} राज्याभिषेककी तैयारी
| + | |
− | {गीता.[अयो] 111.राग} सोरठ
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− | {गीता.[अयो] 111.01} नृप कर जोरि कह्यो गुर पाहीं |
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− | {गीता.[अयो] 111.01} तुम्हरी कृपा असीस, नाथ! मेरी सबै महेस निबाहीं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 111.02} राम होहिं जुबराज जियत मेरे, यह लालच मन माहीं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 111.02} बहुरि मोहिं जियबे-मरिबेकी चित चिन्ता कछु नाहीं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 111.03} महाराज, भलो काज बिचार्यो, बेगि बिलम्ब न कीजै |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 111.03} बिधि दाहिनो होइ तौ सब मिलि जनम-लाहु लुटि लीजै ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 111.04} सुनत नगर आनन्द बधावन, कैकेयी बिलखानी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 111.04} तुलसीदास देवमायाबस कठिन कुटिलता ठानी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 112.01} वनके लिये विदाई
| + | |
− | {गीता.[अयो] 112.राग} गौरी
| + | |
− | {गीता.[अयो] 112.01} सुनहु राम मेरे प्रानपियारे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 112.01} बारौं सत्य बचन श्रुति-सम्मत, जाते हौं बिछुरत चरन तिहारे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 112.02} बिनु प्रयास सब साधनको फल प्रभु पायो, सो तो नाहिं सँभारे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 112.02} हरि तजि धरमसील भयो चाहत, नृपति नारिबस सरबस हारे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 112.03} रुचिर काँचमनि देखि मूढ ज्यों करतलतें चिन्तामनि डारे |
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− | {गीता.[अयो] 112.03} मुनि-लोचन-चकोर-ससि-राघव, सिव-जीवनधन, सोउ न बिचारे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 112.04} जद्यपि नाथ तात! मायाबस सुखनिधान सुत तुम्हहिं बिसारे |
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− | {गीता.[अयो] 112.04} तदपि हमहि त्यागहु जनि रघुपति, दीनबन्धु, दयालु, मेरे बारे ||
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− | {गीता.[अयो] 112.05} अतिसय प्रीति बिनीत बचन सुनि, प्रभु कोमल चित चलत न पारे |
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− | {गीता.[अयो] 112.05} तुलसिदास जौ रहौं मातु-हित, को सुर-बिप्र-भूमि-भय टारे ?||5.|
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− | {गीता.[अयो] 113.01} रहि चलिये सुन्दर रघुनायक |
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− | {गीता.[अयो] 113.01} जो सुत तात-बचन-पालन-रत, जननिउ तात मानिबे लायक ||
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− | {गीता.[अयो] 113.02} बेद-बिदित यह बानि तुम्हारी, रघुपति सदा सन्त-सुखदायक |
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− | {गीता.[अयो] 113.02} राखहु निज मरजाद निगमकी, हौं बलि जाउँ, धरहु धनुसायक ||
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− | {गीता.[अयो] 113.03} सोक कूप पुर परिहि, मरिहि नृप, सुनि सँदेस रघुनाथ सिधायक |
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− | {गीता.[अयो] 113.03} यह दूसन बिधि तोहि होत अब रामचरन-बियोग-उपजायक ||
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− | {गीता.[अयो] 113.04} मातु बचन सुनि स्रवत नयन जल, कछु सुभाउ जनु नरतनु-पायक |
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− | {गीता.[अयो] 113.04} तुलसिदास सुर-काज न साध्यौ तौ तो दोष होय मोहि महि आयक ||
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− | {गीता.[अयो] 114.राग} सोरठ
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− | {गीता.[अयो] 114.01} राम! हौं कौन जतन घर रहिहौं ?
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− | {गीता.[अयो] 114.01} बार बार भरि अंक गोद लै ललन कौनसों कहिहौं ||
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− | {गीता.[अयो] 114.02} इहि आँगन बिहरत मेरे बारे! तुम जो सङ्ग सिसु लीन्हें |
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− | {गीता.[अयो] 114.02} कैसे प्रान रहत सुमिरत सुत, बहु बिनोद तुम कीन्हें ||
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− | {गीता.[अयो] 114.03} जिन्ह श्रवननि कल बचन तिहारे सुनि सुनि हौं अनुरागी |
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− | {गीता.[अयो] 114.03} तिन्ह श्रवननि बनगवन सुनति हौं मोतें कौन अभागी ?||
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− | {गीता.[अयो] 114.04} जुग सम निमिष जाहिं रघुनन्दन, बदनकमल बिनु देखे |
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− | {गीता.[अयो] 114.04} जौ तनु रहै बरष बीते, बलि कहा प्रीति इहि लेखे ?||
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− | {गीता.[अयो] 114.05} तुलसीदास प्रेमबस श्रीहरि देखि बिकल महतारी |
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− | {गीता.[अयो] 114.05} गदगद कण्ठ, नयन जल, फिरि-फिरि आवन कह्यो मुरारी ||
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− | {गीता.[अयो] 115.राग} बिलावल
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− | {गीता.[अयो] 115.01} रहहु भवन हमरे कहे, कामिनि!
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− | {गीता.[अयो] 115.01} सादर सासु-चरन सेवहु नित, जो तुम्हरे अति हित गृह-स्वामिनि ||
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− | {गीता.[अयो] 115.02} राजकुमारि! कठिन कण्टक मग, क्यों चलिहौ मृदु पद गजगामिनि |
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− | {गीता.[अयो] 115.02} दुसह बात, बरषा, हिम, आतप कैसे सहिहौ अगनित दिन जामिनि ||
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− | {गीता.[अयो] 115.03} हौं पुनि पितु-आग्या प्रमान करि ऐहौं बेगि सुनहु दुति-दामिनि |
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− | {गीता.[अयो] 115.03} तुलसिदास प्रभु बिरह-बचन सुनि सहि न सकी, मुरछित भै भामिनि ||
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− | {गीता.[अयो] 116.01} कृपानिधान सुजान प्रानपति, सङ्ग बिपिन ह्वै आवोङ्गी |
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− | {गीता.[अयो] 116.01} गृहतें कोटि-गुनित सुख मारग चलत, साथ सचु पावोङ्गी ||
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− | {गीता.[अयो] 116.02} थाके चरनकमल चापौङ्गी, श्रम भए बाउ डोलावोङ्गी |
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− | {गीता.[अयो] 116.02} नयन-चकोरनि मुखमयङ्क-छबि सादर पान करावोङ्गी ||
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− | {गीता.[अयो] 116.03} जौ हठि नाथ राखिहौ मो कहँ, तौ सँग प्रान पठावोङ्गी |
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− | {गीता.[अयो] 116.03} तुलसिदास प्रभु बिनु जीवत रहि क्यों फिरि बदन देखावोङ्गी?||
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− | {गीता.[अयो] 117.01} कहौ तुम्ह बिनु गृह मेरो कौन काजु ?
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− | {गीता.[अयो] 117.01} बिपिन कोटि सुरपुर समान मोको, जो पै पिय परिहर्यो राजु ||
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− | {गीता.[अयो] 117.02} बलकल बिमल दुकूल मनोहर, कन्द-मूल-फल आमिय नाजु |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 117.02} प्रभुपद-कमल बिलोकिहैं छिन-छिन, इहि तें अधिक कहा सुख-समाजु ||
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− | {गीता.[अयो] 117.03} हौं रहौं भवन भोग-लोलुप ह्वै, पति कानन कियो मुनिको साजु |
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− | {गीता.[अयो] 117.03} तुलसिदास ऐसे बिरह-बचन सुनि कठिन हियो बिदरो न आजु ||
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− | {गीता.[अयो] 118.01} प्रिय निठुर बचन कहे कारन कवन ?
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− | {गीता.[अयो] 118.01} जानत हौ सबके मनकी गति, मृदुचित परम कृपालु, रवन !||
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− | {गीता.[अयो] 118.02} प्राननाथ सुन्दर सुजानमनि, दीनबन्धु, जग-आरति-दवन |
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− | {गीता.[अयो] 118.02} तुलसिदास प्रभु-पदसरोज तजि रहि हौं कहा करौङ्गी भवन ?||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 119.01} मैं तुमसों सतिभाव कही है |
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− | {गीता.[अयो] 119.01} बूझति और भाँति भामिनि कत, कानन कठिन कलेस सही है ||
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− | {गीता.[अयो] 119.02} जौ चलिहौ तौ चलो चलि कै बन, सुनि सिय मन अवलम्ब लही है |
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− | {गीता.[अयो] 119.02} बूड़त बिरह-बारिनिधि मानहु नाह बचनमिस बाँह गही है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 119.03} प्राननाथके साथ चलीं उठि, अवध सोकसरि उमगि बही है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 119.03} तुलसी सुनी न कबहुँ काहु कहुँ, तनु परिहरि परिछाँहि रही है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 120.01} जबहि रघुपति-सँग सीय चली |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 120.01} बिकल-बियोग लोग-पुरतिय कहैं ,अति अन्याउ, अली ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 120.02} कोउ कहै, मनिगन तजत काँच लगि, करत न भूप भली |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 120.02} कोउ कहै, कुल-कुबेलि कैकेयी दुख-बिष-फलनि फली ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 120.03} एक कहैं, बन जोग जानकी बिधि बड़ बिषम बली |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 120.03} तुलसी कुलिसहुकी कठोरता तेहि दिन दलकि दली ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 121.01} ठाढ़े हैं लषन कमलकर जोरे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 121.01} उर धकधकी, न कहत कछु सकुचनि, प्रभु परिहरत सबनि तृन तोरे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 121.02} कृपासिन्धु अवलोकि बन्धु तन, प्रान-कृपान बीर-सी छोरे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 121.02} तात बिदा माँगिए मातुसों, बनिहै बात उपाइ न औरे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 121.03} जाइ चरन गहि आयसु जाँची, जननि कहत बहुभाँति निहोरे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 121.03} सिय-रघुबर-सेवा सुचि ह्वैहौ तौ जानिहौं, सही सुत मोरे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 121.04} कीजहु इहै बिचार निरन्तर, राम समीप सुकृत नहिं थोरे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 121.04} तुलसी सुनि सिष चले चकित-चित उड्यो मानो बिहग बधिक भए भोरे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 122.01} मोको बिधुबदन बिलोकन दीजै |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 122.01} राम लषन मेरी यहैं भेण्ट, बलि, जाउ, जहाँ मोहि मिलि लीजै ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 122.02} सुनि पितु-बचन चरन गहे रघुपति, भूप अंक भरि लीन्हें |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 122.02} अजहुँ अवनि बिदरत दरार मिस सो अवसर सुधि कीन्हें ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 122.04} पुनि सिर नाइ गवन कियो प्रभु, मुरछित भयो भूप न जाग्यो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 122.04} करम-चोर नृप-पथिक मारि मानो राम-रतन लै भाग्यो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 122.04} तुलसी रबिकुल-रबि रथ चढ़ि चले तकि दिसि दखिन सुहाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 122.04} लोग नलिन भए मलिन अवध-सर, बिरह बिषम हिम पाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.01} कहौ सो बिपिन है धौं केतिक दूरि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.01} जहाँ गवन कियो, कुँवर कोसलपति, बूझति सिय पिय पतिहि बिसूरि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.02} प्राननाथ परदेस पयादेहि चले सुख सकल तजे तृन तूरि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.02} करौं बयारि, बिलम्बिय बिटपतर, झारौं हौं चरन-सरोरुह-धूरि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.03} तुलसिदास प्रभु प्रियाबचन सुनि नीरजनयन नीर आए पूरि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.03} कानन कहाँ अबहिं सुनु सुन्दरि, रघुपति फिरि चितए हित भूरि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.02} फिरि-फिरि राम सीय तनु हेरत |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.02} तृषित जानि जल लेन लषन गए, भुज उठाइ ऊँचे चढ़ि टेरत ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.02} अवनि कुरङ्ग, बिहँग द्रुम-डारन रुप निहारत पलक न प्रेरत |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.02} मगन न डरत निरखि कर-कमलनि सुभग सरासन सायक फेरत ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.03} अवलोकत मग-लोग चहूँ दिसि, मनहु चकोर चन्द्रमहि घेरत |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 123.03} ते जन भूरिभाग भूतलपर तुलसी राम-पथिक-पद जे रत ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 124.01} नृपति-कुँवर राजत मग जात |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 124.01} सुन्दर बदन, सरोरुह-लोचन, मरकत कनकबरन मृदु गात ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 124.02} अंसनि चाप, तून कटि मुनि पट, जटामुकुट बिच नूतन पात |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 124.02} फेरत पानि सरोजनि सायक, चोरत चितहि सहज मुसुकात ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 124.03} सङ्ग नारि सुकुमारि सुभग सुठि, राजति बिन भूषन नव-सात |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 124.03} सुखमा निरखि ग्राम-बनितनिके नलिन-नयन बिकसित मनो प्रात ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 124.04} अंग-अंग अगनित अनङ्ग-छबि, उपमा कहत सुकबि सकुचात |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 124.04} सियसमेत नित तुलसिदास चित, बसत किसोर पथिक दोउ भ्रात ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.01} तू देखि देखि री! पथिक परम सुन्दर दोऊ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.01} मरकत-कलधौत-बरन काम-कोटि-कान्तिहरन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.01} चरन-कमल कोमल अति, राजकुँवर कोऊ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.02} कर सर-धनु, कटि निषङ्ग, मुनिपट सोहैं सुभग अंग,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.02} सङ्ग चन्द्रबदनि बधू, सुन्दरि सुठि सोऊ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.02} तापस बर बेष किए, सोभा सब लूटि लिए,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.02} चितके चोर, बय किसोर, लोचन भरि जोऊ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.03} दिनकर-कुलमनि निहारि प्रेम-मगन ग्राम-नारि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.03} परसपर कहैं, सखि ! अनुराग ताग पोऊ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.03} तुलसी यह ध्यान-सुधन जानि मानि लाभ सघन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 125.03} कृपिन ज्यों सनेह सो हिये-सुगेह गोऊ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.01} कुँवर साँवरो, री सजनी! सुन्दर सब अंग |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.01} रोम रोम छबि निहारि आलि बारि फेरि डारि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.01} कोटि भानु-सुवन सरद-सोम, कोटि अनङ्ग ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.02} बाम अंग लसत चाप, मौलि मञ्जु जटा-कलाप,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.02} सुचि सर कर, मुनिपट कटि-तट कसे निषङ्ग |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.02} आयत उर-बाहु नैन, मुख-सुखमाको लहै न,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.02} उपमा अवलोकि लोक, गिरामति-गति भङ्ग ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.03} यों कहि भईं मगन बाल, बिथकीं सुनि जुबति जाल,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.03} चितवत चले जात सङ्ग, मधुप-मृग-बिहङ्ग |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.03} बरनौं किमि तिनकी दसहि, निगम-अगम प्रेम-रसहि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 126.03} तुलसी मन-बसन रँगे रुचिर रुपरङ्ग ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.राग} कल्याण
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.01} देखु, कोऊ परम सुन्दर सखि! बटोही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.01} चलतमहि मृदु चरन अरुन-बारिज-बरन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.01} भूपसुत रुपनिधि निरखि हौं मोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.02} अमल मरकत स्याम, सील-सुखमा-धाम,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.02} गौरतनु सुभग सोभा सुमुखि जोही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.02} जुगल बिच नारि सुकुमारि सुठि सुन्दरी,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.02} इंदिरा इंदु-हरि मध्य जनु सोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.03} करनि बर धनु तीर, रुचिर कटि तूनीर,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.03} धीर, सुर-सुखद, मरदन अवनि-द्रोही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.03} अंबुजायत नयन, बदन-छबि बहु मयन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.03} चारु चितवनि चतुर लेति चित पोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.04} बचन प्रिय सुनि श्रवन राम करुनाभवन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.04} चितए सब अधिक हित सहित कछु ओही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.04} दास तुलसी नेह-बिबस बिसरी देह,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 127.04} जान नहि आपु तेहि काल धौं को ही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.01} सखि! नीके कै निरखि, कोऊ सुठि सुन्दर बटोही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.01} मधुर मूरति मदनमोहन जोहन-जोग,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.01} बदन सोभासदन देखि हौं मोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.02} साँवरे-गोरे किसोर, सुर-मुनि-चित-चोर,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.02} उभय-अंतर एक नारि सोही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.02} मनहु बारिद-बिधु बीच ललित अति,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.02} राजति तड़ित निज सहज बिछोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.03} उर धीरजहि धरि, जनम सफल करि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.03} सुनहि सुमुखि! जनि बिकल होही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.03} को जानै, कौने सुकृत लह्यो है लोचन-लाहु,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.03} तारितें बारहि बार कहति तोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.04} सखिहि सुसिख दई, प्रेम-मगन भई,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.04} सुरति बिसरि गई आपनी ओही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.04} तुलसी रही है ठाढ़ी पाहन गढ़ी-सी काढ़ी,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 128.04} कौन जानै, कहाँतें आई, कौनकी को ही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.01} माई मनके मोहन जोहन-जोग जोही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.01} थोरी ही बयस गोरे-साँवरे सलोने लोने,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.01} लोयन ललित, बिधुबदन बटोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.02} सिरनि जटा-मुकुट मञ्जुल सुमनजुत,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.02} तैसिये लसति नव पल्लव खोही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.02} किये मुनि-बेष बीर, धरे धनु-तून-तीर,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.02} सोहैं मग, को हैं, लखि परै न मोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.03} सोभाको साँचो साँवरि रुप जातरुप,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.03} ढारि नारि बिरची बिरञ्चि, सङ्ग सोही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.03} राजत रुचिर तनु सुन्दर श्रमके कन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.03} चाहे चकचौन्धी लागै, कहौं का तोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.04} सनेह-सिथिल सुनि बचन सकल सिया,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.04} चिती अधिक हित सहित ओही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.04} तुलसी मनहु प्रभु-कृपाकी मूरति फिरि
| + | |
− | {गीता.[अयो] 129.04} हेरि कै हरषि हिये लियो है पोही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 130.01} सखि सरद-बिमल बिधुबदनि बधूटी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 130.01} ऐसी ललना सलोनी न भई, न है, न होनी,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 130.01} रत्यो रची बिधि जो छोलत छबि छूटी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 130.02} साँवरे गोरे पथिक बीच सोहति अधिक,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 130.02} तिहुँ त्रिभुवन-सोभा मनहु लूटी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 130.02} तुलसी निरखि सिय प्रेमबस कहैं तिय,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 130.02} लोचन-सिसुन्ह देहु अमिय घूटी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 131.01} सोहैं साँवरे पथिक, पाछे ललना लोनी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 131.01} दामिनि-बरन गोरी, लखि सखि तृन तोरी,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 131.01} बीती हैं बय किसोरी, जोबन होनी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 131.02} नीके कै निकाई देखि, जनम सफल लेखि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 131.02} हम-सी भूरि-भागिनि नभ न छोनी |
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− | {गीता.[अयो] 131.02} तुलसी-स्वामी-स्वामिनि जोहे मोही हैं भामिनि,
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− | {गीता.[अयो] 131.02} सोभा-सुधा पिए करि अँखिया दोनी ||
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− | {गीता.[अयो] 132.01} पथिक गोरे-साँवरे सुठि लोने |
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− | {गीता.[अयो] 132.01} सङ्ग सुतिय, जाके तनुतें लही है द्युति सोन सरोरुह सोने ||
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− | {गीता.[अयो] 132.02} बय किसोर-सरि-पार मनोहर बयस-सिरोमनि होने |
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− | {गीता.[अयो] 132.02} सोभा-सुधा आलि अँचवहु करि नयन मञ्जु मृदु दोने ||
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− | {गीता.[अयो] 132.03} हेरत हृदय हरत, नहि फेरत चारु बिलोचन कोने |
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− | {गीता.[अयो] 132.03} तुलसी प्रभु किधौं प्रभुको प्रेम पढ़े प्रगट कपट बिनु टोने ||
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− | {गीता.[अयो] 133.01} मनोहरताके मानो ऐन |
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− | {गीता.[अयो] 133.01} स्यामल-गौर किसोर पथिक दोउ, सुमुखि निरखु भरि नैन ||
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− | {गीता.[अयो] 133.02} बीच बधू बिधुबदनि बिराजति, उपमा कहुँ कोऊ है न |
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− | {गीता.[अयो] 133.02} मानहु रति ऋतुनाथ सहित मुनिबेष बनाए है मैन ||
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− | {गीता.[अयो] 133.03} किधौं सिँगार-सुखमा-सुप्रेम मिलि चले जग-चित-बित लैन |
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− | {गीता.[अयो] 133.03} अदभुत त्रयी किधौं पठई है बिधि मग-लोगन्हि सुख दैन ||
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− | {गीता.[अयो] 133.04} सुनि सुचि सरल सनेह सुहावने ग्रामबधुन्हके बैन |
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− | {गीता.[अयो] 133.04} तुलसी प्रभु तरु तर बिलँबे, किए प्रेम कनोड़े कै न ||
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− | {गीता.[अयो] 134.01} बय किसोर गोरे साँवरे धनुबान धरे हैं |
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− | {गीता.[अयो] 134.01} सब अँग सहज सोहावने, राजिव जिते नैननि-बदननि बिधु निदरे हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 134.02} तून-सुमुनिपट कटि कसे, जटा-मुकुट करे हैं |
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− | {गीता.[अयो] 134.02} मञ्जु मधुर मृदुमूरति, पान्ह्यों न पायनि, कैसे धौं पथ बिचरे हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 134.03} उभय बीच बनिता बनी, लखि मोहि परे हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 134.03} मदन सप्रिया सप्रिय सखा मुनि-बेष बनाए लिये मन जात हरे हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 134.04} सुनि जहँ तहँ देखन चले अनुराग भरे हैं |
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− | {गीता.[अयो] 134.04} राम-पथिक छबि निरखि कै, तुलसी,मग-लोगनि धाम-काम बिसरे हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 135.01} कैसे पितु-मातु, कैसे ते प्रिय-परिजन हैं ?
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− | {गीता.[अयो] 135.01} जगजलधि ललाम, लोने लोने, गोरे-स्याम,
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− | {गीता.[अयो] 135.01} जोन पठए हैं ऐसे बालकनि बन हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 135.02} रुपके न पारावार, भूपके कुमार मुनि-बेष,
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− | {गीता.[अयो] 135.02} देखत लोनाई लघु लागत मदन हैं |
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− | {गीता.[अयो] 135.02} सुखमाकी मूरति-सी साथ निसिनाथ-मुखी,
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− | {गीता.[अयो] 135.02} नखसिख अंग सब सोभाके सदन हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 135.03} पङ्कज-करनि चाप, तीर-तरकस कटि,
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− | {गीता.[अयो] 135.03} सरद-सरोजहुतें सुन्दर चरन हैं |
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− | {गीता.[अयो] 135.03} सीता-राम-लषन निहारि ग्रामनारि कहैं,
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− | {गीता.[अयो] 135.03} हेरि, हेरि, हेरि! हेली हियके हरन हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 135.04} प्रानहूके प्रानसे, सुजीवनके जीवनसे,
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− | {गीता.[अयो] 135.04} प्रेमहूके प्रेम, रङ्क कृपिनके धन हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 135.04} तुलसीके लोचन-चकोरके चन्द्रमासे,
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− | {गीता.[अयो] 135.04} आछे मन-मोर चित चातकके घन हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 136.राग} भैरव
| + | |
− | {गीता.[अयो] 136.01} देखि! द्वै पथिक गोरे-साँवरे सुभग हैं |
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− | {गीता.[अयो] 136.01} सुतिय सलोनी सङ्ग सोहत सुभग हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 136.02} सोभासिन्धु-सम्भव-से नीके नीके नग हैं |
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− | {गीता.[अयो] 136.02} मातु-पितु-भाग बस गए परि फँग हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 136.03} पाइँ पनह्यो न, मृदु पङ्कज-से पग हैं
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− | {गीता.[अयो] 136.03} रुपकी मोहनी मेलि मोहे अग-जग हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 136.04} मुनि-बेष धरे, धनु-सायक सुलग हैं |
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− | {गीता.[अयो] 136.04} तुलसी-हिये लसत लोने लोने डग हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 137.01} पथिक पयादे जात पङ्कज-से पाय हैं |
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− | {गीता.[अयो] 137.01} मारग कठिन, कुस-कण्टक-निकाय हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 137.02} सखी! भूखे-प्यासे, पै चलत चित चाय हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 137.02} इन्हके सुकृत सुर-सङ्कर सहाय हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 137.03} रुप-सोभा-प्रेमके-से कमनीय काय हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 137.03} मुनिबेष किये, किधौं ब्रह्म-जीव-माय हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 137.04} बीर, बरियार, धीर, धनुधर-राय हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 137.04} दसचारि-पुर-पाल आली उरगाय हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 137.05} मग-लोग देखत करत हाय हाय हैं |
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− | {गीता.[अयो] 137.05} बन इनको तो बाम बिधि कै बनाय हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 137.06} धन्य ते, जे मीन-से अवधि अंबु-आय हैं |
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− | {गीता.[अयो] 137.06} तुलसी प्रभुसों जिन्हहूँके भले भाय हैं ||
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− | {गीता.[अयो] 138.राग} आसावरी
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− | {गीता.[अयो] 138.01} सजनी! हैं कोउ राजकुमार |
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− | {गीता.[अयो] 138.01} पन्थ चलत मृदु पद-कमलनि दोउ सील-रुप-आगार ||
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− | {गीता.[अयो] 138.02} आगे राजिवनैन स्याम-तनु, सोभा अमित अपार |
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− | {गीता.[अयो] 138.02} डारौं वारि अंग-अंगनिपर कोटि-कोटि सत मार ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 138.03} पाछैं गौर किसोर मनोहर,लोचन-बदन उदार |
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− | {गीता.[अयो] 138.03} कटि तूनीर कसे, कर सर-धनु, चले हरन छिति-भार ||
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− | {गीता.[अयो] 138.04} जुगुल बीच सुकुमारि नारि इक राजति बिनहि सिँगार |
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− | {गीता.[अयो] 138.04} इंद्रनील, हाटक, मुकुतामनि जनु पहिरे महि हार ||
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− | {गीता.[अयो] 138.05} अवलोकहु भरि नैन, बिकल जनि होहु, करहु सुबिचार |
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− | {गीता.[अयो] 138.05} पुनि कहँ यह सोभा, कहँ लोचन, देह-गेह-संसार? ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 138.06} सुनि प्रिय-बचन चितै हित कै रघुनाथ कृपा-सुखसार |
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− | {गीता.[अयो] 138.06} तुलसिदास प्रभु हरे सबन्हिके मन, तन रही न सँभार ||
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− | {गीता.[अयो] 139.01} देखु री सखी! पथिक नख-सिख नीके हैं |
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− | {गीता.[अयो] 139.01} नीले पीले कमल-से कोमल कलेवरनि,
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− | {गीता.[अयो] 139.01} तापस हू बेष किये काम कोटि फीके हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.02} सुकृत-सनेह-सील-सुषमा-सुख सकेलि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.02} बिरचे बिरञ्चि किधौं अमिय, अमीके हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.02} रुपकी-सी दामिनी सुभामिनी सोहति सङ्ग,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.02} उमहु रमातें आछे अंग अंग ती के हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.03} बन-पट कसे कटि, तून-तीर-धनु धरे,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.03} धीर, बीर, पालक कृपालु सबहीके हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.03} पानही न, चरन-सरोजनि चलत मग,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.03} कानन पठाए पितु-मातु कैसे ही के हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.04} आली अवलोकि लेहु, नयननिके फल येहु,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.04} लाभके सुलाभ, सुखजीवन-से जी के हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.04} धन्य नर-नारि जे निहारि बिनु गाहक हू,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.04} आपने आपने मन मोल बिनु बीके हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.05} बिबुध बरषि फूल हरषि हिये कहत,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.05} ग्राम-लोग मगन सनेह सिय-पी के हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.05} जोगीजन-अगम दरस पायो पाँवरनि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.05} प्रमुदित मन सुनि सुरप-सची के हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.06} प्रीतिके सुबालक-से लालत सुजन मुनि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.06} मग चारु चरित लषन-राम-सी के हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.06} जोग न बिराग-जाग, तप न तीरथ-त्याग,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 139.06} एही अनुराग भाग खुले तुलसी के हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.01} रीति चलिबेकी चाहि, प्रीति पहिचानिकै |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.01} आपनी आपनी कहैं, प्रेम-परबस अहैं,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.01} मञ्जु मृदु बचन सनेह-सुधा सानिकै ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.02} साँवरे कुँवरके बराइकै चरनके चिन्ह,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.02} बधू पग धरति कहा धौं जिय जानिकै |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.02} जुगल कमल-पद-अंग जोगवत जात,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.02} गोरे गात कुँवर महिमा महा मानिकै ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.03} उनकी कहनि नीकी, रहनि लषन-सी की,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.03} तिनकी गहनि जे पथिक उर आनिकै |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.03} लोचन सजल, तन पुलक, मगन मन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 140.03} होत भूरिभागी जस तुलसी बखनिकै ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.01} जेहि जेहि मग सिय-राम-लखन गए,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.01} तहँ-तहँ नर-नारि बिनु छर छरिगे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.01} निरखि निकाई-अधिकाई बिथकित भए,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.01} बच बिय-नैन-सर सोभा-सुधा भरिगे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.02} जोते बिनु, बए बिनु, निफन निराए बिनु,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.02} सुकृत-सुखेत सुख-सालि फूलि-फरिगे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.02} मुनिहु मनोरथको अगम अलभ्य लाभ,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.02} सुगम सो राम लघु लोगनिको करिगे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.03} लालची, कौड़ीके कूर पारस परे हैं पाले,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.03} जानत न को हैं, कहा कीबो सो बिसरिगे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.03} बुधि न बिचार, न बिगार न सुधार सुधि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.03} देह-गेह-नेह-नाते मनसे निसरिगे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.04} बरषि सुमन सुर हरषि हरषि कहैं,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.04} अनायास भवनिधि नीच नीके तरिगे|
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.04} सो सनेह-समौ सुमिरि तुलसीहूके-से
| + | |
− | {गीता.[अयो] 141.04} भली भाँति भले पैन्त, भले पाँसे परिगे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.01} बोले राज देनको, रजायसु भो काननको,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.01} आनन प्रसन्न, मन मोद, बड़ो काज भो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.01} मातु-पिता-बन्धु-हित आपनो परम हित,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.01} मोको बीसहूकै ईस अनुकूल आजु भो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.02} असन अजीरनको समुझि तिलक तज्यो
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.02} बिपिन-गवनु भले भूखेको सुनाजु भो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.02} धरम-धुरीन धीर बीर रघुबीरजूको,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.02} कोटि राज सरिस भरतजूको राजु भो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.03} ऐसी बातैं कहत सुनत मग-लोगनकी,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.03} चले जात बन्धु दोउ मुनिको सो साज भो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.03} ध्याइबेको, गाइबेको, सेइबे सुमिरिबेको,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 142.03} तुलसीको सब भाँति सुखद समाज भो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.01} सिरिस-सुमन-सुकुमारि, सुखमाकी सींव,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.01} सीय राम बड़े ही सकोच सङ्ग लई है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.01} भाईके प्रान समान, प्रियाके प्रानके प्रान,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.01} जानि बानि प्रीति रीति कृपसील मई है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.02} आलबाल-अवध सुकामतरु कामबेलि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.02} दूरि करि केकी बिपत्ति-बेलि बई है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.02} आप, पति, पूत, गुरुजन, प्रिय परिजन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.02} प्रजाहूको कुटिल दुसह दसा दई है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.03} पङ्कज-से पगनि पानह्यौं न, परुष पन्थ,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.03} कैसे निबहे हैं, निबहैङ्गे, गति नई है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.03} येही सोच-सङ्कट-मगन मग-नर-नारि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.03} सबकी सुमति राम-राग, रँग रई है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.04} एक कहैं, बाम बिधि दाहिनो हमको भयो,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.04} उत कीन्हीं पीठि, इतको सुडीठि भई है|
| + | |
− | {गीता.[अयो] 143.04} तुलसी सहित बनबासी मुनि हमरिऔ,
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− | {गीता.[अयो] 143.04} अनायास अधिक अघाइ बनि गई है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 144.राग} गौरी
| + | |
− | {गीता.[अयो] 144.01} नीके कै मैं न बिलोकन पाए |
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− | {गीता.[अयो] 144.01} सखि यहि मग जुग पथिक मनोहर, बधु बिधु-बदनि समेत सिधाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 144.02} नयन सरोजस किसोर बयस बर, सीस जटा रचि मुकुट बनाए |
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− | {गीता.[अयो] 144.02} कटि मुनिबसन-तून, धनु-सर कर, स्यामल-गौर, सुभाय सोहाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 144.03} सुन्दर बदन बिसाल बाहु-उर, तनु-छबि कोटि मनोज लजाए |
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− | {गीता.[अयो] 144.03} चितवत मोहि लगी चौन्धी-सी, जानौं न, कौन, कहाँ तें धौं आए ||
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− | {गीता.[अयो] 144.04} मनु गयो सङ्ग, सोचबस लोचन मोचत बारि, कितौ समुझाए |
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− | {गीता.[अयो] 144.04} तुलसिदास लालसा दरसकी सोइ पुरवै, जेहि आनि देखाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 145.01} पुनि न फिरे दोउ बीर बटाऊ |
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− | {गीता.[अयो] 145.01} स्यामल गौर, सहज सुदंर, सखि बारक बहुरि बिलोकिबे काऊ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 145.02} कर-कमलनि सर, सुभग सरासन, कटि मुनिबसन-निषङ्ग सोहाए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 145.02} भुज प्रलम्ब, सब अंग मनोहर, धन्य सो जनक-जननि जेहि जाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 145.03} सरद-बिमल बिधु बदन, जटा सिर, मञ्जुल अरुन-सरोरुह-लोचन |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 145.03} तुलसिदास मनमय मारगमें राजत कोटि-मदन-मदमोचन ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.राग} केदारा
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− | {गीता.[अयो] 146.01} आली काहू तौ बूझौ न, पथिक कहाँ धौं सिधैहैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.01} कहाँतें आए हैं, को हैं, कहा नाम स्याम-गोरे,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.01} काज कै कुसल फिरि एहि मग ऐहैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.02} उठति बयस, मसि भीञ्जति, सलोने सुठि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.02} सोभा-देखवैया बिनु बित्त ही बिकैहैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.02} हिये हेरि हरि लेत लोनी ललना समेत,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.02} लोयननि लाहु देत जहाँ जहाँ जैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.03} राम-लषन-सिय-पन्थिकी कथा पृथुल,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.03} प्रेम बिथकीं कहति सुमुखि सबै हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.03} तुलसी तिन्ह सरिस तेऊ भूरिभाग जेऊ
| + | |
− | {गीता.[अयो] 146.03} सुनि कै सुचित तेहि समै समैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 147.01} बहुत दिन बीते सुधि कछु न लही |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 147.01} गए जो पथिक गोरे-साँवरे सलोने,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 147.01} सखि सङ्ग नारि सुकुमारि रही ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 147.02} जानि-पहिचानि बिनु आपुतें, आपुने हुतें,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 147.02} प्रानहुतें प्यारे प्रियतम उपही |
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− | {गीता.[अयो] 147.02} सुधाके, सनेहहूके सार लै सँवारे बिधि,
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− | {गीता.[अयो] 147.02} जैसे भावते हैं भाँति जाति न कही ||
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− | {गीता.[अयो] 147.03} बहुरि बिलोकिबे कबहुक, कहत,
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− | {गीता.[अयो] 147.03} तनु पुलक, नयन जलधार बही |
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− | {गीता.[अयो] 147.03} तुलसी प्रभु सुमिरि ग्रामजुबती सिथिल,
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− | {गीता.[अयो] 147.03} बिनु प्रयास परीं प्रेम सही ||
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− | {गीता.[अयो] 148.01} आली री पथिक जे एहि पथ परौं सिधाए |
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− | {गीता.[अयो] 148.01} ते तौ राम-लषन अवधतें आए ||
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− | {गीता.[अयो] 148.02} सङ्ग सिय सब अंग सहज सोहाए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 148.02} रति-काम-ऋतुपति कोटिक लजाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 148.03} राजा दसरथ, रानी कौसिला जाए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 148.03} कैकेयी कुचाल करि कानन पठाए ||
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− | {गीता.[अयो] 148.04} बचन कुभामिनीके भूपहि क्यों भाए
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− | {गीता.[अयो] 148.04} हाय हाय राय बाम बिधि भरमाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 148.05} कुलगुर सचिव काहू न समुझाए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 148.05} काँच-मनि लै अमोल मानिक गवाँए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 148.06} भाग मग-लोगनिके, देखन जे पाए |
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− | {गीता.[अयो] 148.06} तुलसी सहित जिन गुन-गन गाए ||
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− | {गीता.[अयो] 149.01} सखि जबतें सीतासमेत देखे दोउ भाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 149.01} तबतें परै न कल, कछू न सोहाई ||
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− | {गीता.[अयो] 149.02} नखसिख नीके, नीके निरखि निकाई |
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− | {गीता.[अयो] 149.02} तन-सुधि गई, मन अनत न जाई ||
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− | {गीता.[अयो] 149.03} हेरनि-हँसनि हिय लिये हैं चोराई |
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− | {गीता.[अयो] 149.03} पावन-प्रेम-बिबस भई हौं पराई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 149.04} कैसे पितु-मातु प्रिय परिजन-भाई
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− | {गीता.[अयो] 149.04} जीवत जीवके जीवन बनहि पठाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 149.05} समौ सो चित करि हित अधिकाई |
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− | {गीता.[अयो] 149.05} प्रीति ग्रामबधुनकी तुलसिहु गाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.01} जबतें सिधारे यहि मारग लषन-राम,
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− | {गीता.[अयो] 150.01} जानकी सहित, तबतें न सुधि लही है |
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− | {गीता.[अयो] 150.01} अवध गए धौं फिरि, कैधौं चढ़े बिन्ध्यगिरि,
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− | {गीता.[अयो] 150.01} कैधौं कहुँ रहे, सो कछू, न काहू कही है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.02} एक कहै, चित्रकूट निकट नदीके तीर,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.02} परनकुटीर करि बसे, बात सही है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.02} सुनियत, भरत मनाइबेको आवत हैं,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.02} होइगी पै सोई, जो बिधाता चित्त चही है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.03} सत्यसन्ध, धरम-धुरीन रघुनाथजूको,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.03} आपनी निबारिबे, नृपकी निरबही है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.03} दस-चारि बरिस बिहार बन पदचार,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.03} करिबे पुनीत सैल, सर-सरि, मही है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.04} मुनि-सुर-सुजन-समाजके सुधारि काज,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.04} बिगरि बिगरि जहाँ जहाँ जाकी रही है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.04} पुर पाँव धारिहैं, उधारिहैं तुलसीहू से जन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 150.04} जिन जानि कै गरीबी गाढ़ी गही है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 151.01} ये उपही कोउ कुँवर अहेरी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 151.01} स्याम गौर, धनु-बान-तूनधर चित्रकूट अब आइ रहे, री ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 151.02} इन्हहि बहुत आदरत महामुनि, समाचार मेरे नाह कहे, री |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 151.02} बनिता-बन्धु समेत बसे बन, पितु हित कठिन कलेस सहे, री ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 151.03} बचन परसपर कहति किरातिनि, पुलक गात, जल नयन बहे, री |
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− | {गीता.[अयो] 151.03} तुलसी प्रभुहि बिलेकति एकटक, लोचन जनु बिनु पलक लहें, री ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.01} चित्रकूट-वर्णन
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.राग} चञ्चरी
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− | {गीता.[अयो] 152.01} चित्रकूट अति बिचित्र, सुन्दर बन, महि पबित्र,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.01} पावनि पय-सरित सकल मल-निकन्दिनी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.01} सानुज जहँ बसत राम, लोक-लोचनाभिराम,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.01} बाम अंग बामाबर बिस्व-बन्दिनी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.02} रिषिबर तहँ छन्द बास, गावत कलकण्ठ हास,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.02} कीर्तन उनमाय काय क्रोध-कन्दिनी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.02} बर बिधान करत गान, वारत धन-मान-प्रान,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.02} झरना झर झिँग झिँग झिङ्ग जलतरङ्गिनी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.03} बर बिहारु चरन चारु पाँडर चम्पक चनार
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.03} करनहार बार पार पुर-पुरङ्गिनी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.03} जोबन नव ढरत ढार दुत्त मत्त मृग मराल
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.03} मन्द मन्द गुञ्जत हैं अलि अलिङ्गिनी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.04} चितवत मुनिगन चकोर, बैठे निज ठौर ठौर,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.04} अच्छय अकलङ्क सरद-चन्द-चन्दिनी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.04} उदित सदा बन-अकास, मुदित बदत तुलसिदास,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 152.04} जय जय रघुनन्दन जय जनकनन्दिनी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.01} फटिकसिला मृदु बिसाल, सङ्कुल सुरतरु-तमाल
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.01} ललित लता-जाल हरति छबि बितानकी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.01} मन्दाकिनि-तटिनि-तीर, मञ्जुल मृग-बिहग-भीर
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.01} धीर मुनिगिरा गभीर सामगानकी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.02} मधुकर-पिक-बरहि मुखर, सुन्दर गिरि निरझर झर,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.02} जल-कन घन-छाँह, छन प्रभा न भानकी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.02} सब ऋतु ऋतुपति प्रभाउ, सन्तत बहै त्रिबिध बाउ,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.02} जनु बिहार-बाटिका नृप पञ्च बानकी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.03} बिरचित तहँ परनसाल, अति बिचित्र लषनलाल,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.03} निवसत जहँ नित कृपालु राम-जानकी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.03} निजकर राजीवनयन पल्लव-दल-रचित सयन,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.03} प्यास परसपर पीयूष प्रेम-पानकी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.04} सिय अँग लिखैं धातुराग, सुमननि भूषन-बिभाग,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.04} तिलक-करनि का कहौं कलानिधानकी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.04} माधुरी-बिलास-हास, गावत जस तुलसिदास,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 153.04} बसति हृदय जोरी प्रिय परम प्रानकी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.01} लोने लाल लषन, सलोने राम, लोनी सिय,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.01} चारु चित्रकूट बैठे सुरतरु-तर हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.01} गोरे-साँवरे सरीर पीत नीलनीरज-से
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.01} प्रेम-रुप-सुखमाके मनसिज-सर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.02} लोने नख-सिख, निरुपम, निरखन जोग,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.02} बड़े उर कन्धर बिसाल भुज बर हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.02} लोने लोने लोचन, जटनिके मुकुट लोने,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.02} लोने बदननि जीते कोटि सुधाकर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.03} लोने लोने धनुष, बिसिष कर-कमलनि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.03} लोने मुनिपट, कटि लोने सरघर हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.03} प्रिया प्रिय बन्धुको दिखावत बिटप, बेलि,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.03} मञ्जु कुञ्ज, सिलातल, दल, फूल, फर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.04} ऋषिनके आश्रम सराहैं, मृग-नाम कहैं,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.04} लागी मधु, सरित झरत निरझर हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.04} नाचत बरहि नीके, गावत मधुप-पिक,
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.04} बोलत बिहङ्ग, नभ-जल-थल-चर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.05} प्रभुहि बिलोकि मुनिगन पुलके कहत
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.05} भूरिभाग भये सब नीच नारि-नर हैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.05} तुलसी सो सुख-लाहु लूटत किरात-कोल
| + | |
− | {गीता.[अयो] 154.05} जाको सिसकत सुर बिधि-हरि-हर हैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.राग} सारङ्ग
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.01} आइ रहे जबतें दोउ भाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.01} तबतें चित्रकूट-कानन-छबि दिन दिन अधिक अधिक अधिकाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.02} सीता-राम-लषन-पद-अंकित अवनि सोहावनि बरनि न जाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.02} मन्दाकिनि मज्जत अवलोकत त्रिबिध पाप, त्रयताप नसाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.03} उकठेउ हरित भए जल-थलरुह, नित नूतन राजीव सुहाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.03} फूलत, फलत, पल्लवत, पलुहत बिटप बेलि अभिमत सुखदाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.04} सरित-सरनि सरसीरुह सङ्कुल, सदन सँवारि रमा जनु छाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.04} कूजत बिहँग, मञ्जु गुञ्जत अलि जात पथिक जनु लेत बुलाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.05} त्रिबिध समीर, नीर, झर झरननि, जहँ तहँ रहे ऋषि कुटी बनाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.05} सीतल सुभग सिलनिपर तापस करत जोग-जप-तप मन लाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.06} भए सब साधु किरात-किरातिनि, राम-दरस मिटि गै कलुषाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.06} खग-मृग मुदित एक सँग बिहरत सहज बिषम बड़ बैर बिहाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.07} कामकेलि-बाटिका बिबुध-बन-लघु उपमा कबि कहत लजाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.07} सकल-भुवन-सोभा सकेलि मनो राम बिपिन बिधि आनि बसाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.08} बन मिस मुनि, मुनितिय, मुनि-बालक बरनत रघुबर-बिमल-बड़ाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.08} पुलक सिथिल तनु, सजल सुलोचनु, प्रमुदित मन जीवन फलु पाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.09} क्यों कहौं चित्रकूट-गिरि, सम्पति-महिमा-मोद-मनोहरहताई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 155.09} तुलसी जहँ बसि लषन-रामसिय आनँद-अवधि अवध बिसराई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.राग} गौरी
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.01} देखत चित्रकूट-बन मन अति होत हुलास |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.01} सीता-राम-लषन-प्रिय, तापस-बृन्द-निवास ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.02} सरित सोहावनि पावनि, पापहरनि पय नाम |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.02} सिद्ध-साधु-सुर-सेबित देति सकल मन-काम ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.03} बिटप-बेलि नव किसलय, कुसुमित सघन सुजाति |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.03} कन्दमूल,जल-थलरुह अगनित अनबन भाँति ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.04} बञ्जुल मञ्जु, बकुलकुल, सुरतरु, ताल तमाल |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.04} कदलि, कदम्ब, सुचम्पक, पाटल, पनस, रसाल ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.05} भूरुह भूरि भरे जनु छबि-अनुराग-सभाग |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.05} बन बिलोकि लघु लागहिं बिपुल बिबुध-बन-बाग ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.06} जाइ न बरनि राम-बन, चितवत चित हरि लेत |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.06} ललित-लता-द्रुम-सङ्कुल मनहु मनोज निकेत ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.07} सरित-सरनि सरसीरुह फूले नाना रङ्ग |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.07} गुञ्जत मञ्जु मधुपबन, कूजतक बिबिध बिहङ्ग ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.08} लषन कहेउ रघुनन्दन देखिय बिपिन-समाज |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.08} मानहु चयन मयन-पुर आयौ प्रिय ऋतुराज ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.09} चित्रकूटपर राउर जानि अधिक अनुरागु |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.09} सखासहित जनु रतिपति आयौ खेलन फागु ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.10} झिल्लि झाँझ, झरना डफ नव मृदङ्ग निसान |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.10} भेरि उपङ्ग भृङ्ग रव, ताल कीर, कलगान ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.11} हंस कपोत कबूतर बोलत चक्क चकोर |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.11} गावत मनहु नारिनर मुदित नगर चहुँ ओर ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.12} चित्र-बिचित्र बिबिध मृग डोलत डोङ्गर डाँग |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.12} जनु पुरबीथिन बिहरत छैल सँवारे स्वाँग ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.13} नाचहिं मोर, पिक गावहिंस सुर बर राग बँधान |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.13} निलज तरुन-तरुनी जनु खेलहिं समय समान ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.14} भरि भरि सुण्ड करिनि-करि जहँ तहँ डारहिं बारि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.14} भरत परसपर पिचकनि मनहु मुदित नर-नारि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.15} पीठि चढ़ाइ सिसुन्ह कपि कूदत डारहि डार |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.15} जनु मुँह लाइ गेरु-मसि भए खरनि असवार ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.16} लिये पराग सुमनरस डोलत मलय-समीर |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.16} मनहु अरगजा छिरकत, भरत गुलाल-अबीर ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.17} काम कौतुकी यहि बिधि प्रभुहित कौतुक कीन्ह |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.17} रीझि राम रतिनाथहि जग-बिजयी बर दीन्ह ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.18} दुखवहु मोरे दास जनि, मानेहु मोरि रजाइ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.18} भलेहि नाथ माथे धरि आयसु चलेउ बजाइ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.19} मुदित किरात-किरातिनि रघुबर-रुप निहारि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.19} प्रभुगुन गावत नाचत चले जोहारि जोहारि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.20} देहिं सीस, प्रसंसहिं मुनि सुर बरषहिं फूल |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.20} गवने भवन राखि उर मूरति मङ्गलमूल ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.21} चित्रकूट-कानन-छबि को बरनै पार |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.21} जहँ सिय-लषनसहित नित रघुबर करहिं बिहार ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.22} तुलसिदास चाँचरि मिस कहे राम-गुनग्राम |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 156.22} गावहिं, सुनहिं नारि-नर, पावहिं सब अभिराम ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.राग} बसन्त
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} आजु बन्यो है बिपिन देखो, राम धीर | मानो खेलत फागु मुद मदनबीर ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} बट, बकुल, कदम्ब, पनस, रसाल | कुसुमित तरु-निकर कुरव-तमाल |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} मानो बिबिध बेष धरे छैल-जूथ | बिच बीच लता ललना-बरुथ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} पनवानक निरझर, अलि उपङ्ग | बोलत पारावत मानो डफ-मृदङ्ग |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} गायक शुक-कोकिल, झिल्लि ताल | नाचत बहु भाँति बरहि मराल ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} मलयानिल सीतल, सुरभि, मन्द | बह सहित सुमन-रस रेनु बृन्द |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} मनु छिरकत फिरत सबनि सुरङ्ग | भ्राजत उदार लीला अनङ्ग ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} क्रीडत जीते सुर-असुर-नाग | हठि सिद्ध-मुनिनके पन्थ लाग |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} कह तुलसिदास, तेहि छाड़ु मैन | जेहि राख राम राजीव नैन ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} ऋतु-पति आए भलो बन्यो बन समाज | मानो भए हैं मदन महाराज आज ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} मनो प्रथम फागु मिस करि अनीति | होरीमिस अरि पुर जारि जीति |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} मारुत मिस पत्र-प्रजा उजारि | नयनगर बसाए बिपिन झारि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.01} सिंहासन सैल-सिला सुरङ्ग | कानन-छबि रति, परिजन कुरङ्ग |
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− | {गीता.[अयो] 157.01} सित छत्र सुमन, बल्ली बितान | चामर समीर, निरझर निसान ||
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− | {गीता.[अयो] 157.01} मनो मधु-माधव दोउ अनिप धीर | बर बिपुल बिटप बानैत बीर |
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− | {गीता.[अयो] 157.01} मधुकर-सुक-कोकिलबन्दि-बृन्द | बरनहिं बिसुद्ध जस बिबिध छन्द ||
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− | {गीता.[अयो] 157.01} महि परत सुमन-रस फल पराग | जनु देत इतर नृप कर-बिभाग |
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− | {गीता.[अयो] 157.01} कलि सचिव सहित नय-निपुन मार | कियो बिस्व बिबस चारिहु प्रकार ||
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− | {गीता.[अयो] 157.01} बिरहिनपर नित नै परै मारि | डाँड़ियत सिद्ध-साधक प्रचारि |
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− | {गीता.[अयो] 157.01} तिनकी न काम सकै चापि छाँह | तुलसी जे बसहिं रघुबीर-बाँह ||
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− | {गीता.[अयो] 157.राग} मलार
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− | {गीता.[अयो] 157.01} सब दिन चित्रकूट नीको लागत |
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− | {गीता.[अयो] 157.01} बरषाऋतु प्रबेस बिसेष गिरि देखन मन अनुरागत ||
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− | {गीता.[अयो] 157.02} चहुँदिसि बन सम्पन्न, बिहँग-मृग बोलत सोभा पावत |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.02} जनु सुनरेस देस-पुर प्रमुदित प्रजा सकल सुख छावत ||
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− | {गीता.[अयो] 157.03} सोहत स्याम जलद मृदु घोरत धातु रँगमगे सृङ्गनि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.03} मनहु आदि अंभोज बिराजत सेवित सुर-मुनि-भृङ्गनि ||
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− | {गीता.[अयो] 157.04} सिखर परस घन-घटहि, मिलति बग-पाँति सो छबि कबि बरनी |
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− | {गीता.[अयो] 157.04} आदि बराह बिहरि बारिधि मनो उठ्यो है दसन धरि धरनी ||
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− | {गीता.[अयो] 157.05} जल जुत बिमल सिलनि झलकत नभ बन-प्रतिबिम्ब तरङ्ग |
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− | {गीता.[अयो] 157.05} मानहु जग-रचना बिचित्र बिलसति बिराट अँग अंग ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 157.06} मन्दाकिनिहि मिलत झरना झरि झरि भरि भरि जल आछे |
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− | {गीता.[अयो] 157.06} तुलसी सकल सुकृत-सुख लागे मानो राम-भगतिके पाछे ||
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− | {गीता.[अयो] 158.01} कौसल्याकी विरह-वेदना
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− | {गीता.[अयो] 158.राग} सोरठ
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− | {गीता.[अयो] 158.01} आजुको भोर, और सो, माई |
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− | {गीता.[अयो] 158.01} सुनौं न द्वार बेद-बन्दी-धुनि गुनिगन-गिरा सोहाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 158.02} निज निज सुन्दर पति-सदननितें रुप-सील-छबिछाईं |
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− | {गीता.[अयो] 158.02} लेन असीस सीय आगे करि मोपै सुतबधू न आईं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 158.03} बूझी हौं न बिहँसि मेरे रघुबर कहाँ री! सुमित्रा माता?|
| + | |
− | {गीता.[अयो] 158.03} तुलसी मनहु महासुख मेरो देखि न सकेउ बिधाता ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 159.01} जननी निरखति बान-धनुहियाँ |
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− | {गीता.[अयो] 159.01} बार-बार उर नैननि लावति प्रभुजूकी ललित पनहियाँ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 159.02} कबहूँ प्रथम ज्यों जाइ जगावति कहि प्रिय बचन सँवारे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 159.02} उठहु तात! बलि मातु बदनपर, अनुज-सखा सब द्वारे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 159.03} कबहूँ कहति यों, बड़ी बार भै, जाहु भूप पहँ, भैया |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 159.03} बन्धु बोलि जेंइय जो भावै, गई निछावरि मैया ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 159.04} कबहूँ समुझि बन-गवन रामको रहि चकि चित्र लिखी-सी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 159.04} तुलसिदास वह समय कहेतें लागति प्रीति सिखी-सी ||
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− | {गीता.[अयो] 160.01} माई री! मोहि कोउ न समुझावै |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 160.01} राम-गवन साँचो किधौं सपनो, मन परतीति न आवै ||
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− | {गीता.[अयो] 160.02} लगेइ रहत मेरे नैननि आगे राम-लखन अरु सीता |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 160.02} तदपि न मिटत दाह या उरको, बिधि जो भयो बिपरीता ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 160.03} दुख न रहै रघुपतिहि बिलोकत, तनु न रहै बिनु देखे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 160.03} करत न प्रान पयान, सुनहु, सखि! अरुझि परी यहि लेखे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 160.04} कौसल्याके बिरह-बचन सुनि रोइ उठीं सब रानी |
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− | {गीता.[अयो] 160.04} तुलसिदास रघुबीर-बिरहकी पीर न जाति बखानी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 161.01}
| + | |
− | {गीता.[अयो] 161.01} जब जब भवन बिलोकति सूनो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 161.01} तब तब बिकल होति कौसल्या, दिन दिन प्रति दुख दूनो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 161.02} सुमिरत बाल-बिनोद रामके सुन्दर मुनि-मन-हारी |
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− | {गीता.[अयो] 161.02} होत हृदय अति सूल समुझि पदपङ्कज अजिर-बिहारी ||
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− | {गीता.[अयो] 161.03} को अब प्रात कलेऊ माँगत रुठि चलैगो, माई !|
| + | |
− | {गीता.[अयो] 161.03} स्याम-तामरस-नैन स्रवत जल काहि लेउँ उर लाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 161.04} जीवौं तौ बिपति सहौं निसि-बासर, मरौं तौ मन पछितायो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 161.04} चलत बिपिन भरि नयन रामको बदन न देखन पायो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 161.05} तुलसिदास यह दुसह दसा अति, दारुन बिरह घनेरो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 161.05} दूरि करै को भूरि कृपा बिनु सोकजनित रुज मेरो ?||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 162.01} मेरो यह अभिलाषु बिधाता |
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− | {गीता.[अयो] 162.01} कब पुरवै सखि सानुकूल ह्वै हरि सेवक-सुखदाता ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 162.02} सीता-सहित कुसल कोसलपुर आवत हैं सुत दोऊ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 162.02} श्रवन-सुधा-सम बचन सखी कब आइ कहैगो कोऊ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 162.03} सुनि सन्देस प्रेम-परिपूरन सम्भ्रम उठि धावोङ्गी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 162.03} बदन बिलोकि रोकि लोचन-जल हरषि हिये लावोङ्गी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 162.04} जनकसुता कब सासु कहैं मोहि, राम लषन कहैं मैया |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 162.04} बाहु जोरि कब अजिर चलहिङ्गे स्याम-गौर दोउ भैया ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 162.05} तुलसिदास यहि भाँति मनोरथ करत प्रीति अति बाढ़ी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 162.05} थकित भई उर आनि राम-छबि मनहु चित्र लिख काढ़ी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 163.01} महाराज दशरथका देहत्याग
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− | {गीता.[अयो] 163.01} सुन्यौ जब फिरि सुमन्त पुर आयो |
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− | {गीता.[अयो] 163.01} कहिहै कहा, प्रानपतिकी गति, नृपति बिकल उठि धायो ||
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− | {गीता.[अयो] 163.02} पाँय परत मन्त्री अति ब्याकुल, नृप उठाय उर लायो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 163.02} दसरथ-दसा देखि न कह्यो कछु, हरि जो सँदेस पठायो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 163.03} बूझि न सकत कुसल प्रीतमकी, हृदय यहै पछितायो |
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− | {गीता.[अयो] 163.03} साँचेहु सुत-बियोग सुनिबे कहँ धिग बिधि मोहि जिआयो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 163.04} तुलसिदास प्रभु जानि निठुर हौं न्याय नाथ बिसरायो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 163.04} हा रघुपति कहि पर्यो अवनि, जनु जलतें मीन बिलगायो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 164.01} मुएहु न मिटैगो मेरो मानसिक पछिताउ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 164.01} नारिबस न बिचारि कीन्हौं काज, सोचत राउ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 164.02} तिलकको बोल्यौ, दिये बन, चौगुनो चित चाउ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 164.02} हृदय दाड़िम ज्यौं न बिदर्यो समुझि सील-सुभाउ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 164.03} सीय-रघुबर-लषन बिनु भय भभरि भगी न आउ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 164.03} मोहि बूझि न परत, यातें कौन कठिन कुघाउ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 164.04} सुनि सुमन्त! कि आनि सुन्दर सुवन सहित जिआउ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 164.04} दास तुलसी नतरु मोको मरन अमिय पिआउ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 165.01} अवध बिलोकि हौं जीवत रामभद्र-बिहीन!
| + | |
− | {गीता.[अयो] 165.01} कहा करिहैं आइ सानुज भरत धरमधुरीन ||
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− | {गीता.[अयो] 165.02} राम-सोक-सनेह-सङ्कुल, तनु बिकल,मनु लीन |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 165.02} टुटि तारो गगन-मग ज्यों होत छिन-छिन छीन ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 165.03} हृदय समुझि सनेह सादर प्रेम पावन मीन |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 165.03} करी तुलसीदास दसरथ प्रीति-परमिति पीन ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 166.राग} गौरी
| + | |
− | {गीता.[अयो] 166.01} करत राउ मनमों अनुमान |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 166.01} सोक-बिकल, मुख बचन न आवै, बिछुरै कृपानिधान ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 166.02} राज देन कहि बोलि नारि-बस मैं जो कह्यो बन जान |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 166.02} आयसु सिर धरि चले हरषि हिय कानन भवन समान ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 166.03} ऐसे सुतके बिरह-अवधि लौं जौ राखौं यह प्रान |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 166.03} तौ मिटि जाइ प्रीतिकी परमिति, अजस सुनौं निज कान ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 166.04} राम गए अजहूँ हौं जीवत, समुझत हिय अकुलान |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 166.04} तुलसिदास तनु तजि रघुपति हित कियो प्रेम परवान ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 167.01} भरतजी अयोध्यामें
| + | |
− | {गीता.[अयो] 167.01} ऐसे तैं क्यों कटु बचन कह्यो री ?
| + | |
− | {गीता.[अयो] 167.01} राम जाहु कानन, कठोर तेरो कैसे धौं हृदय रह्यो, री ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 167.02} दिनकर-बंस, पिता दसरथ-से, राम-लषन-से भाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 167.02} जननी !तू जननी ?तौ कहा कहौं, बिधि केहि खोरि न लाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 167.03} हौं लहिहौं सुख राजमातु ह्वै, सुत सिर छत्र धरैगो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 167.03} कुल-कलङ्क मल-मूल मनोरथ तव बिनु कौन करैगो ?||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 167.04} ऐहैं राम, सुखी सब ह्वैहैं, ईस अजस मेरो हरिहैं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 167.04} तुलसिदास मोको बड़ो सोच है, तू जनम कौनि बिधि भरिहै ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 168.01} ताते हौं देत न दूषन तोहू |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 168.01} रामबिरोधी उर कठोरतें प्रगट कियो है बिधि मोहू ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 168.02} सुन्दर सुखद सुसील सुधानिधि, जरनि जाइ जिहि जोए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 168.02} बिष-बारुनी-बन्धु कहियत बिधु! नातो मिटत न धोए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 168.03} होते जौ न सुजान-सिरोमनि राम सवके मन माहीं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 168.03} तौ तोरी करतूति, मातु! सुनि प्रीति-प्रतीति कहा हीं ?||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 168.04} मृदु मञ्जुल सीञ्ची-सनेह सुचि सुनत भरत-बर-बानी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 168.04} तुलसी साधु-साधु ,सुर-नर-मुनि कहत प्रेम पहिचानी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 169.01} जो पै हौं मातु मते महँ ह्वैहौं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 169.01} तौ जननी !जगमें या मुखकी कहाँ कालिमा ध्वैहौं ?||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 169.02} क्यों हौं आजु हौत सुचि सपथनि ?कौन मानिहै साँची? |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 169.02} महिमा-मृगी कौन सुकृतीकी खल-बच-बिसिषन बाँची ?||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 169.03} गहि न जाति रसना काहूकी, कहौ जाही जोइ सूझै |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 169.03} दीनबन्धु कारुण्य-सिन्धु बिनु कौन हियेकी बूझै ?||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 169.04} तुलसी रामबियोग बिषम-बिष-बिकल नारि-नर भारी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 169.04} भरत-सनेह-सुधा सीञ्चे सब भए तेहि समय सुखारी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 170.01} काहेको खोरि कैकयिहि लावौं?
| + | |
− | {गीता.[अयो] 170.01} धरहु धीर, बलि जाउँ तात! मोको आज विधाता बावौं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 170.02} सुनिबे जोग बियोग रामको हौं न होउँ मेरे प्यारे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 170.02} सो मेरे नयननि आगेतें रघुपति बनहि सिधारे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 170.03} तुलसिदास समुझाइ भरत कहँ, आँसू पोञ्छि उर लाए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 170.03} उपजी प्रीति जानि प्रभुके हित, मनहु राम फिरि आए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.01} भरतजीका चित्रकूटको प्रस्थान
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.01} मेरो अवध धौं कहहु, कहा है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.01} करहु राज रघुराज-चरन तजि, लै लटि लोगु रहा है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.02} धन्य मातु, हौं धन्य, लागि जेहि राज-समाज ढहा है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.02} तापर मोको प्रभु करि चाहत सब बिनु दहन दहा है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.03} राम-सपथ, कोउ कछू कहै जनि, मैं दुख दुसह सहा है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.03} चित्रकूट चलिए सब मिलि, बलि, छमिए मोहि हहा है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.04} यों कहि भोर भरत गिरिवरको मारग बूझि गहा है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.04} सकल सराहत, एक भरत जग जनमि सुलाहु लहा है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.05} जानहिं सिय-रघुनाथ भरतको सील सनेह महा है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 171.05} कै तुलसी जाको राम-नामसों प्रेम-नेम निबहा है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 172.01} भाई! हौं अवध कहा रहि लैहौं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 172.01} राम-लषन-सिय-चरन बिलोकन काल्हि काननहि जैहौं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 172.02} जद्यपि मोतें, कै सुमाततें ह्वै आई अति पोची |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 172.02} सनमुख गए सरन राखहिङ्गे रघुपति परम सँकोची ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 172.03} तुलसी यों कहि चले भोरही, लोग बिकल सँग लागे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 172.03} जनु बन जरत देखि दारुन दव निकसि बिहँग-मृग भागे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.01} सुकसों गहवर हिये कहै सारो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.01} बीर कीर! सिय-राम-लषन बिनु लागत जग अँधियारो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.02} पापिनि चेरि, अयानि रानि, नृप हित-अनहित न बिचारो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.02} कुलगुर-सचिव-साधु सोचतु, बिधि को न बसाइ उजारो ?||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.03} अवलोके न चलत भरि लोचन, नगर कोलाहल भारो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.03} सुने न बचन करुनाकरके, जब पुर-परिवार सँभारो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.04} भैया भरत भावतेके, सँग बन सब लोग सिधारो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.04} हम पँख पाइ पीञ्जरनि तरसत अधिक अभाग हमारो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.05} सुनि खग कहत अंब! मौङ्गी रहि समुझि प्रेमपथ न्यारो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.05} गए ते प्रभुहि पहुँचाइ फिरे पुनि करत करम-गुन गारो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.06} जीवन जग जानकी-लषनको, मरन महीप सँवारो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 173.06} तुलसी और प्रीतिकी चरचा करत, कहा कछु चारो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 174.01} कहै सुक, सुनहि सिखावन, सारो !
| + | |
− | {गीता.[अयो] 174.01} बिधि-करतब बिपरीत बाम गति, राम-प्रेम-पथ न्यारो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 174.02} को नर-नारि अवध खग-मृग, जेहि जीवन रामतें प्यारो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 174.02} बिद्यमान सबके गवने बन, बदन करमको कारो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 174.03} अंब, अनुज, प्रिय सखा, सुसेवक देखि बिषाद बिसारो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 174.03} पञ्छी परबस परे पीञ्जरनि, लेखो कौन हमारो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 174.04} रही नृपकी, बिगरी है सबकी, अब एक सँवारनिहारो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 174.04} तुलसी प्रभु निज चरन-पीठ मिस भरत-प्रान रखवारो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 175.01} ता दिन सृङ्गबेरपुर आए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 175.01} राम-सखा ते समाचार सुनि बारि बिलोचन छाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 175.02} कुस-साथरी देखि रघुपतिकी हेतु अपनपौ जानी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 175.02} कहत कथा सिय-राम-लषनकी बैठेहि रैनि बिहानी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 175.03} भोरहिं भरद्वाज आश्रम ह्वै, करि निषादपति आगे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 175.03} चले जनु तक्यो तड़ाग तृषित गज घोर घामके लागे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 175.04} बूझत चित्रकूट कहँ जेहि तेहि, मुनि बालकनि बतायो |
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− | {गीता.[अयो] 175.04} तुलसी मनहु फनिक मनि ढूँढ़त, निरखि हरषि हिय धायो ||
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− | {गीता.[अयो] 176.01} राम-भरत-मिलन
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− | {गीता.[अयो] 176.राग} केदारा
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− | {गीता.[अयो] 176.01} बिलोके दूरितें दोउ बीर |
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− | {गीता.[अयो] 176.01} उर आयत, आजानु सुभग भुज, स्यामल-गौर सरीर ||
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− | {गीता.[अयो] 176.02} सीस जटा, सरसीरुह लोचन, बने परिधन मुनिचीर |
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− | {गीता.[अयो] 176.02} निकट निषङ्ग, सङ्ग सिय सोभित, करनि धुनत धनु-तीर ||
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− | {गीता.[अयो] 176.03} मन अगहुँड़, तनु पुलक सिथिल भयो, नलिन नयन भरे नीर |
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− | {गीता.[अयो] 176.03} गड़त गोड़ मानो सकुच-पङ्क महँ, कढ़त प्रेम-बल धीर ||
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− | {गीता.[अयो] 176.04} तुलसिदास दसा देखि भरतकी उठि धाए अतिहि अधीर |
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− | {गीता.[अयो] 176.04} लिये उठाइ उर लाइ कृपानिधि बिरह-जनित हरि पीर ||
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− | {गीता.[अयो] 177.01} भरत भए ठाढ़े कर जोरि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 177.01} ह्वै न सकत सामुहें सकुचबस समुझि मातुकृत खोरि ||
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− | {गीता.[अयो] 177.02} फिरिहैं किधौं फिरन कहिहैं प्रभु कलपि कुटिलता मोरि |
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− | {गीता.[अयो] 177.02} हृदय सोच, जलभरे बिलोचन, नेह देह भै भोरि ||
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− | {गीता.[अयो] 177.03} बनबासी, पुरलोग, महामुनि किए हैं काठके-से कोरि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 177.03} दै दै श्रवन सुनिबेको जहँ तहँ रहे प्रेम मन बोरि ||
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− | {गीता.[अयो] 177.04} तुलसी राम-सुभाव सुमिरि, उर धरि धीरजहि बहोरि |
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− | {गीता.[अयो] 177.04} बोले बचन बिनीत उचित हित करुना-रसहि निचोरि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 178.01} जानत हौ सबहीके मनकी |
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− | {गीता.[अयो] 178.01} तदपि,कृपालु करौं! बिनती सोइ सादर सुनहु दीन-हित जनकी ||
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− | {गीता.[अयो] 178.02} ये सेवक सन्तत अनन्य अति, ज्यों चातकहि एक गति घनकी |
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− | {गीता.[अयो] 178.02} यह बिचारि गवनहु पुनीत पुर, हरहु दुसह आरति परिजनकी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 178.03} मेरो जीवन जानिय ऐसोइ, जियै जैसो अहि, जासु गई मनि फनकी |
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− | {गीता.[अयो] 178.03} मेटहु कुलकलङ्क कोसलपति, आग्या देहु नाथ मोहि बनकी ||
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− | {गीता.[अयो] 178.04} मोको जोइ लाइय लागै सोइ उतपति है कुमातुतें तनकी |
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− | {गीता.[अयो] 178.04} तुलसिदास सब दोष दूरि करि प्रभु अब लाज करहु निज पनकी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 179.01} तात! बिचारो धौं, हौं क्यों आवौं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 179.01} तुम्ह सुचि, सुहृद, सुजान सकल बिधि, बहुत कहा
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− | {गीता.[अयो] 179.01} कहि कहि समुझावौं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 179.02} निज कर खाल खैञ्चि या तनुतें जौ पितु पग पानही करावौं |
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− | {गीता.[अयो] 179.02} होउँ न उरिन पिता दसरथतें, कैसे ताके बचन मेटि पति पावौं ||
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− | {गीता.[अयो] 179.03} तुलसिदास जाको सुजस तिहूँ पुर, क्यों तेहि
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− | {गीता.[अयो] 179.03} कुलहि कालिमा लावौं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 179.03} प्रभु-रुख निरखि निरास भरत भए, जान्यो है सबहि
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− | {गीता.[अयो] 179.03} भाँति बिधि बावौं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 180.01} बहुरो भरत कह्यो कछु चाहैं |
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− | {गीता.[अयो] 180.01} सकुच-सिन्धु बोहित बिबेक करि बुधि-बल बचन निबाहैं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 180.02} छोटेहुतें छोह करि आए, मैं सामुहैं न हेरो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 180.02} एकहि बार आजु बिधि मेरो सील-सनेह निबेरो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 180.03} तुलसी जो फिरिबो न बनै, प्रभु तौ हौं आयसु पावौं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 180.03} घर फेरिए लषन, लरिका हैं, नाथ साथ हौं आवौं ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.01} रघुपति मोहि सङ्ग किन लीजै
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.01} बार बार पुर जाहु, नाथ केहि कारन आयसु दीजै ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.02} जद्यपि हौं अति अधम, कुटिलमति, अपराधिनिको जायो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.02} प्रनतपाल कोमल-सुभाव जिय जानि, सरन तकि आयो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.03} जो मेरे तजि चरन आन गति, कहौं हृदय कछु राखी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.03} तौ परिहरहु दयालु, दीनहित, प्रभु, अभिअंतर-साखी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.04} ताते नाथ कहौं मैं पुनि-पुनि, प्रभु पितु, मातु, गोसाईं |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.04} भजनहीन नरदेह बृथा, खर-स्वान-फेरुकी नाईँ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.05} बन्धु-बचन सुनि श्रवन नयन-राजीव नीर भरि आए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 181.05} तुलसिदास प्रभु परम कृपा गहि बाँह भरत उर लाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 182.01} काहेको मानत हानि हिये हौ?
| + | |
− | {गीता.[अयो] 182.01} प्रीति-नीति-गुन-सील-धरम कहँ तुम अवलम्ब दिये हौ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 182.02} तात! जात जानिबे न ए दिन, करि प्रमान पितु-बानी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 182.02} ऐहौं बेगि, धरहु धीरज उर कठिन कालगति जानी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 182.03} तुलसिदास अनुजहि प्रबोधि प्रभु चरनपीठ निज दीन्हें |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 182.03} मनहु सबनिके प्रान-पाहरु भरत सीस धरि लीन्हें ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 183.01} बिनती भरत करत कर जोरे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 183.01} दीनबन्धु! दीनता दीनकी कबहुँ परै जनि भोरे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 183.02} तुम्हसे तुम्हहि नाथ मोको, मोसे जन तुमको बहुतेरे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 183.02} इहै जानि, पहिचानि प्रीति, छमिए अघ-औगुन मेरे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 183.03} यों कहि सीय-राम-पाँयनि परि लषन लाइ उर लीन्हें |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 183.03} पुलक सरीर, नीर भरि लोचन, कहत प्रेम-पन-कीन्हें ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 183.04} तुलसी बीते अवधि प्रथम दिन जो रघुबीर न ऐहौ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 183.04} तौ प्रभु-चरन-सरोज-सपथ जीवत परिजनहि न पैहौ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 184.01} अवसि हौं आयसु पाइ रहौङ्गो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 184.01} जनमि कैकयी-कोखि कृपानिधि! क्यों कछु चपरि कहौङ्गो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 184.02} भरत भूप, सिय-राम-लषन बन, सुनि सानन्द सहौङ्गो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 184.02} पुर-परिजन अवलोकि मातु सब सुख-सन्तोष लहौङ्गो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 184.03} प्रभु जानत, जेहि भाँति अवधिलौं बचन पालि निबहौङ्गो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 184.03} आगेकी बिनती तुलसी तब, जब फिरि चरन गहौङ्गो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 185.01} प्रभुसों मैं ढीठो बहुत दई है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 185.01} कीबी छमा, नाथ! आरतितें कही कुजुगुति नई है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 185.02} यों कहि, बार बार पाँयनि परि, पाँवरि पुलकि लई है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 185.02} अपनो अदिन देखि हौं डरपत, जेहि बिष बेलि बई है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 185.03} आए सदा सुधारि गोसाईँ, जनतें बिगरि गई है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 185.03} थके बचन पैरत सनेह-सरि, पर्यो मानो घोर घई है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 185.04} चित्रकूट तेहि समय सबनिकी बुद्धि बिषाद हई है |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 185.04} तुलसी राम-भरतके बिछुरत सिला सप्रेम भई है ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 186.01} जबतें चित्रकूटतें आए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 186.01} नन्दिग्राम खनि अवनि, डासि कुस, परनकुटी करि छाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 186.02} अजिन बसन, फल असन, जटा धरे रहत अवधि चित दीन्हें |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 186.02} प्रभु-पद-प्रेम-नेम-ब्रत निरखत मुनिन्ह नमित मुख कीन्हें ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 186.03} सिंहासनपर पूजि पादुका बारहि बार जोहारे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 186.03} प्रभु-अनुराग माँगि आयसु पुरजन सब काज सँवारे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 186.04} तुलसी ज्यों-ज्यों घटत तेज तनु, त्यों-त्यों प्रीति अधिकाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 186.04} भए, न हैं, न होहिङ्गे कबहूँ भुवन भरत-से भाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 187.राग} रामकली
| + | |
− | {गीता.[अयो] 187.01} राखी भगति-भलाई भली भाँति भरत |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 187.01} स्वारथ-परमारथ-पथी जय जय जग करत ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 187.02} जो ब्रत मुनिवरनि कठिन मानस आचरत |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 187.02} सो ब्रत लिए चातक-ज्यों सुनत पाप हरत ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 187.03} सिंहासन सुभग राम-चरन-पीठ धरत |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 187.03} चालत सब राजकाज आयसु अनुसरत ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 187.04} आपु अवध, बिपिन बन्धु, सोच-जरनि जरत |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 187.04} तुलसी सम-बिषम, सुगम-अगम लखि न परत ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 188.01} मोहि भावति, कहि आवति नहि भरतजूकी रहनि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 188.01} सजल नयन सिथिल बयन प्रभु-गुन-गन कहनि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 188.02} असन-बसन-अयन-सयन धरम गरुअ गहनि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 188.02} दिन दिन पन-प्रेम-नेम निरुपधि निरबहनि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 188.03} सीता-रघुनाथ-लषन-बिरह-पीर सहनि |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 188.03} तुलसी तजि उभय लोक रामचरन-चहनि ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 189.01} जानी है सङ्कर-हनुमान-लषन-भरत राम भगति |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 189.01} कहत सुगम, करत अगम, सुनत मीठी लगति ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 189.02} लहत सकृत, चहत सकल, जुग जुग जगमगति |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 189.02} राम-प्रेम-पथतें कबहुँ डोलति नहिं, डगति ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 189.03} रिधि-सिधि, बिधि चारि सुगति जा बिनु गति अगति |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 189.03} तुलसी तेहि सनमुख बिनु बिषय-ठगिनि ठगति ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 190.राग} गौरी
| + | |
− | {गीता.[अयो] 190.01} कैकयी करी धौं चतुराई कौन?
| + | |
− | {गीता.[अयो] 190.01} राम-लषन-सिय बनहि पठाए, पति पठए सुरभौन ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 190.02} कहा भलो धौं भयो भरतको, लगे तरुन-तन दौन |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 190.02} पुरबासिन्हके नयन नीर बिनु कबहुँ तो देखति हौं न ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 190.03} कौसल्या दिन राति बिसूरति, बैठि मनहिं मन मौन |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 190.03} तुलसी उचित न होइ रोइबो, प्रान गए सँग जौ न ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 191.01} हाथ मीञ्जिबो हाथ रह्यो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 191.01} लगी न सङ्ग चित्रकूटहुतें, ह्याँ कहा जात बह्यो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 191.02} पति सुरपुर, सिय-राम-लषन बन, मुनिब्रत भरत गह्यो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 191.02} हौं रहि घर मसान-पावक ज्यों मरिबोइ मृतक दह्यो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 191.03} मेरोइ हिय कठोर करिबे कहँ बिधि कहुँ कुलिस लह्यो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 191.03} तुलसी बन पहुँचाइ फिरी सुत, क्यों कछु परत कह्यो ?||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 192.01} हौं तो समुझि रही अपनो सो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 192.01} राम-लषन-सियको सुख मोकहँ भयो, सखी! सपनो सो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 192.02} जिनके बिरह-बिषाद बँटावन खग-मृग जीव दुखारी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 192.02} मोहि कहा सजनी समुझावति, हौं तिन्हकी महतारी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 192.03} भरत-दसा सुनि, सुमिरि भूपगति, देखि दीन पुरबासी |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 192.03} तुलसी राम कहति हौं सकुचति, ह्वैहै जग उपहाँसी ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 193.01} आली! हौं इन्हहिं बुझावौं कैसे ?
| + | |
− | {गीता.[अयो] 193.01} लेत हिये भरि भरि पतिको हित, मातुहेतु सुत जैसे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 193.02} बार-बार हिहिनात हेरि उत, जो बोलै कोउ द्वारे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 193.02} अंग लगाइ लिए बारेतें करुनामय सुत प्यारे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 193.03} लोचन सजल, सदा सोवत-से, खान-पान बिसराए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 193.03} चितवत चौङ्कि नाम सुनि, सोचत राम-सुरति उर आए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 193.04} तुलसी प्रभुके बिरह-बधिक हठि राजहंस-से जोरे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 193.04} ऐसेहु दुखित देखि हौं जीवति राम-लखनके घोरे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 194.01} राघौ! एक बार फिरि आवौ |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 194.01} ए बर बाजि बिलोकि आपने, बहुरो बनहि सिधावौ ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 194.02} जे पय प्याइ, पोखि कर-पङ्कज, बार-बार चुचुकारे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 194.02} क्यों जीवहिं, मेरे राम लाड़िले! ते अब निपट बिसारे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 194.03} भरत सौगुनी सार करत हैं, अति प्रिय जानि तिहारे |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 194.03} तदपि दिनहिं दिन होत झाँवरे, मनहु कमल हिम-मारे ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 194.04} सुनहु पथिक! जो राम मिलहिं बन, कहियो मातु-सँदेसो |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 194.04} तुलसी मोहि और सबहिनतें इन्हको बड़ो अँदेसो ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 195.01} काहूसों काहू समाचार ऐसे पाए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 195.01} चित्रकूटतें राम-लषन-सिय सुनियत अनत सिधाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 195.02} सैल, सरित, निरझर, बन, मुनि-थल देखि-देखि सब आए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 195.02} कहत सुनत सुमिरत सुखदायक, मानस-सुगम सुहाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 195.03} बड़ि अवलम्ब बाम-बिधि-बिघटित बिषम बिषाद बढ़ाए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 195.03} सिरिस-सुमन-सुकुमार मनोहर बालक बिन्ध्य चढ़ाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 195.04} अवध सकल नर-नारि बिकल अति, अँकनि बचन अनभाए |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 195.04} तुलसी राम-बियोग-सोग-बस, समुझत नहिं समुझाए ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 196.01} सुनी मैं सखि! मङ्गल चाह सुहाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 196.01} सुभ पत्रिका निषातराजकी आजु भरत पहँ आई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 196.02} कुँवर सो कुसल-छेम अलि! तेहि पल कुलगुर कहँ पहुँचाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 196.02} गुर कृपालु सम्भ्रम पुर घर घर सादर सबहि सुनाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 196.03} बधि बिराध, सुर-साधु सुखी करि, ऋषि-सिख-आसिष पाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 196.03} कुम्भजु-सिष्य समेत सङ्ग सिय, मुदित चले दोउ भाई ||
| + | |
− | {गीता.[अयो] 196.04} बीच बिन्ध्य रेवा सुपास थल बसे हैं परन-गृह छाई |
| + | |
− | {गीता.[अयो] 196.04} पन्थ-कथा रघुनाथ पथिककी तुलसिदास सुनि गाई ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 197.01} अरण्यकाण्ड
| + | |
− | {गीता.[अर] 197.01} भगवान्का वन-विहार
| + | |
− | {गीता.[अर] 197.राग} मलार
| + | |
− | {गीता.[अर] 197.01} देखे राम पथिक नाचत मुदित मोर |
| + | |
− | {गीता.[अर] 197.01} मानत मनहु सतड़ित ललित घन, धनु सुरधनु, गरजनि टँकोर ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 197.02} कँपे कलाप बर बरहि फिरावत, गावत कल कोकिल-किसोर |
| + | |
− | {गीता.[अर] 197.02} जहँ जहँ प्रभु बिचरत, तहँ तहँ सुख, दण्डकबन कौतुक न थोर ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 197.03} सघन छाँह-तम रुचिर रजनि भ्रम, बदन-चन्द चितवत चकोर |
| + | |
− | {गीता.[अर] 197.03} तुलसी मुनि खग-मृगनि सराहत, भए हैं सुकृत सब इन्हकी ओर ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 198.राग} कल्याण
| + | |
− | {गीता.[अर] 198.01} सुभग सरासन सायक जोरे |
| + | |
− | {गीता.[अर] 198.01} खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरति मन मोरे ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 198.02} पीत बसन कटि, चारु चारि सर, चलत कोटि नट सो तृन तोरे |
| + | |
− | {गीता.[अर] 198.02} स्यामल तनु स्रम-कन राजत, ज्यों नव घन सुधा-सरोवर खोरे ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 198.03} ललित कन्ध, बर भुज, बिसाल उर, लेहिं कण्ठ-रेखैं चित चोरे |
| + | |
− | {गीता.[अर] 198.03} अवलोकत मुख देत परम सुख, लेत सरद-ससिकी छबि छोरे ||
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− | {गीता.[अर] 198.04} जटा मुकुट सिर, सारस-नयननि गौहैं तकत सुभौंह सकोरे |
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− | {गीता.[अर] 198.04} सोभा अमित समाति न कानन, उमगि चली चहुँ दिसि मिति फोरे ||
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− | {गीता.[अर] 198.05} चितवत चकित कुरङ्ग-कुरङ्गिनि, सब भए मगन मदनके भोरे |
| + | |
− | {गीता.[अर] 198.05} तुलसिदास प्रभु बान न मोचत, सहज सुभाय प्रेमबस थोरे ||
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− | {गीता.[अर] 199.01} मारीच-वध
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− | {गीता.[अर] 199.राग} सोरठ
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− | {गीता.[अर] 199.01} बैठे हैं राम-लषन अरु सीता |
| + | |
− | {गीता.[अर] 199.01} पञ्चबटी बर परनकुटी तर, कहैं कछु कथा पुनीता ||
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− | {गीता.[अर] 199.02} कपट-कुरङ्ग कनकमनिमय लखि प्रियसों कहति हँसि बाला |
| + | |
− | {गीता.[अर] 199.02} पाए पालिबे जोग मञ्जु मृग, मारेहु मञ्जुल छाला ||
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− | {गीता.[अर] 199.03} प्रिया-बचन सुनि बिहँसि प्रेमबस गवहिं चाप-सर लीन्हें |
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− | {गीता.[अर] 199.03} चल्यो भाजि, फिरि फिरि चितवत मुनिमख-रखवारे चीन्हें ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 199.04} सोहति मधुर मनोहर मूरति हेम-हरिनके पाछे |
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− | {गीता.[अर] 199.04} धावनि, नवनि, बिलोकनि, बिथकनि बसै तुलसी उर आछे ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 200.राग} कल्याण
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− | {गीता.[अर] 200.01} कर सर-धनु, कटि रुचिर निषङ्ग |
| + | |
− | {गीता.[अर] 200.01} प्रिया-प्रीति-प्रेरित बन-बीथिन्ह बिचरत कपट-कनक-मृग सङ्ग ||
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− | {गीता.[अर] 200.02} भुज बिसाल, कमनीय कन्ध-उर, स्रम-सीकर सोहैं साँवरे अंग |
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− | {गीता.[अर] 200.02} मनु मुकुता मनि मरकत गिरिपर लसत ललित रबि-किरनि प्रसङ्ग ||
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− | {गीता.[अर] 200.03} नलिन नयन, सिर जटा-मुकुट, बिच सुमन-माल मनु सिव-सिर गङ्ग |
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− | {गीता.[अर] 200.03} तुलसिदास ऐसी मूरति की बलि, छबि बिलोकि लाजैं अमित अनङ्ग ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.राग} केदारा
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− | {गीता.[अर] 201.01} राघव, भावति मोहि बिपिनकी बीथिन्ह धावनि |
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.01} अरुन-कञ्ज-बरन-चरन सोकहरन, अंकुस-कुलिस-
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.01} केतु-अंकित अवनि ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.02} सुन्दर स्यामल अंग, बसन पीत सुरङ्ग, कटि निषङ्ग
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.02} परिकर मेरवनि |
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.02} कनक-कुरङ्ग सङ्ग, साजे कर सर-चाप, राजिवनयन
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.02} इत उत चितवनि ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.03} सोहत सिर मुकुट जटा-पटल-निकर, सुमन-लता
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.03} सहित रची बनवनि |
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.03} तैसेई स्रम-सीकर रुचिर राजत मुख, तैसिए ललित
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.03} भ्रकुटिन्हकी नवनि ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.04} देखत खग-निकर, मृग रवनिन्हजुत थकित बिसारि
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.04} जहाँ-तहाँकी भँवनि |
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.04} हरि-दरसन-फल पायो है ग्यान बिमल, जाँचत भगति,
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.04} मुनि चाहत जवनि ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.05} जिन्हके मन मगन भए हैं रस सगुन, तिन्हके लेखे
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.05} अगुन-मुकुति कवनि |
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.05} श्रवन-सुख करनि, भवसरिता-तरनि, गावत तुलसिदास
| + | |
− | {गीता.[अर] 201.05} कीरति पवनि ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 202.राग} सोरठ
| + | |
− | {गीता.[अर] 202.01} रघुबर दूरि जाइ मृग मार्यो |
| + | |
− | {गीता.[अर] 202.01} लषन पुकारि, राम हरुए कहि, मरतहु बैर सँभार्यो ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 202.02} सुनहु तात! कोउ तुम्हहि पुकारत प्राननाथकी नाईं |
| + | |
− | {गीता.[अर] 202.02} कह्यो लषन, हत्यो हरिन, कोपि सिय हठि पठयो बरिआईं ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 202.03} बन्धु बिलोकि कहत तुलसी प्रभु भाई! भली न कीन्हीं |
| + | |
− | {गीता.[अर] 202.03} मेरे जान जानकी काहू खल छल करि हरि लीन्हीं ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 203.01} सीता-हरण
| + | |
− | {गीता.[अर] 203.01} आरत बचन कहति बैदेही |
| + | |
− | {गीता.[अर] 203.01} बिलपति भूरि बिसूरि दूरि गए मृग सँग परम सनेही ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 203.02} कहे कटु बचन, रेख नाँघी मैं, तात छमा सो कीजै |
| + | |
− | {गीता.[अर] 203.02} देखि बधिक-बस राजमरालिनि, लषन लाल! छिनि लीजै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 203.03} बनदेवनि सिय कहन कहति यों, छल करि नीच हरी हौं |
| + | |
− | {गीता.[अर] 203.03} गोमर-कर सुरधेनु, नाथ! ज्यौं त्यौं परहाथ परी हौं ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 203.04} तुलसिदास रघुनाथ-नाम-धुनि अकनि गीध धुकि धायो |
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− | {गीता.[अर] 203.04} पुत्रि पुत्रि! जनि डरहि, न जैहै नीचु, मीचु हौं आयो ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 204.01} जटायु-वध
| + | |
− | {गीता.[अर] 204.01} फिरत न बारहि बार प्रचार्यो |
| + | |
− | {गीता.[अर] 204.01} चपरि चोञ्च-चङ्गुल हय हति, रथ खण्ड खण्ड करि डार्यो ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 204.02} बिरथ-बिकल कियो, छीन लीन्हि सिय, घन घायनि अकुलान्यो |
| + | |
− | {गीता.[अर] 204.02} तब असि काढ़ि, काटि पर, पाँवर लै प्रभु-प्रिया परान्यो ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 204.03} रामकाज खगराज आजु लर्यो, जियत न जानकि त्यागी |
| + | |
− | {गीता.[अर] 204.03} तुलसिदास सुर-सिद्ध सराहत, धन्य बिहँद बड़भागी ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.01} रामकी वियोग-व्यथा
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.01} हेमको हरिन हनि फिरे रघुकुल-मनि,
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.01} लषन ललित कर लिये मृगछाल |
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.01} आश्रम आवत चले, सगुन न भए भले,
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.01} फरके बाम बाहु, लोचन बिसाल ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.02} सरित-जल मलिन, सरनि सूखे नलिन,
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.02} अलि न गुञ्जत, कल कूजैं न मराल |
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.02} कोलिनि-कोल-किरात जहाँ तहाँ बिखात,
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.02} बन न बिलोकि जात खग-मृग-माल ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.03} तरु जे जानकी लाए, ज्याये हरि-करि-कपि,
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.03} हेरैं न हुँकरि, झरैं फल न रसाल |
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.03} जे सुक-सारिका पाले, मातु ज्यों ललकि लाले,
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.03} तेऊ न पढ़त न पढ़ावैं मुनिबाल ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.04} समुझि सहमे सुठि, प्रिया तौ न आई उठि,
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.04} तुलसी बिबरन परन-तृन-साल |
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.04} औरे सो सब समाजु, कुसल न देखौं आजु,
| + | |
− | {गीता.[अर] 205.04} गहबर हिय कहैं कोसलपाल ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.01} आश्रम निरखि भूले, द्रुम न फले न फूले,
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.01} अलि-खग-मृग मानो कबहुँ न हे |
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.01} मुनि न मुनिबधूटी, उजरी परनकुटी,
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.01} पञ्चबटी पहिचानि ठाढ़ेइ रहे ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.02} उठी न सलिल लिए, प्रेम प्रमुदित हिए,
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.02} प्रिया न पुलकि प्रिय बचन कहे |
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.02} पल्लव-सालन हेरी, प्रानबल्लभा न टेरी,
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.02} बिरह बिथकि लखि लषन गहे ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.03} देखे रघुपति-गति बिबुध बिकल अति,
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.03} तुलसी गहन बिनु दहन दहे |
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.03} अनुज दियो भरोसो, तौलों है सोचु खरो सो,
| + | |
− | {गीता.[अर] 206.03} सिय-समाचार प्रभु जौलों न लहे ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 207.राग} सोरठ
| + | |
− | {गीता.[अर] 207.01} जबहि सिय-सुधि सब सुरनि सुनाई |
| + | |
− | {गीता.[अर] 207.01} भए सुनि सजग, बिरहसरि पैरत थके थाह-सी पाई ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 207.02} कसि तूनीर-तीर धनु-धर-धुर धीर बीर दोउ भाई |
| + | |
− | {गीता.[अर] 207.02} पञ्चबटी-गोदहि प्रनाम करि, कुटी दाहिनी लाई ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 207.03} चले बूझत बन-बेलि-बिटप, खग-मृग, अलि-अवलि सुहाई |
| + | |
− | {गीता.[अर] 207.03} प्रभुकी दसा सो समौ कहिबेको कबि उर आह न आई ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 207.04} रटनि अकनि पहिचानि गीध फिरे करुनामय रघुराई |
| + | |
− | {गीता.[अर] 207.04} तुलसी रामहि प्रिया बिसरि गई, सुमिरि सनेह-सगाई ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 208.01} जटायुसे भेण्ट
| + | |
− | {गीता.[अर] 208.01} मेरे एकौ हाथ न लागी |
| + | |
− | {गीता.[अर] 208.01} गयो बपु बीति बादि कानन ज्यों कलपलता दव दागी ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 208.02} दसरथसों न प्रेम प्रतिपाल्यौ, हुतो जो सकल जग साखी |
| + | |
− | {गीता.[अर] 208.02} बरबस हरत निसाचर पतिसों हठि न जानकी राखी ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 208.03} मरत न मैं रघुबीर बिलोके तापस बेष बनाए |
| + | |
− | {गीता.[अर] 208.03} चाहत चलन प्रान पाँवर बिनु सिय-सुधि प्रभुहि सुनाए ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 208.04} बार-बार कर मीञ्जि, सीस धुनि गीधराज पछिताई |
| + | |
− | {गीता.[अर] 208.04} तुलसी प्रभु कृपालु तेहि औसर आइ गए दोउ भाई ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 209.01} राघौ गीध गोद करि लीन्हों |
| + | |
− | {गीता.[अर] 209.01} नयन-सरोज सनेह-सलिल सुचि मनहु अरघजल दीन्हों ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 209.02} सुनहु लषन! खगपतिहि मिले बन मैं पितु-मरन न जान्यौ |
| + | |
− | {गीता.[अर] 209.02} सहि न सक्यौ सो कठिन बिधाता, बड़ो पछु आजुहि भान्यौ ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 209.03} बहु बिधि राम कह्यो तनु राखन, परम धीर नहि डोल्यौ |
| + | |
− | {गीता.[अर] 209.03} रोकि, प्रेम, अवलोकि बदन-बिधु, बचन मनोहर बोल्यौ ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 209.04} तुलसी प्रभु झूठे जीवन लगि समय न धोखो लैहौं |
| + | |
− | {गीता.[अर] 209.04} जाको नाम मरत मुनिदुरलभ तुमहि कहाँ पुनि पैहौं ?||
| + | |
− | {गीता.[अर] 210.01} नीके कै जानत राम हियो हौं |
| + | |
− | {गीता.[अर] 210.01} प्रनतपाल, सेवक-कृपालु-चित, पितु पटतरहि दियो हौं ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 210.02} त्रिजगजोनि-गत गीध, जनम भरि खाइ कुजन्तु जियो हौं |
| + | |
− | {गीता.[अर] 210.02} महाराज सुकृती-समाज सब-ऊपर आजु कियो हौं ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 210.03} श्रवन बचन, मुख नाम, रुप चख, राम उछङ्ग लियो हौं |
| + | |
− | {गीता.[अर] 210.03} तुलसी मो समान बड़भागी को कहि सकै बियो हौं ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 211.01} मेरे जान तात कछू दिन जीजै |
| + | |
− | {गीता.[अर] 211.01} देखिअ आपु सुवन-सेवासुख, मोहि पितुको सुख दीजै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 211.02} दिब्य-देह, इच्छा-जीवन जग बिधि मनाइ मँगि लीजै |
| + | |
− | {गीता.[अर] 211.02} हरि-हर-सुजस सुनाइ, दरस दै, लोग कृतारथ कीजै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 211.03} देखि बदन, सुनि बचन-अमिय, तन रामनयन-जल भीजै |
| + | |
− | {गीता.[अर] 211.03} बोल्यो बिहग बिहँसि रघुबर बलि, कहौं सुभाय, पतीजै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 211.04} मेरे मरिबे सम न चारि फल, होंहि तौ, क्यों न कहीजै
| + | |
− | {गीता.[अर] 211.04} तुलसी प्रभु दियो उतरु मौन हीं, परी मानो प्रेम सहीजै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 212.01} मेरो सुनियो, तात सँदेसो |
| + | |
− | {गीता.[अर] 212.01} सीय-हरन जनि कहेहु पितासों, ह्वैहै अधिक अँदेसो ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 212.02} रावरे पुन्यप्रताप-अनल महँ अलप दिननि रिपु दहिहैं |
| + | |
− | {गीता.[अर] 212.02} कुलसमेत सुरसभा दसानन समाचार सब कहिहैं ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 212.03} सुनि प्रभु-बचन, राखि उर मुरति, चरन-कमल सिर नाई |
| + | |
− | {गीता.[अर] 212.03} चल्यो नभ सुनत राम-कल-कीरति, अरु निज भाग बड़ाई ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 212.04} पितु-ज्यों गीध-क्रिया करि रघुपति अपने धाम पठायो |
| + | |
− | {गीता.[अर] 212.04} ऐसो प्रभु बिसारि ,तुलसी सठ तू चाहत सुख पायो ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.01} शबरीसे भेण्ट
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.राग} सूहो
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.01} सबरी सोइ उठी, फरकत बाम बिलोचन-बाहु |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.01} सगुन सुहावने सूचत मुनि-मन-अगम उछाहु ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.01} मुनि-अगम उर आनन्द, लोचन सजल, तनु पुलकावली |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.01} तृन-पर्नसाल बनाइ, जल भरि कलस, फल चाहन चली ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.01} मञ्जुल मनोरथ करति, सुमिरति बिप्र-बरबानी भली |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.01} ज्यों कलप-बेलि सकेलि सुकृत सुफूल-फूली सुख-फली ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.02} प्रानप्रिय पाहुने ऐहैं राम-लषन मेरे आजु |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.02} जानत जन-जियकी मृदु चित राम गरीबनिवाज ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.02} मृदु चित गरीबनिवाज आजु बिराजिहैं गृह आइकै |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.02} ब्रह्मादि सङ्कर-गौरि पूजित पूजिहौं अब जाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.02} लहि नाथ हौं रघुनाथ-बानो पतितपावन पाइकै |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.02} दुहु ओर लाहु अघाइ तुलसी तीसरेहु गुन गाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.03} दोना रुचिर रचे पूरन कन्द-मूल, फल-फूल |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.03} अनुपम अमियहुतें अंबक अवलोकत अनुकूल ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.03} अनुकूल अंबक अंब ज्यों निज डिम्ब हित सब आनिकै |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.03} सुन्दर सनेहसुधा सहस जनु सरस राखे सानिकै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.03} छन भवन, छन बाहर, बिलोकति पन्थ भूपर पानिकै |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.03} दोउ भाइ आये सबरिकाके प्रेम-पन पहिचानिकै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.04} स्रवन सुनत चली, आवत देखि लषन-रघुराउ |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.04} सिथिल सनेह कहै,
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.04} "है सुपना बिधि, कैधौं सति भाउ ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.04} सति भाउ कै सपनो? निहारि कुमार कोसलरायके |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.04} गहै चरन, जे अघहरन नत-जन-बचन-मानस-कायके ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.04} लघु-भाग-भाजन उदधि उमग्यो लाभ-सुख चित चाय कै |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.04} सो जननि ज्यों आदरी सानुज, राम भूखे भायकै ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.05} प्रेम-पट पाँवड़े देत, सुअरघ बिलोचन-बारि |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.05} आस्रम लै दिए आसन पङ्कज-पाँय पखारि ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.05} पद-पङ्कजात पखारि पूजे, पन्थ-श्रम-बिरति भये |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.05} फल-फूल अंकुर-मूल धरे सुधारि भरि दोना नये ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.05} प्रभु खात पुलकित गात, स्वाद सराहि आदर जनु जये |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.05} फल चारिहू फल चारि दहि, परचारि-फल सबरी दये ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.06} सुमन बरषि, हरषे सुर, मुनि मुदित सराहि सिहात |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.06} "केहि रुचि केहि छुधा सानुज माँगि माँगि प्रभु खात ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.06} प्रभु खात माँगत देति सबरी, राम भोगी जागके |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.06} पुलकत प्रसंसत सिद्ध-सिव-सनकादि भाजन भागके ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.06} बालक सुमित्रा कौसिलाके पाहुने फल-सागके |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.06} सुनि समुझि तुलसी जानु रामहि बस अमल अनुरागके ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.07} रघुबर अँचै उठे, सबरी करि प्रनाम कर जोरि |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.07} हौं बलि बलि गई, पुरई मञ्जु मनोरथ मोरि ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.07} पुरई मनोरथ, स्वारथहु परमारथहु पूरन करी |
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− | {गीता.[अर] 213.07} अघ-अवगुनन्हिकी कोठरी करि कृपा मुद मङ्गल भरी ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.07} तापस-किरातिनि-कोल मृदु मूरति मनोहर मन धरी |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.07} सिर नाइ, आयसु पाइ गवने, परमनिधि पाले परी ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.08} सिय-सुधि सब कही नख-सिख निरखि-निरखि दोउ भाइ |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.08} दै दै प्रदच्छिना करति प्रनाम, न प्रेम अघाइ ||
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.08} अति प्रीति मानस राखि रामहि, राम-धामहि सो गई |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.08} तेहि मातु-ज्यों रघुनाथ अपने हाथ जल-अंजलि दई ||
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− | {गीता.[अर] 213.08} तुलसी-भनित, सबरी-प्रनति, रघुबर-प्रकृति करुनामई |
| + | |
− | {गीता.[अर] 213.08} गावत, सुनत, समुझत भगति हिय होय प्रभु पद नित नई ||
| + | |
− | {गीता.[किष्] 214.01} किष्किन्धाकाण्ड
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− | {गीता.[किष्] 214.01} ऋष्यमूकपर राम
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− | {गीता.[किष्] 214.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[किष्] 214.01} भूषन-बसन बिलोकत सियके |
| + | |
− | {गीता.[किष्] 214.01} प्रेम-बिबस मन, कम्प पुलक तनु, नीरजनयन नीर भरे पियके ||
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− | {गीता.[किष्] 214.02} सकुचत कहत, सुमिरि उर उमगत, सील-सनेह-सुगुनगन तियके |
| + | |
− | {गीता.[किष्] 214.02} स्वामि-दसा-लखि लषन सखा कपि, पिघले हैं आँच माठ मानो घियके ||
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− | {गीता.[किष्] 214.03} सोचत हानि मानि मन, गुनि-गुनि गये निघटि फल सकल सुकियके |
| + | |
− | {गीता.[किष्] 214.03} बरने जामवन्त तेहि अवसर, बचन बिबेक बीररस बियके ||
| + | |
− | {गीता.[किष्] 214.04} धीर बीर सुनि समुझि परसपर, बल-उपाय उघटत निज हियके |
| + | |
− | {गीता.[किष्] 214.04} तुलसिदास यह समौ कहेतें कबि लागत निपट निठुर जड़ जियके ||
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− | {गीता.[किष्] 215.01} सीताजीकी खोजका आदेश
| + | |
− | {गीता.[किष्] 215.01} प्रभु कपि-नायक बोलि कह्यो है |
| + | |
− | {गीता.[किष्] 215.01} बरषा गई, सरद आई, अब लगि नहि सिय-सोधु लह्यो है ||
| + | |
− | {गीता.[किष्] 215.02} जा कारन तजि लोकलाज, तनु राखि बियोग सह्यो है |
| + | |
− | {गीता.[किष्] 215.02} ताको तौ कपिराज आज लगि, कछु न काज निबह्यो है ||
| + | |
− | {गीता.[किष्] 215.03} सुनि सुग्रीव सभीत नमित-मुख, उतरु न देन चह्यो है |
| + | |
− | {गीता.[किष्] 215.03} आइ गए हरि जूथ, देखि उर पूरि प्रमोद रह्यो है ||
| + | |
− | {गीता.[किष्] 215.04} पठये बदि-बदि अवधि दसहु दिसि, चले बलु सबनि गह्यो है |
| + | |
− | {गीता.[किष्] 215.04} तुलसी सिय लगि भव-दधिनिधि मनु फिर हरि चहत मह्यो है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 216.01} सुन्दरकाण्ड
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− | {गीता.[सुन्] 216.01} अशोकवनमें हनूमान्
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 216.राग} केदारा
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− | {गीता.[सुन्] 216.01} रजायसु रामको जब पायो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 216.01} गाल मेलि मुद्रिका, मुदित मन पवनपूत सिर नायो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 216.02} भालुनाथ नल-नील साथ चले, बली बालिको जायो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 216.02} फरकि सुअँग भए सगुन, कहत मानो मग मुद-मङ्गल छायो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 216.03} देखि बिवर, सुधि पाइ गीधसों सबनि अपनो बलु मायो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 216.03} सुमिरि राम, तकि तरकि तोयनिधि, लङ्क लूक-सो आयो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 216.04} खोजत घर घर, जनु दरिद्र-मनु फिरत लागि धन धायो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 216.04} तुलसी सिय बिलोकि पुलक्यो तनु, भूरिभाग भयो भायो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.01} देखी जानकी जब जाइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.01} परम धीर समीरसुतके प्रेम उर न समाइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.02} कृस सरीर सुभाय सोभित, लगी उड़ि उड़ि धूलि |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.02} मनहु मनसिज मोहनी-मनि गयो भोरे भूलि ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.03} रटति निसिबासर निरन्तर राम राजिवनैन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.03} जात निकट न बिरहिनी-अरि अकनि ताते बैन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.04} नाथके गुनगाथ कहि कपि दई मुँदरी डारि |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.04} कथा सुनि उठि लई कर बर, रुचिर नाम निहारि ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.05} हृदय हरष-बिषाद अति पति-मुद्रिका पहिचानि |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 217.05} दास तुलसी दसा सो कहि भाँति कहै बखानि ?||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 218.राग} सोरठ
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 218.01} बोलि, बलि, मूँदरी सानुज कुसल कोसलपालु |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 218.01} अमिय-बचन सुनाइ मेटहि बिरह-ज्वाला-जालु ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 218.02} कहत हित अपमान मैं कियो, होत हिय सोइ सालु |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 218.02} रोष छमि सुधि करत कबहू ललित लछिमन लालु ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 218.03} परसपर पति-देवरहि का होति चरचा चालु |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 218.03} देवि कहु केहि हेत बोले बिपुल बानर-भालु ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 218.04} सीलनिधि समरथ सुसाहिब दीनबन्धु दयालु |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 218.04} दास तुलसी प्रभुहि काहु न कह्यो मेरो हालु ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.01} सदल सलषन हैं कुसल कृपालु कोसल राउ!
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.01} सील-सदन सनेह-सागर सहज सरल सुभाउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.02} नीन्द-भूख न देवरहि, परिहरेको पछिताउ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.02} धीरधुर रघुबीरको नहि सपनेहू चित चाउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.03} सोधु बिनु, अनुरोध रितुके, बोध बिहित उपाउ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.03} करत हैं सोइ समय साधन, फलति बनत बनाउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.04} पठए कपि दिसि दसहु, जे प्रभुकाज कुटिल न काउ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.04} बोलि लियो हनुमान करि सनमान, जानि समाउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.05} दई हौं सङ्केत कहि, कुसलात सियहि सुनाउ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.05} देखि दुर्ग, बिसेषि जानकि, जानि रिपु-गति आउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.06} कियो सीय-प्रबोध मुँदरी, दियो कपिहि लखाउ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 219.06} पाइ अवसर, नाइ सिर तुलसीस-गुनगन गाउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.01} सुवन समीरको धीरधुरीन, बीर-बड़ोइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.01} देखि गति सिय-मुद्रिकाकी बाल ज्यों दियो रोइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.02} अकनि कटु बानी कुटिलकी क्रोध-बिन्ध्य बढ़ोइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.02} सकुचि सम भयो ईस-आयसु-कलसभव जिय जोइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.03} बद्धि-बल, साहस-पराक्रम अछत राखे गोइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.03} सकल साज-समाज साधक समौ, कहै सब कोइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.04} उतरि तरुतें नमत पद, सकुचात सोचत सोइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.04} चुके अवसर मनहु सुजनहि सुजन सनमुख होइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.05} कहे बचन बिनीत प्रीति-प्रतीति-नीति निचोइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.05} सीय सुनि हनुमान जान्यौ भली भाँति भलोइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.06} देबि! बिनु करतूति कहिबो जानिहैं लघु लोइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.06} कहौङ्गो मुखकी समरसरि कालि कारिख धोइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.07} करत कछू न बनत, हरिहिय हरष-सोक समोइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 220.07} कहत मन तुलसीस लङ्का करहुँ सघन घमोइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.01} हौं रघुबंसमनि को दूत |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.01} मातु मानु प्रतीति जानकि! जानि मारुतपूत ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.02} मैं सुनी बातैं असैली, जे कही निसिचर नीच |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.02} क्यों न मारै गाल, बैठो काल-डाढ़नि बीच ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.03} निदरि अरि, रघुबीर-बल लै जाउँ जौ हठि आज |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.03} डरौं आयसु-भङ्गतें, अरु बिगरिहै सुरकाज ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.04} बाँधि बारिधि, साधि रिपु, दिन चारिमें दोउ बीर |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.04} मिलहिङ्गे कपि-भालु-दल सँग, जननि! उर धरु धीर ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.05} चित्रकूट-कथा, कुसल कहि सीस नायो कीस |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.05} सुहृद-सेवक नाथको लखि दई अचल असीस ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.06} भये सीतल स्रवन-तन-मन सुने बचन-पियूष |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 221.06} दास तुलसी रही नयननि दरसहीकी भूख ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.01} तात! तोहूसों कहत होति हिये गलानि |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.01} मनको प्रथम पन समुझि अछत तनु,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.01} लखि नै गति भै मति मलानि ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.02} पियको बचन परहर्यो जियके भरोसे ,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.02} सङ्ग चली बन बड़ो लाभ जानि |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.02} पीतम-बिरह तौ सनेह सरबसु, सुत
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.02} औसरको चूकिबो सरिस न हानि ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.03} आरज-सुवनके तो दया दुवनहुपर,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.03} मोहि सोच, मोतें सब बिधि नसानि |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.03} आपनी भलाई भलो कियो नाथ सबहीको,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.03} मेरे ही दिन सब बिसरी बानि ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.04} नेम तौ पपीहाहीके, प्रेम प्यारो मीनहीके,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.04} तुलसी कही है नीके हृदय आनि |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.04} इतनी कही सो कही सीय, ज्योंही त्योंही
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 222.04} रही, प्रीति परी सही, बिधिसों न बसानि ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.01} मातु !काहेको कहति अति बचन दीन ?
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.01} तबकी तुही जानति, अबकी हौं ही कहत,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.01} सबके जियकी जानत प्रभु प्रबीन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.02} ऐसे तो सोचहि न्याय निठुर-नायक-रत
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.02} सलभ, खग, कुरङ्ग, कमल, मीन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.02} करुनानिधानको तो ज्यों ज्यों तनु छीन भयो,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.02} त्यों त्यों मनु भयो तेरे प्रेम पीन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.03} सियको सनेह, रघुबरकी दसा सुमिरि
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.03} पवनपूत देखि भयो प्रीति-लीन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.03} तुलसी जनको जननी प्रबोध कियो,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 223.03} "समुझि तात! जग बिधि-अधीन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.राग} जैतश्री
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.01} कहु कपि! कब रघुनाथ कृपा करि, हरिहैं निज बियोग
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.01} सम्भव दुख|
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.01} राजिवनयन, मयन-अनेक-छबि, रबिकुल-कुमुद-सुखद,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.01} मयङ्क-मुख ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.02} बिरह-अनल-स्वासा-समीर निज तनु जरिबे कहँ रही न
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.02} कछु सक |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.02} अति बल जल बरषत दोउ लोचन, दिन अरु रैन रहत
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.02} एकहि तक ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.03} सुदृढ़ ग्यान अवलम्बि, सुनहु सुत! राखति प्रान बिचारि
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.03} दहन मत |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.03} सगुन रुप, लीला-बिलास-सुख सुमिरति करति रहति
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.03} अंतरगत ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.04} सुनु हनुमन्त! अनन्त-बन्धु करुनासुभाव सीतल कोमल अति |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.04} तुलसिदास यहि त्रास जानि जिय, बरु दुख सहौं, प्रगट
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 224.04} कहि न सकति ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.01} कबहूँ, कपि! राघव आवहिङ्गे ?
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.01} मेरे नयनचकोर प्रीतिबस राकाससि मुख दिखरावहिङ्गे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.02} मधुप, मराल, मोर, चातक ह्वै लोचन बहु प्रकार धावहिङ्गे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.02} अंग-अंग छबि भिन्न-भिन्न सुख निरखि-निरखि तहँ-तहँ छावहिङ्गे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.03} बिरह-अगिनि जरि रही लता ज्यों कृपादृष्टि-जल पलुहावहिङ्गे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.03} निज बियोग-दुख जानि दयानिधि मधुर बचन कहि समुझावहिङ्गे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.04} लोकपाल, सुर, नाग, मनुज सब परे बन्दि कब मुकतावहिङ्गे ?
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.04} रावनबध रघुनाथ-बिमल-जस जारदादि मुनिजन गावहिङ्गे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.05} यह अभिलाष रैन-दिन मेरे, राज बिभीषन कब पावहिङ्गे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 225.05} तुलसिदास प्रभु मोहजनित भ्रम, भेदबुद्धि कब बिसरावहिङ्गे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.01} हनूमान् और रावणकी भेण्ट
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.राग} कान्हरा
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.01} सत्य बचन सुनु मातु जानकी !
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.01} जनके दुख रघुनाथ दुखित अति, सहज प्रकृति करुनानिधानकी ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.02} तुव बियोग-सम्भव दारुन दुख बिसरि गई महिमा सुबानकी |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.02} नतु कहु, कहँ रघुपति-सायक-रबि, तम-अनीक कहँ जातुधानकी ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.03} कहँ हम पशु साखामृग चञ्चल, बात कहौं मैं बिद्यमानकी!
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.03} कहँ हरि-सिव-अज-पूज्य-ग्यान-घन, नहि बिसरति वह लगनि कानकी ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.04} तुव दरसन-सन्देस सुनि हरिको बहुत भई अवलम्ब प्रानकी |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 226.04} तुलसिदास गुन सुमिरि रामके प्रेम-मगन नहि सुधि अपानकी ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.01} रावन! जू पै राम रन रोषे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.01} को सहि सकै सुरासुर समरथ, बिसिष काल-दसननितें चोषे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.02} तपबल, भुजबल, कै सनेह-बल सिव-बिरञ्चि नीकी बिधि तोषे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.02} सो फल राजसमाज-सुवन-जन आपु न नास आपने पोषे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.03} तुला पिनाक, साहु नृप, त्रिभुवन भट-बटोरि सबके बल जोषे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.03} परसुराम-से सूरसिरोमनि पलमें भए खेतके धोषे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.04} कालिकी बात बालिकी सुधि करि समुझि हिताहित खोलि झरोखे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.04} कह्यो कुमन्त्रिनको न मानिये, बड़ी हानि, जिय जानि त्रिदोषे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.05} जासु प्रसाद जनमि जग पुरषनि सागर सृजे, खने अरु सोखे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 227.05} तुलसिदास सो स्वामि न सूइयो, नयन बीस मन्दिर के-से मोखे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 228.राग} मारु
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 228.01} जो हौं प्रभु-आयसु लै चलतो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 228.01} तौ यहि रिस तोहि सहित दसानन! जातुधान दल दलतो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 228.02} रावन सो रसराज सुभट-रस सहित लङ्क-खल खलतो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 228.02} करि पुटपाक नाक-नायकहित घने घने घर घलतो ||
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− | {गीता.[सुन्] 228.03} बड़े ,समाज लाज-भाजन भयो, बड़ो काज बिनु छलतो |
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− | {गीता.[सुन्] 228.03} लङ्कनाथ! रघुनाथ-बैरु-तरु आजु फैलि फूलि फलतो ||
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− | {गीता.[सुन्] 228.04} काल-करम, दिगपाल, सकल जग-जाल जासु करतल तो |
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− | {गीता.[सुन्] 228.04} ता रिपुसों पर भूमि रारि रन जीवन-मरन सुफल तो ||
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− | {गीता.[सुन्] 228.05} देखी मैं दसकण्ठ! सभा सब, मोन्तें कोउ न सबल तो |
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− | {गीता.[सुन्] 228.05} तुलसी अरि उर आनि एक अब एती गलानि न गलतो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 229.01} सीताजीसे विदाई
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− | {गीता.[सुन्] 229.01} तौलौं, मातु! आपु नीके रहिबो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 229.01} जौलौं हौं ल्यावौं रघुबीरहि, दिन दस और दुसह दुख सहिबो ||
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− | {गीता.[सुन्] 229.02} सोखिकै, खेतकै, बाँधि सेतु करि उतरिबो उदधि, न बोहित चहिबो |
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− | {गीता.[सुन्] 229.02} प्रबल दनुज-दल दलि पल आधमें, जीवत दुरित दसानन गहिबो ||
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− | {गीता.[सुन्] 229.03} बैरिबृन्द-बिधवा-बनितनिको देखिबो बारि-बिलोचन बहिबो |
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− | {गीता.[सुन्] 229.03} सानुज सेनसमेत स्वामिपद निरखि परम मुद मङ्गल लहिबो ||
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− | {गीता.[सुन्] 229.04} लङ्क-दाह उर आनि मानिबो साँचु राम सेवकको कहिबो |
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− | {गीता.[सुन्] 229.04} तुलसी प्रभु सुर सुजस गाइहैं, मिटि जैहै सबको सोचु दव दहिबो ||
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− | {गीता.[सुन्] 230.01} कपिके चलत सियको मनु गहबरि आयो |
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− | {गीता.[सुन्] 230.01} पुलक सिथिल भयो सरीर, नीर नयनन्हि छायो ||
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− | {गीता.[सुन्] 230.02} कहन चह्यो सँदेस, नहि कह्यो, पियके जिय की जानि
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− | {गीता.[सुन्] 230.02} हृदय दुसह दुख दुरायो |
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− | {गीता.[सुन्] 230.02} देखि दसा ब्याकुल हरीस, ग्रीषमके पथिक ज्यों धरनि तरनि-तायो ||
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− | {गीता.[सुन्] 230.03} मीचतें नीच लगी अमरता, छलको न बलको निरखि थल
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− | {गीता.[सुन्] 230.03} परुष प्रेम पायो|
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− | {गीता.[सुन्] 230.03} कै प्रबोध मातु-प्रीतिसों असीस दीन्हीं ह्वैहै तिहारोई मनभायो ||
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− | {गीता.[सुन्] 230.04} करुना-कोप-लाज-भय-भरो कियो गौन, मौन ही चरन कमल
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− | {गीता.[सुन्] 230.04} सीस नायो |
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− | {गीता.[सुन्] 230.04} यह सनेह-सरबस समौ, तुलसी रसना रुखी, ताही तें परत गायो ||
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− | {गीता.[सुन्] 231.01} हनुमान्जीका भगवान् रामके पास पहुँचना
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− | {गीता.[सुन्] 231.राग} बसन्त
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− | {गीता.[सुन्] 231.01} रघुपति देखो आयो हनूमन्त | लङ्केस-नगर खेल्यो बसन्त ||
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− | {गीता.[सुन्] 231.02} श्रीराम-काजहित सुदिन सोधि | साथी प्रबोधि लाँघ्यो पयोधि ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 231.03} सिय-पाँय पूजि, आसिषा पाइ | फल अमिय सरिस खायो अघाइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 231.04} कानन दलि, होरी रचि बनाइ | हठि तेल-बसन बालधि बँधाइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 231.05} लिए ढोल चले सँग लोग लागि | बरजोर दई चहुँ ओर आगि ||
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− | {गीता.[सुन्] 231.06} आखत आहुति किये जातुधान | लखि लपट भभरि भागे बिमान ||
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− | {गीता.[सुन्] 231.07} नभतल कौतुक, लङ्का बिलाप | परिनाम पचहिं पातकी पाप ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 231.08} हनुमान-हाँक सुनि बरषि फूल | सुर बार बार बरनहिं लँगूर ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 231.09} भरि भुवन सकल कल्यान-धूम | पुर जारि बारिनिधि बोरि लूम ||
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− | {गीता.[सुन्] 231.10} जानकी तोषि पोषेउ प्रताप | जय पवन-सुवन दलि दुअन-दाप ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 231.11} नाचहिं-कूदहिं कपि करि बिनोद | पीवत मधु मधुबन मगन मोद ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 231.12} यों कहत लषन गहे पाँय आइ | मनि सहित मुदित भेण्ट्यो उठाइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 231.13} लगे सजन सेन, भयो हिय हुलास | जय जय जस गावत तुलसिदास ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 232.राग} जैतश्री
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− | {गीता.[सुन्] 232.01} सुनहु राम बिश्रामधाम हरि! जनकसुता अति बिपति जैसे सहति |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 232.01} "हे सौमित्रि-बन्धु करुनानिधि!मन महँ रटति, प्रगट नहिं कहति ||
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− | {गीता.[सुन्] 232.02} निजपद-जलज बिलोकि सोकरत नयननि बारि रहत न एक छन |
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− | {गीता.[सुन्] 232.02} मनहु नील नीरजससि-सम्भव रबि-बियोग दोउ स्रवत सुधाकन ||
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− | {गीता.[सुन्] 232.03} बहु राच्छसी सहित तरुके तर तुम्हरे बिरह निज जनम बिगोवति |
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− | {गीता.[सुन्] 232.03} मनहु दुष्ट इंद्रिय सङ्कट महँ बुद्धि बिबेक उदय मगु जोवति ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 232.04} सुनि कपि बचन बिचारि हृदय हरि अनपायनी सदा सो एक मन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 232.04} तुलसिदास दुख-सुखातीत हरि सोच करत मानहु प्राकृत जन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 233.राग} केदारा
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− | {गीता.[सुन्] 233.01} रघुकुलतिलक! बियोग तिहारे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 233.01} मैं देखी जब जाइ जानकी, मनहु बिरह-मूरति मन मारे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 233.02} चित्र-से नयन अरु गढ़ेसे चरन-कर, मढ़े-से स्रवन, नहि सुनति पुकारे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 233.02} रसना रटति नाम, कर सिर चिर रहै, नित निजपद-कमल निहारे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 233.03} दरसन-आस-लालसा मन महँ राखे प्रभु-ध्यान प्रान-रखवारे |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 233.03} तुलसिदास पूजति त्रिजटा नीके रावरे गुन-गन-सुमन सँवारे ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 234.01} अतिहि अधिक दरसनकी आरति |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 234.01} राम-बियोग असोक-बिटपतर सीय निमेष कलपसम टारति ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 234.02} बार-बार बर बारिजलोचन भरि भरि बरत बारि उर ढारति |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 234.02} मनहु बिरहके सद्य घाय हिये लखि तकि-तकि धरि धीरज तारति ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 234.03} तुलसिदास जद्यपि निसिबासर छिन-छिन प्रभुमूरतिहि निहारति |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 234.03} मिटति न दुसह ताप तौ तनकी, यह बिचारि अंतर गति हारति ||
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− | {गीता.[सुन्] 235.01} तुम्हरे बिरह भई गति जौन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 235.01} चित दै सुनहु, राम करुनानिधि! जानौं कछु, पै सकौं कहि हौं न ||
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− | {गीता.[सुन्] 235.02} लोचन-नीर कृपिनके धन ज्यों रहत निरन्तर लोचनन कोन |
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− | {गीता.[सुन्] 235.02} "हा धुनि-खगी लाज-पिञ्जरी महँ राखि हिये बड़े बधिक हठि मौन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 235.03} जेहि बाटिका बसति, तहँ खग-मृग तजि-तजि भजे पुरातन भौन |
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− | {गीता.[सुन्] 235.03} स्वास-समीर भेण्ट भै बोरेहु, तेहि मग पगु न धर्यो तिहुँ पौन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 235.04} तुलसिदास प्रभु! दसा सीयकी मुख करि कहत होति अति गौन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 235.04} दीजै दरस, दूरि कीजै दुख, हौ तुम्ह आरत-आरति दौन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 236.01} कपिके सुनि कल कोमल बैन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 236.01} प्रेमपुलकि सब गात सिथिल भए, भरे सलिल सरसीरुह-नैन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 236.02} सिय-बियोग-सागर नागर-मनु बूड़न लग्यो सहित चित-चैन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 236.02} लही नाव पवनज-प्रसन्नता, बरबस तहाँ गह्यो गुन-मैन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 236.03} सकत न बूझि कुसल, बूझे बिन गिरा बिपुल ब्याकुल उर-ऐन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 236.03} ज्यों कुलीन सुचि सुमति बियोगिनि सनमुख सहै बिरह-सर पैन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 236.04} धरि-धरि धीर बीर कोसलपति किए जतन, सके उत्तरु दै न |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 236.04} तुलसिदास प्रभु सखा अनुजसों सैनहिं कह्यौ चलहु सजन सैन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.01} वानरसेनाकी लङ्कायात्रा
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.राग} मारु
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.01} जब रघुबीर पयानो कीन्हों |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.01} छुभित सिन्धु, डगमगत महीधर, सजि सारँग कर लीन्हों ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.02} सुनि कठोर टङ्कोर घोर अति चौङ्के बिधि-त्रिपुरारि |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.02} जटापटल ते चली सुरसरी सकत न सम्भु सँभारि ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.03} भए बिकल दिगपाल सकल, भय भरे भुवन दस चारि |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.03} खरभर लङ्क, ससङ्क दसानन, गरभ स्रबहिं अरि-नारि ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.04} कटकटात भट भालु, बिकट मरकट करि केहरि-नाद |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.04} कूदत करि रघुनाथ-सपथ उपरी-उपरा बदि बाद ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.05} गिरि-तरुधर, नख मुख कराल, रद कालहु करत बिषाद |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.05} चले दस दिसि रिस भरि धरु "धरु कहि,"को बराक मनुजाद ?||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.06} पवन पङ्गु पावक-पतङ्ग-ससि दुरि गए, थके बिमान |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.06} जाचत सुर निमेष, सुरनायक नयन-भार अकुलान ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.07} गए पूरि सर धूरि, भूरि भय अग थल जलधि समान |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.07} नभ-निसान, हनुमान-हाँक सुनि समुझत कोउ न अपान ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.08} दिग्गज-कमठ-कोल-सहसानन धरत धरनि धरि धीर |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.08} बारहि बारि अमरषत, करषत, करकैं परीं सरीर ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.09} चली चमू, चहु ओर सोर, कछु बनै न बरने भीर |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.09} किलकिलात, कसमसत, कोलाहल होत नीरनिधि-तीर ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.10} जातुधानपति जानि कालबस मिले बिभीषन आइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.10} सरनागत-पालक कृपालु कियो तिलक लियो अपनाइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.11} कौतुकही बारिधि बँधाइ उतरे सुबेल-तट जाइ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 237.11} तुलसिदास गढ़ देखि फिरे कपि,प्रभु-आगमन सुनाइ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.01} रावणकी मन्त्रणा
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.राग} आसावरी
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.01} आए देखि दूत, सुनि सोच सठ-मनमैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.01} बाहर बजावै गाल, भालु कपि कालबस|
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.01} मोसे बीरसों चहत जीत्यो रारि रनमैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.02} राम छाम, लरिका लषन, बालि-बालकहि,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.02} घालिको गनत? रीछ जल ज्यों न घनमैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.02} काजको न कपिराज, कायर कपिसमाज,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.02} मेरे अनुमान हनुमान हरिगनमैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.03} समय सयानी मृदु बानी रानी कहै पिय !
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.03} पावक न होइ जातुधान बेनु-बनमैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.03} तुलसी जानकी दिए, स्वामीसों, सनेह किये
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 238.03} कुसल, नतरु सब ह्वैहैं छार छनमैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.01} आपनी आपनी भाँति सब काहू कही है|
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.01} मन्दोदरी, महोदर, मालवान महामति,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.01} राजनीति पहुँच जहाँलौं जाकी रही है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.02} महामद-अंध दसकन्ध न करत कान,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.02} मीचु-बस नीच हठि कुगहनि गही है |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.02} हँसि कहै, सचिव सयाने मोसों यों कहत,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.02} चहै मेरु उड़न, बड़ी बयारि बही है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.03} भालु, नर, बानर अहार निसिचरनिको,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.03} सोऊ नृप-बालकनि माँगी धारि लही है |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.03} देखो मालकौतुक, फिपीलिकनि पङ्ख लागो,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.03} भाग मेरे लोगनिके भई चित-चही है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.04} "तोसो न तिलोक आजु साहस, समाज-साजु,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.04} महाराज-आयसु भो जोई, सोई सही है |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.04} तुलसी प्रनामकै बिभीषन बिनती करै,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 239.04} "ख्याल बेधे ताल, कपि केलि लङ्का दही है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.01} दूसरो न देखतु साहिब सम रामै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.01} बेदौउ पुरान, कबि-कोबिद बिरद-रत,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.01} जाको जसि सुनत गावत गुन-ग्रामै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.02} माया-जीव, जग-जाल, सुभाउ, करम-काल,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.02} सबको सासकु, सब मैं, सब जामैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.02} बिधि-से करनिहार, हरि-से पालनिहार,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.02} हर-से हरनिहार जपैं जाके नामैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.03} सोइ नरबेष जानि, जनकी बिनती मानि,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.03} मतो नाथ सोई, जातें भलो परिनामैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.03} सुभट-सिरोमनि कुठारपानि सारिखेहू
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.03} लखी औ लखाई, इहाँ किए सुभ सामैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.04} बचन-बिभूषन बिभिषन-बचन सुनि
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.04} लागे दुख दूषन-से दाहिनेउ बामैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.04} तुलसी हुमकि हिये हन्यो लात, "भले तात,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 240.04} चल्यो सुरतरु ताकि तजि घोर घामैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.01} विभीषण-शरणागति
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.01} जाय माय पायँ परि कथा सो सुनाई है |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.01} समाधान करति बिभीषनको बार बार,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.01} "कहा भयो तात! लात मारे, बड़ो भाई है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.02} साहिब, पितु समान, जातुधानको तिलक,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.02} ताके अपमान तेरी बड़िए बड़ाई है |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.02} गरत गलानि जानि, सनमानि सिख देति,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.02} "रोष किये तोष, सहें समुझें भलाई है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.03} इहाँतें बिमुख भयें, रामकी सरन गए
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.03} भलो नेकु, लोक राखे निपट निकाई है |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.03} मातु-पग सीस नाइ, तुलसी असीस पाइ
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 241.03} चले भले सगुन, कहत "मन भाइ है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.01} "भाई को सो करौं, डरौं कठिन कुफेरै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.01} सुकृत-सङ्कट पर्यो, जात गलानिन्ह गर्यो ,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.01} कृपानिधिको मिलौं पै मिलिकै कुबेरै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.02} जाइ गह पाँय, धाइ धनद उठाइ भेट्यो,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.02} समाचार पाइ पोच सोचत सुमेरै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.02} तहँई मिले महेस, दियो हित उपदेस,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.02} रामकी सरन जाहि "सुदिनु न हेरै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.03} जाको नाम कुम्भज कलेस-सिन्धु सोखिबेको,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.03} मेरो कह्यो मानि, तात!बाँधे जिनि बेरै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.03} तुलसी मुदित चले, पाये हैं सगुन भले,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 242.03} रङ्क लूटिबेको मानो मनिगन-ढेरै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.01} सङ्कर-सिख आसिष पाइकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.01} चले मनहि मन कहत बिभीषन सीस महेसहि नाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.02} गये सोच, भए सगुन, सुमङ्गल दस दिसि देत देखाइकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.02} सजल नयन, सानन्द हृदय, तनु प्रेम-पुलक अधिकाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.03} अंतहु भाव भलो भाईको, कियो अनभलो मनाइकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.03} भै कूबरकी लात, बिधाता राखी बात बनाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.04} नाहित क्यों कुबेर घर मिलि हर हितु कहते चित लाइकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.04} जो सुनि सरन राम ताके मैं निज बामता बिहाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.05} अनायास अनुकूल सूलधर मग मुदमूल जनाइकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.05} कृपासिन्धु सनमानि, जानि जन दीन लियो अपनाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.06} स्वारथ-परमारथ करतलगत, श्रमपथ गयो सिराइकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.06} सपने कै सौतुक, सुख-सस सुर सीञ्चत देत निराइकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.07} गुरु गौरीस, साँइ सीतपति, हित हनुमानहि जाइकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.07} मिलिहौं, मोहि कहा कीबे अब, अभिमत, अवधि अघाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.08} मरतो कहाँ जाइ, को जानै लटि लालची ललाइकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 243.08} तुलसिदास भजिहौं रघुबीरहि अभय-निसान बजाइकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 244.01} पदपदुम गरीबनिवाजके |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 244.01} देखिहौं जाइ पाइ लोचन-फल हित सुर-साधु-समाजके ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 244.02} गई बहोर, ओर निरबाहक, साजक बिगरे साजके |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 244.02} सबरी सुखद, गीध-गतिदायक, समन सोक कपिराजके ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 244.03} नाहिन मोहि और कतहूँ कछु, जैसे काग जहाजके |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 244.03} आयो सरन सुखद पदपङ्कज चोन्थे रावन-बाजके ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 244.04} आरतिहरन सरन, समरथ सब दिन अपनेकी लाजके |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 244.04} तुलसी "पाहि कहत नत-पालक मोहुसे निपट निकाजके ||
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− | {गीता.[सुन्] 245.01} महाराज रामपहँ जाउँगो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 245.01} सुख-स्वारथ परिहरि करिहौं सोइ, ज्यौं साहिबहि सुहाँउगो ||
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− | {गीता.[सुन्] 245.02} सरनागत सुनि बेगि बोलि हैं, हौं निपटहि सकुचाउँगो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 245.02} राम गरीबनिवाज निवाजिहैं जानिहैं, ठाकुर-ठाउँगो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 245.03} धरिहैं नाथ हाथ माथे, एहितें केहि लाभ अघाउँगो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 245.03} सपनो-सो अपनो न कछू लखि, लघु लालच न लोभाउँगो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 245.04} कहिहौं, बलि, रोटिहा रावरो, बिनु मोलही बिकाउँगो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 245.04} तुलसी पट ऊतरे ओढ़िहौं, उबरी जूठनि खाउँगो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 246.01} आइ सचिव बिभीषनके कही |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 246.01} कृपासिन्धु !दसकन्धबन्धु लघु चरन-सरन आयो सही ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 246.02} बिषम बिषाद-बारिनिधि बूड़त थाह कपीस-कथा लही |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 246.02} गये दुख-दोष देखि पदपङ्कज, अब न साध एकौ रही ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 246.03} सिथिल-सनेह सराहत नख-सिख नीक निकाई निरबही |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 246.03} तुलसी मुदित दूत भयो, मानहु अमिय-लाहु माँगत मही ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 247.01} बिनती सुनि प्रभु प्रमुदित भए |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 247.01} रीछराज, कपिराज नील-नल बोलि बालिनन्दन लए ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 247.02} बूझिये कहा? रजाइ पाइ नय-धरम सहित ऊतर दए |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 247.02} बली बन्धु ताको जेहि बिमोह-बस बैर-बीज बरबस बए ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 247.03} बाँहपगार द्वार तेरे तैं सभय न कबहूँ फिरि गए |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 247.03} तुलसी असरन-सरन स्वामिके बिरद बिराजत नित नए ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 248.01} हिय बिहसि कहत हनुमानसों |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 248.01} सुमति साधु सुचि सुहृद बिभीषन बूझि परत अनुमानसों ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 248.02} "हौं बलि जाउँ और को जानै ?कही कपि कृपानिधानसों |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 248.02} छली न होइ स्वामि सनमुख, ज्यों तिमिर सातहय-जानसों ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 248.03} खोटो खरो सभीत पालिये सो, सनेह सनमानसों |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 248.03} तुलसी प्रभु कीबो जो भलो, सोइ बूझि सरासन-बानसों ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 249.01} साँचेहु बिभीषन आइहै ?
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− | {गीता.[सुन्] 249.01} बूझत बिहँसि कृपालु, लखन सुनि कहत सकुचि सिर नाइ है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 249.02} ऐहै कहा, नाथ? आयो ह्याँ, क्यों कहि जाति बनाइ है |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 249.02} रावन-रिपुहि राखि, रघुबर बिनु, को त्रिभुवन पति पाइहै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 249.03} प्रभु प्रसन्न, सब सभा सराहति, दूत-बचन मन भाइहै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 249.03} तुलसी, "बोलिये बेगि, लषनसों भै महाराज-रजाइ है ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.01} चले लेन लषन-हनुमान हैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.01} मिले मुदित बूझि कुसल परसपर-सकुचत करि सनमान हैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.02} भयो रजायसु पाउँ धारिए, बोलत कृपानिधान हैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.02} दूरितें दीनबन्धु देखे, जनु देत अभय-बरदान हैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.03} सील सहस हिमभानु, तेज सतकोटि भानुहूके भानु हैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.03} भगतनिको हित कोटि मातु-पितु अरिन्हको कोटि कृसानु हैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.04} जनगुन रज गिरि गनि, सकुचत निज गुन गिरि रज परमानु हैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.04} बाँह-पगारु, बोलको अबिचल बेद करत गुनगान हैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.05} चारु चाप-तूनीर तामरस-करनि सुधारत बान हैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.05} चरचा चलति बिभीषनकी, सोइ सुनत सुचित दै कान हैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.06} हरषत सुर, बरषत प्रसून सुभ सगुन कहत कल्यान हैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 250.06} तुलसी ते कृतकृत्य, जे सुमिरत समय सुहावनो ध्यान हैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.01} रामहि करत प्रनाम निहारिकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.01} उठे उमँगि आनन्द-प्रेम-परिपूरन बिरद बिचारिकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.02} भयो बिदेह बिभीषन उत, इत प्रभु अपनपौ बिसारिकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.02} भलीभाँति भावते भरत-ज्यों भेण्ट्यौ भुजा पसारिकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.03} सादर सबहि मिलाइ समाजहि निपट निकट बैठारिकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.03} बूझत छेम-कुसल सप्रेम अपनाइ भरोसे भारिकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.04} नाथ! कुसल-कल्यान-सुमङ्गल बिधि सुख सकल सुधारिकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.04} देत-लेत जे नाम रावरो, बिनय करत मुख चारिकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.05} जो मूरति सपने न बिलोकत मुनि-महेस मन मारिकै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 251.05} तुलसी तेहि हौं लियो अंक भरि, कहत कछू न सँवारिकै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.01} करुनाकरकी करुना भई |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.01} मिटी मीचु, लहि लङ्क सङ्क गै, काहूसो न खुनिस खई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.02} दसमुख तज्यो दूध-माखी-ज्यौं, आपु काढ़ि साढ़ी लई |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.02} भव-भूषन सोइ कियो बिभीषन मुद मङ्गल-महिमामई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.03} बिधि-हरि-हर, मुनि-सिद्ध सराहत, मुदित देव दुन्दुभी दई |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.03} बारहि बार सुमन बरषत, हिय हरषत कहि जै जै जई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.04} कौसिक-सिला-जनक-सङ्कट हरि भृगुपतिकी टारी टई |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.04} खग-मृग सबर-निसाचर, सबकी पूँजी बिनु बाढ़ी सई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.05} जुग-जुग कोटि-कोटि करतब, करनी न कछू बरनी नई |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 252.05} राम-भजन-महिमा हुलसी हिय, तुलसीहूकी बनि गई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.01} मञ्जुल मूरति मङ्गलमई |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.01} भयो बिसोक बिलोकि बिभीषन, नेह देह-सुधि-सींव गई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.02} उठि दाहिनी ओरतें सनमुख सुखद माँगि बैठक लई |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.02} नखसिख निरखि-निरखि सुख पावत भावत कछु, कछु और भई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.03} बार कोटि सिर काटि, साटि लटि, रावन सङ्करपै लई |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.03} सोइ लङ्का लखि अतिथि अनवसर राम तृनासन-ज्यों दई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.04} प्रीति-प्रतीति-रीति-सोभा-सिर, थाहत जहँ जहँ तहँ घई |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.04} बाहु-बली, बानैत बोलको, बीर बिस्वबिजई जई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.05} को दयालु दूसरो दुनी, जेहि जरनि दीन-हियकी हई ?
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 253.05} तुलसी काको नाम जपत जग जगती जामति बिनु बई ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.01} सब भाँति बिभीषनकी बनी |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.01} कियो कृपालु अभय कालहुतें, गै संसृति-साँसति घनी ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.02} सखा लषन-हनुमान, सम्भु गुर, धनी राम कोसलधनी |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.02} हिय ही और, और कीन्हीं बिधि, रामकृपा औरै ठनी ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.03} कलुष-कलङ्क-कलेस-कोस भयो जो पद पाय रावन रनी |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.03} सोइ पद पाय बिभीषन भो भव-भूषन दलि दूषन-अनी ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.05} रङ्क-निवाज रङ्क राजा किए, गए गरब गरि गरि गनी |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.05} राम-प्रनाम महामहिमा-खनि, सकल सुमङ्गलमनि-जनी ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.06} होय भलो ऐसे ही अजहुँ गये राम-सरन परिहरि मनी |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 254.06} भुजा उठाइ, साखि सङ्कर करि, कसम खाइ तुलसी भनी ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 255.01} कहो, क्यों न बिभीषनकी बनै ?
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 255.01} गयो छाड़ि छल सरन रामकी, जो फल चारि चार्यौं जनै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 255.02} मङ्गलमूल प्रनाम जासु जग, मूल अमङ्गलके खनै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 255.02} तेहि रघुनाथ हाथ माथे दियो, को ताकी महिमा भनै ?||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 255.03} नाम-प्रताप पतितपावन किए, जे न अघाने अघ अनै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 255.03} कोउ उलटो, कोउ सुधो जपि भए राजहंस बायस-तनै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 255.04} हुतो ललात कृसगात खात खरि, मोद पाइ कोदो-कनै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 255.04} सो तुलसी चातक भयो जाचत राम स्यामसुन्दर घनै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 256.01} अति भाग बिभीषनके भले |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 256.01} एक प्रनाम प्रसन्न राम भए, दुरित-दोष-दारिद दले ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 256.02} रावन-कुम्भकरन बर माँगत सिव-बिरञ्चि बाचा छले |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 256.02} राम-दरस पायो अबिचल पद, सुदिन सगुन नीके चले ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 256.03} मिलनि बिलोकि स्वामि-सेवककी उकठे तरु फूले-फले |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 256.03} तुलसी सुनि सनमान बन्धुको दसकन्धर हँसि हिये जले ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 257.01} गये राम सरन सबकौ भलो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 257.01} गनी-गरीब, बड़ो-छोटो, बुध-मूढ़, हीनबल-अतिबलो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 257.02} पङ्गु-अंध, निरगुनी-निसम्बल, जो न लहै जाचे जलो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 257.02} सो निबह्यो नीके, जो जनमि जग राम-राजमारग चलो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 257.03} नाम-प्रताप-दिवाकर कर खर गरत तुहिन ज्यों कलिमलो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 257.03} सुतहित नाम लेत भवनिधि तरि गयो अजामिल-सो खलो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 257.04} प्रभुपद प्रेम प्रनाम-कामतरु सद्य बिभीषनको फलो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 257.04} तुलसी सुमिरत नाम सबनिको मङ्गलमय नभ-जल थलो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.01} सुजस सुनि श्रवन हौं नाथ! आयो सरन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.01} उपल-केवट-गीध-सबरी-संसृति-समन,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.01} सोक-श्रम-सीव सुग्रीव आरतिहरन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.02} राम राजीव-लोचन बिमोचन बिपति,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.02} स्याम नव-तामरस-दाम बारिद-बरन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.02} लसत जटाजूट सिर, चारु मुनिचीर कटि,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.02} धीर रघुबीर तूनीर-सर-धनु-धरन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.03} जातुधानेस-भ्राता बिभीषन नाम
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.03} बन्धु-अपमान गुरु ग्लानि चाहत गरन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.03} पतितपावन! प्रनतपाल! करुनासिन्धु!
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.03} राखिए मोहि सौमित्रि-सेवित-चरन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.04} दीनता-प्रीति-सङ्कलित मृदुबचन सुनि
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.04} पुलकि तन प्रेम, जल नयन लागे भरन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.04} बोलि, "लङ्केस कहि अंक भरि भेण्टि प्रभु,
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.04} तिलक दियो दीन-दुख-दोष दारिद-दरन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.05} रातिचर-जाति, आराति सब भाँति गत
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.05} कियो सो कल्यान-भाजन सुमङ्गलकरन |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.05} दास तुलसी सदयहृदय रघुबंसमनि
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 258.05} "पाहि कहे काहि कीन्हों न तारन-तरन ?||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.01} दीन-हित बिरद पुराननि गायो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.01} आरत-बन्धु, कृपालु, मृदुल-चित जानि सरन हौं आयो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.02} तुम्हरे रिपुको अनुज बिभीषन, बंस निसाचर जायो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.02} सुनि गुन-सील-सुभाउ नाथको मैं चरननि चितु लायो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.03} जानत प्रभु दुख-सुख दासनिको, तातें कहि न सुनायो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.03} करु करुना भरि नयन बिलोकहु, तब जानौं अपनायो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.04} बचन बिनीत सुनत रघुनायक हँसि करि निकट बुलायो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.04} भेण्ट्यो हरि भरि अंक भरत-ज्यों, लङ्कापति मन भायो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.05} करपङ्कज सिर परसि अभय कियो, जनपर हेतु दिखायो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 259.05} तुलसिदास रघुबीर भजन करि को न परमपद पायो ?||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.01} सत्य कहौं मेरो सहज सुभाउ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.01} सुनहु सखा कपिपति लङ्कापति, तुम्ह सन कौन दुराउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.02} सब बिधि हीन-दीन, अति जड़मति जाको कतहुँ न ठाउँ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.02} आयो सरन भजौं, न तजौं तिहि, यह जानत रिषिराउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.03} जिन्हके हौं हित सब प्रकार चित, नाहिन और उपाउ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.03} तिन्हहिं लागि धरि देह करौं सब, डरौं न सुजस नसाउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.04} पुनि पुनि भुजा उठाइ कहत हौं, सकल सभा पतिआउ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.04} नहि कोऊ प्रिय मोहि दास सम, कपट-प्रीति बहि जाउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.05} सुनि रघुपतिके बचन बिभीषन प्रेम-मगन, मन चाउ |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 260.05} तुलसिदास तजि आस-त्रास सब ऐसे प्रभु कहँ गाउ ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 261.01} नाहिन भजिबे जोग बियो |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 261.01} श्रीरघुबीर समान आन को पूरन-कृपा-हियो ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 261.02} कहहु, कौन सुर सिला तारि पुनि केवट मीत कियो ?
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 261.02} कौने गीध अधमको पितु-ज्यों निज कर पिण्ड दियो ?||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 261.03} कौन देव सबरीके फल करि भोजन सलिल पियो ?
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 261.03} बालित्रास-बारिधि बूड़त कपि केहि गहि बाँह लियो ?||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 261.04} भजन-प्रभाउ बिभीषन भाष्यौ, सुनि कपि-कटक जियो |
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− | {गीता.[सुन्] 261.04} तुलसिदासको प्रभु कोसलपति सब प्रकार बरियो ||
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− | {गीता.[सुन्] 262.01} जानकी-त्रिजटा-संवाद
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− | {गीता.[सुन्] 262.राग} जैतश्री
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− | {गीता.[सुन्] 262.01} कब देखौङ्गी नयन वह मधुर मूरति ?
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− | {गीता.[सुन्] 262.01} राजिवदल-नयन, कोमल, कृपा-अयन,
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− | {गीता.[सुन्] 262.01} मयननि बहु छबि अंगनि दुरति ||
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− | {गीता.[सुन्] 262.02} सिरसि जटा-कलाप, पानि सायक,
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− | {गीता.[सुन्] 262.02} चाप, उरसि रुचिर बनमाल लूरति |
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− | {गीता.[सुन्] 262.02} तुलसिदास रघुबीरकी सोभा सुमिरि,
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− | {गीता.[सुन्] 262.02} भई है मगन नहि तनकी सूरति ||
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− | {गीता.[सुन्] 263.राग} केदारा
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− | {गीता.[सुन्] 263.01} कहु, कबहुँ देखिहौं आली! आरज-सुवन |
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− | {गीता.[सुन्] 263.01} सानुज सुभग-तनु जबतें बिछुरे बन,
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− | {गीता.[सुन्] 263.01} तबतें दव-सी लगी तीनिहू भुवन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 263.02} मूरति सूरति किये प्रगट प्रीतम हिये,
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− | {गीता.[सुन्] 263.02} मनके करन चाहैं चरन छुवन |
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− | {गीता.[सुन्] 263.02} चित चढ़िगो बियोग-दसा न कहिबे जोग,
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− | {गीता.[सुन्] 263.02} पुलक गात, लागे लोचन चुवन ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 263.03} तुलसी त्रिजटा जानी, सिय अति अकुलानी
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− | {गीता.[सुन्] 263.03} मृदु बानी कह्यौ ऐहैं दवन-दुवन |
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− | {गीता.[सुन्] 263.03} तमीचर-तम-हारी सुरकञ्ज-सुखकारी
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− | {गीता.[सुन्] 263.03} रबिकुल-रबि अब चाहत उवन ||
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− | {गीता.[सुन्] 264.01} अबलौं मैं तोसों न कहे री |
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− | {गीता.[सुन्] 264.01} सुन त्रिजटा! प्रिय प्राननाथ बिनु बासर निसि दुख दुसह सहे री ||
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− | {गीता.[सुन्] 264.02} बिरह बिषम बिष-बेलि बढ़ी उर, ते सुख सकल सुभाय दहे री |
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− | {गीता.[सुन्] 264.02} सोइ सीञ्चिबे लागि मनसिजके रहँट नयन नित रहत नहे री ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 264.03} सर-सरीर सूखे प्रान-बारिचर जीवन-आस तजि चलनु चहे री |
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− | {गीता.[सुन्] 264.03} तैं प्रभु सुजस-सुधा सीतल करि राखे, तदपि न तृप्ति लहे री ||
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− | {गीता.[सुन्] 264.04} रिपु-रिस घोर नदी बिबेक-बल, धीर-सहित हुते जात बहे री |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 264.04} दै मुद्रिका-टेक तेहि औसर, सुचि समिरसुत पैरि गहे री ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 264.05} तुलसिदास सब सोच पोच मृग मन-कानन भरि पूरि रहे री |
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− | {गीता.[सुन्] 264.05} अब सखि सिय सँदेह परिहरु हिय, आइ गए दोउ बीर अहेरी ||
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− | {गीता.[सुन्] 265.राग} बिलावल
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− | {गीता.[सुन्] 265.01} सो दिन सोनेको, कहु, कब एहै !
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− | {गीता.[सुन्] 265.01} जा दिन बँध्यो सिन्धु त्रिजटा! सुनि तू सम्भ्रम आनि मोहि सुनैहै ||
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− | {गीता.[सुन्] 265.02} बिस्व-दवन सुर-साधु-सतावन रावन कियो आपनो पैहै |
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− | {गीता.[सुन्] 265.02} कनकपुरी भयो भूप बिभीषन, बिबुध-समाज बिलोकन धैहै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 265.03} दिब्य दुन्दुभी, प्रसंसिहैं मुनिगन, नभतल बिमल बिमाननि छैहै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 265.03} बरषिहैं कुसुम भानुकुल-मनिपर, तब मोको पवनपूत लै जैहै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 265.04} अनुज सहित सोभिहैं कपि महँ, तनु-छबि कोटि मनोजहि तैहै |
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− | {गीता.[सुन्] 265.04} इन नयनन्हि यही भाँति प्रानपति निरखि हृदय आनँद न समैहै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 265.05} बहुरो सदल सनाथ सलछिमन कुसल कुसल बिधि अवध देखैहै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 265.05} गुर, पुरलोग, सास, दोउ देवर, मिलत दुसह उर तपनि बुतैहै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 265.06} मङ्गल-कलस, बधावने घर-घर, पैहैं माँगने जो जैहि भैहै |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 265.06} बिजय राम राजाधिराजको, तुलसिदास पावन जस गैहै ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.01} सिय! धीरज धरिये, राघौ अब ऐहैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.01} पवनपूतपै पाइ तिहारी सुधि, सहज कृपालु, बिलम्ब न लैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.02} सेन साजि कपि-भालु कालसम कौतुक ही पाथोधि बँधैहैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.02} घेरोइपै देखिबो लङ्कगढ़, बिकल जातुधानी पछितैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.03} निसिचर-सलभ कृसानु राम सर उड़ि-उड़ि परत जरत जड़ जैहैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.03} रावन करि परिवार अगमनो, जमपुर जात बहुत सकुचैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.04} तिलक सारि, अपनाय बिभीषन, अभय-बाँह दै अमर बसैहैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.04} जय धुनि मुनि, बरसिहैं सुमन सुर, ब्योम बिमान निसान बजैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.05} बन्धु समेत प्रानबल्लभ पद परसि सकल परिताप नसैहैं |
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− | {गीता.[सुन्] 266.05} राम-बामदिसि देखि तुमहि सब नयनवन्त लोचन-फल पैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.06} तुम अति हित चितैहौ नाथ-तनु, बार-बार प्रभु तुमहि चितैहैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.06} यह सोभा, सुख-समय बिलोकत काहू तो पलकैं नहिं लैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.07} कपिकुल-लखन-सुजस-जय-जानकि सहित कुसल निज नगर सिधैहैं |
| + | |
− | {गीता.[सुन्] 266.07} प्रेम पुलकि आनन्द मुदित मन तुलसिदास कल कीरति गैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.01} लङ्काकाण्ड
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− | {गीता.[लङ्] 267.01} मन्दोदरी-प्रबोध
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.राग} मारु
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.01} मानु अजहू सिष परिहरि क्रोधु |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.01} पिय पूरो आयो अब काहि, कहु, करि रघुबीर-बिरोधु ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.02} जेहि ताड़ुता-सुबाहु मारि, मख राखि जनायो आपु |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.02} कौतुक ही मारीच नीच मिस प्रगट्यौ बिसिष-प्रतापु ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.03} सकल भूप बल गरब सहित तोर्यो कठोर सिवचापु |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.03} ब्याही जेहि जानकी जीति जग, हर्यौ परसुधर-दापु ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.04} कपट-काक साँसति-प्रसाद करि बिनु श्रम बध्यो बिराधु |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.04} खर-दूषन-त्रिसिरा-कबन्ध हति कियो सुखी सुर-साधु ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.05} एकहि बान बालि मार्यो जेहि, जो बल-उदधि अगाधु |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.05} कहु, धौं कन्त कुसल बीती केहि किये राम-अपराधु ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.06} लाँघि न सके लोक-बिजयी तुम जासु अनुज-कृत-रेषु |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.06} उतरि सिन्धु जार्यो प्रचारि पुर जाको दूत बिसेषु ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.07} कृपासिन्धु, खल-बन-कृसानु सम, जस गावत श्रुति-सेषु |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.07} सोइ बिरुदैत बीर कोसलपति, नाथ! समुझि जिय देषु ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.08} मुनि पुलस्त्यके जस-मयङ्क महँ कत कलङ्क हठि होहि |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.08} और प्रकार उबार नहीं कहुँ, मैं देख्यो जग जोहि ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.09} चलु, मिलु बेगि कुसल सादर सिय सहित अग्र करि मोहि |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 267.09} तुलसिदास प्रभु सरन-सबद सुनि अभय करैङ्गे तोहि ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.01} अंगदका दूतकर्म
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.राग} कान्हरा
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.01} तू दसकण्ठ भले कुल जायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.01} ता महँ सिव-सेवा, बिरञ्चि-बर, भुजबल बिपुल जगत जस पायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.02} खर-दूषन-त्रिसिरा, कबन्ध रिपु जेहि बाली जमलोक पठायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.02} ताको दूत पुनीत चरित हरि सुभ सन्देस कहन हौं आयो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.03} श्रीमद नृप-अभिमान मोहबस, जानत अनजानत हरि लायो
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.03} तजि ब्यलीक भजु कारुनीक प्रभु, दै जानकिहि सुनहि समुझायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.04} जातें तव हित होइ, कुसल कुल, अचल राज चलिहै न चलायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.04} नाहित रामप्रताप-अनलमहँ ह्वै पतङ्ग परिहै सठ धायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.05} जद्यपि अंगद नीति परम हित कह्यो, तथापि न कछु मन भायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 268.05} तुलसिदास सुनि बचन क्रोध अति, पावक जरत मनहु घृत नायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.01} तैं मेरो मरम कछू नहिं पायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.01} रे कपि कुटिल ढीठ पसु पाँवर! मोहि दास-ज्यों डाटन आयो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.02} भ्राता कुम्भकरन रिपुघातक, सुत सुरपतिहि बन्दि करि ल्यायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.02} निज भुजबल अति अतुल कहौं क्यों, कन्दुक ज्यों कैलास उठायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.03} सुर, नर, असुर, नाग, खग, किन्नर सकल करत मोरो मन भायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.03} निसिचर रुचिर अहार मनुज-तनु, ताको जस खल! मोहि सुनायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.04} कहा भयो, बानर सहाय मिलि, कर उपाय जो सिन्धु बँधायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.04} जो तरिहै भुज बीस घोर निधि, ऐसो को त्रिभुवनमें जायो ?||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.05} सुनि दससीस-बचन कपि-कुञ्जर बिहँसि ईस-मायहि सिर नायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 269.05} तुलसिदास लङ्केस कालबस गनत न कोटि जतन समझायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.01} सुनु खल! मैं तोहि बहुत बुझायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.01} एतो मान सठ! भयो मोहबस, जानतहू चाहत बिष खायौ ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.02} जगत-बिदित अति बीर बालि-बल जानत हौ, किधौं अब बिसरायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.02} बिनु प्रयास सोउ हत्यो एक सर, सरनागतपर प्रेम देखायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.03} पावहुगे निज करम-जनित फल, भले ठौर हठि बैर बढ़ायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.03} बानर-भालु चपेट लपेटनि मारत, तब ह्वैहै पछितायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.04} हौं ही दसन तोरिबे लायक, कहा करौं, जो न आयसु पायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.04} अब रघुबीर-बान-बिदलित उर सोवहिगो रनभूमि सुहायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.05} अबिचल राज बिभीषनको सब, जेहि रघुनाथ-चरन चित लायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 270.05} तुलसिदास यहि भाँति बचन कहि गरजत चल्यो बालि-नृप जायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.01} लक्ष्मण-मूर्च्छा
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.01} राम-लषन उर लाय लये हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.01} भरे नीर राजीव-नयन सब अँग परिताप तए हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.02} कहत ससोक बिलोकि बन्धु-मुख बचन प्रीति गुथए हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.02} सेवक-सखा भगति-भायप-गुन चाहत अब अथए हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.03} निज कीरति-करतूति तात! तुम सुकृती सकल जए हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.03} मैं तुम्ह बिनु तनु राखि लोक अपने अपलोक लए हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.04} मेरे पनकी लाज इहाँलौं हठि प्रिय प्रान दए हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.04} लागति साँगि बिभीषन ही पर, सीपर आपु भए हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.05} सुनि प्रभु-बचन भालु-कपि-गन, सुर सोच सुखाइ गए हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 271.05} तुलसी आइ पवनसुत-बिधि मानो फिरि निरमये नए हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 272.राग} सोरठ
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 272.01} मोपै तो न कछू ह्वै आई |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 272.01} ओर निबाहि भली बिधि भायप चल्यो लखन-सो भाई ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 272.02} पुर, पितु-मातु, सकल सुख परिहरि जेहि बन-बिपति बँटाई |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 272.02} ता सँग हौं सुरलोक सोक तजि सक्यो न प्रान पठाई ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 272.03} जानत हौं या उर कठोरतें कुलिस कठिनता पाई |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 272.03} सुमिरि सनेह सुमित्रा-सुतको दरकि दरार न जाई ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 272.04} तात-मरन, तिय-हरन, गीध-बध, भुज दाहिनी गँवाई |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 272.04} तुलसी मैं सब भाँति आपने कुलहि कालिमा लाई ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 273.01} मेरो सब पुरुषारथ थाको |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 273.01} बिपति बँटावन बन्धु-बाहु बिनु करौं भरोसो काको ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 273.02} सुनु, सुग्रीव! साँचेहू मोपर फेर्यो बदन बिधाता |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 273.02} ऐसे समय समर-सङ्कट हौं तज्यो लषन-सो भ्राता ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 273.03} गिरि, कानन जैहैं साखा-मृग, हौं पुनि अनुज-सँघाती |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 273.03} ह्वैहै कहा बिभीषनकी गति रही सोच भरि छाती ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 273.04} तुलसी सुनि प्रभु-बचन भालु-कपि सकल बिकल हिय हारे |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 273.04} जामवन्त हनुमन्त बोलि तब, औसर जानि प्रचारे ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 274.राग} मारु
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 274.01} जौ हौं अब अनुसासन पावौं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 274.01} तौ चन्द्रमहि निचोरि चैल-ज्यों, आनि सुधा सिर नावौं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 274.02} कै पाताल दलौं ब्यालावलि अमृत-कुण्ड महि लावौं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 274.02} भेदि भुवन, करि भानु बाहिरो तुरत राहु दै तावौं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 274.03} बिबुध-बैद बरबस आनौं धरि, तौ प्रभु-अनुग कहावौं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 274.03} पटकौं मीच नीच मूषक-ज्यौं, सबहिको पापु बहावौं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 274.04} तुम्हरिहि कृपा, प्रताप तिहारेहि नेकु बिलम्ब न लावौं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 274.04} दीजै सोइ आयसु तुलसी-प्रभु, जेहि तुम्हरे मन भावौं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.01} सुनि हनुमन्त-बचन रघुबीर |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.01} सत्य, समीर-सुवन! सब लायक, कह्यो राम धरि धीर ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.02} चहिये बैद, ईस-आयसु धरि सीस कीस बलाइन |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.02} आन्यो सदनसहित सोवत ही, जौलौं पलक परै न ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.03} जियै कुँवर, निसि मिलै मूलिका, कीन्हीं बिनय सुषेन |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.03} उठ्यो कपीस,सुमिरि सीतापति चल्यो सजीवनि लेन ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.04} कालनेमि दलि बेगि बिलोक्यौ द्रोनाचल जिय जानि |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.04} देखी दिब्य ओषधी जहँ तहँ जरी, न परि पहिचानि ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.05} लियो उठाय कुधर कन्दुक-ज्यौं, बेग न जाइ बखानि |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.05} ज्यों धाए गजराज-उधारन सपदि सुदरसनपानि ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.06} आनि पहार जोहारे प्रभु, कियो बैदराज उपचार |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.06} करुनासिन्धु बन्धु भेण्ट्यो, मिटि गयो सकल दुख-भार ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.07} मुदित भालु कपि-कटक, लह्यो जनु समर पयोनिधि पार |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.07} बहुरि ठौरही राखि महीधर आयो पवनकुमार ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.08} सेन सहित सेवकहि सराहत पुनि पुनि राम सुजान |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.08} बरषि सुमन, हिय हरषि प्रसंसत बिबुध बजाइ निसान ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.09} तुलसिदास सुधि पाइ निसाचर भए मनहु बिनु प्रान |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 275.09} परी भोरही रोर लङ्कगढ़, दई हाँक हनुमान ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 276.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 276.01} कौतुक ही कपि कुधर लियो है |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 276.01} चल्यो नभ नाइ माथ रघुनाथहि, सरिस न बेग बियो है ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 276.02} देख्यो जात जानि निसिचर, बिनु फर सर हयो हियो है |
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− | {गीता.[लङ्] 276.02} पर्यो कहि राम, पवन राख्यो गिरि, पुर तेहि तेज पियो है ||
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− | {गीता.[लङ्] 276.03} जाइ भरत भरि अंक भेण्टि अंक भेण्टि निज, जीवन-दान दियो है |
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− | {गीता.[लङ्] 276.03} दुख लघु लषन मरम-घायल सुनि, सुख बड़ो कीस जियो है ||
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− | {गीता.[लङ्] 276.04} आयसु इतहि, स्वामि-सङ्कट उत, परत न कछू कियो है |
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− | {गीता.[लङ्] 276.04} तुलसिदास बिदर्यो अकास, सो कैसेकै जात सियो है ||
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− | {गीता.[लङ्] 277.01} भरत-सत्रुसूदन बिलोकि कपि चकित भयो है |
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− | {गीता.[लङ्] 277.01} राम-लषन रन जीति अवध आए, कैधौं मोहि भ्रम,
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− | {गीता.[लङ्] 277.01} कैधौं काहू कपट ठयो है ||
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− | {गीता.[लङ्] 277.02} प्रेम पुलकि, पहिचानिकै पदपदुम नयो है |
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− | {गीता.[लङ्] 277.02} कह्यो न परत जेहि भाँति दुहू भाइन
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− | {गीता.[लङ्] 277.02} सनेहसों सो उर लाय लयो है ||
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− | {गीता.[लङ्] 277.03} समाचार कहि गहरु भो, तेंहि ताप तयो है |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 277.03} कुधर सहित चढ़ौ बिसिष, बेगि पठवौं, सुनि
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− | {गीता.[लङ्] 277.03} हरि हिय गरब गूढ़ उपयो है ||
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− | {गीता.[लङ्] 277.04} तीरतें उतरि जस कह्यो चहै, गुनगननि जयो है |
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− | {गीता.[लङ्] 277.04} धनि भरत! धनि भरत! करत भयो,
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− | {गीता.[लङ्] 277.04} मगन मौन रह्यो मन अनुराग रयो है ||
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− | {गीता.[लङ्] 277.05} यह जलनिधि खन्यो, मथ्यो, लँघ्यो, बाँध्यो, अँचयो है |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 277.05} तुलसिदास रघुबीर बन्धु-महिमाको सिन्धु
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− | {गीता.[लङ्] 277.05} तरि को कबि पार गयो है ?||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 278.01} होतो नहि जौ जग जनम भरतको |
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− | {गीता.[लङ्] 278.01} तौ, कपि कहत, कृपान-धार मग चलि आचरत बरत को ?||
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− | {गीता.[लङ्] 278.02} धीरज-धरम धरनिधर-धुरहूँतें गुर धुर धरनि धरत को ?|
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− | {गीता.[लङ्] 278.02} सब सदगुन सनमानि आनि उर, अघ-औगुन निदरत को ?||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 278.03} सिवहु न सुगम सनेह रामपद सुजननि सुलभ करत को ?|
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− | {गीता.[लङ्] 278.03} सृजि निज जस-सुरतरु तुलसी कहँ, अभिमत फरनि फरत को ?||
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− | {गीता.[लङ्] 279.01} सुनि रन घायल लषन परे हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 279.01} स्वामिकाज सङ्ग्राम सुभटसों लोहे ललकारि लरे हैं ||
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− | {गीता.[लङ्] 279.02} सुवन-सोक, सन्तोष सुमित्रहि, रघुपति-भगति बरे हैं |
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− | {गीता.[लङ्] 279.02} छिन-छिन गात सुखात, छिनहिं छिन हुलसत होत हरे हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 279.03} कपिसों कहति सुभाय, अंबके अंबक अंबु भरे हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 279.03} रघुनन्दन बिनु बन्धु कुअवसर, जद्यपि धनु दुसरे हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 279.04} "तात! जाहु कपि सँग, रिपुसूदन उठि कर जोरि खरे हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 279.04} प्रमुदित पुलकि पैन्त पूरे जनु बिधिबस सुढर ढरे हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 279.05} अंब-अनुजगति लखि पवनज-भरतादि गलानि गरे हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 279.05} तुलसी सब समुझाइ मातु तेहि समय सेचत करे हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.01} बिनय सुनायबी परि पाय |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.01} कहौं कहा, कपीस! तुम्ह सुचि, सुमति, सुहृद सुभाय ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.02} स्वामि-सङ्कट-हेतु हौं जड़ जननि जनम्यो जाय |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.02} समौ पाइ, कहाइ सेवक घट्यो तौ न सहाय ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.03} कहत सिथिल सनेह भो, जनु धीर घायल घाय |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.03} भरत-गति लखि मातु सब रहि ज्यौं गुड़ी बिनु बाय ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.04} भेण्ट कहि कहिबो, कह्यो यों कठिन-मानस माय |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.04} "लाल! लोने लषन-सहित सुललित लागत नाँय ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.05} देखि बन्धु-सनेह, अंब सुभाउ, लषन-कुठाय |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 280.05} तपत तुलसी तरनि-त्रासुक एहि नये तिहुँ ताय ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 281.01} हृदय घाउ मेरे पीर रघुबीरै |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 281.01} पाइ सजीवन, जागि कहत यों प्रेमपुलकि बिसराय सरीरै ||
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− | {गीता.[लङ्] 281.02} मोहि कहा बूझत पुनि पुनि, जैसे पाठ-अरथ-चरचा कीरै |
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− | {गीता.[लङ्] 281.02} सोभा-सुख, छति-लाहु भूपकहँ, केवल कान्ति-मोल हीरै ||
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− | {गीता.[लङ्] 281.03} तुलसी सुनि सौमित्रि-बचन सब धरि न सकत धीरौ धीरै |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 281.03} उपमा राम-लषनकी प्रीतिकी क्यों दीजै खीरै-नीरै ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 282.01} विजयी राम
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− | {गीता.[लङ्] 282.राग} कान्हरा
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− | {गीता.[लङ्] 282.01} राजत राम काम-सुत-सुन्दर |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 282.01} रिपु रन जीति अनुज सँग सोभित, फेरत चाप-बिसिष बनरुह-कर ||
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− | {गीता.[लङ्] 282.02} स्याम सरीर रुचिर श्रम-सीकर, सोनित-कन बिच बीच मनोहर |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 282.02} जनु खद्योत-निकर, हरिहित-गन, भ्राचत मरकत-सैल-सिखरपर ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 282.03} घायल बीर बिराजत चहुँ दिसि, हरषित सकल रिच्छ अरु बनचर |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 282.03} कुसुमित किंसुक-तरु समूह महँ, तरुन तमाल बिमाल बिटप बर ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 282.04} राजिव-नयन बिलोकि कृपा करि, किए अभय मुनि-नाग, बिबुध-नर |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 282.04} तुलसिदास यह रूप अनुपम हिय-सरोज बसि दुसह बिपतिहर ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 283.01} अयोध्यामें प्रतीक्षा
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 283.राग} आसावरी
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 283.01} अवधि आजु किधौं औरो दिन ह्वैहै |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 283.01} चढ़ि धौरहर बिलोकि दखिन दिसि, बूझ धौं पथिक कहाँते आये वै हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 283.02} बहुरि बिचारि हारि हिय सोचति, पुलकि गात लागे लोचन च्वैहैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 283.02} निज बासरनि बरष पुरवैगो बिधि, मेरे तहाँ करम कठिन कृत क्वैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 283.03} बन रघुबीर, मातु गृह जीवति, निलज प्रान सुनि सुनि सुख स्वैहैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 283.03} तुलसिदास मो-सी कठोर-चित कुलिस सालभञ्जनि को ह्वैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 284.01} आली, अब राम-लषन कित ह्वै हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 284.01} चित्रकूट तज्यौ तबतें न लही सुधि, बधू-समेत कुसल सुत द्वै हैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 284.02} बारि बयारि, बिषम हिम-आतप सहि बिनु बसन भूमितल स्वै हैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 284.02} सन्द-मूल, फल-फूल असन बन, भोजन समय मिलत कैसे वैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 284.03} जिन्हहि बिलकि सोचिहैं लता-द्रुम, खग-मृग-मुनि लोचन जल च्वैहैं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 284.03} तुलसिदास तिन्हकी जननि हौं, मो-सी निठुर-चित औरो कहुँ ह्वैहैं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 285.01} बैठी सगुन मनावति माता |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 285.01} कब ऐहैं मेरे बाल कुसल घर, कहहु, काग! फुरि बाता ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 285.02} दूध-भातकी दोनी दैहौं, सोने चोञ्च मढ़ैहौं |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 285.02} जब सिय-सहित बिलोकि नयन भरि राम-लषन उर लैहौं ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 285.03} अवधि समीप जानि जननी जिय अति आतुर अकुलानी |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 285.03} गनक बोलाइ, पाँय परि पूछति प्रेम मगन मृदु बानी ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 285.04} तेहि अवसर कोउ भरत निकटतें समाचार लै आयो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 285.04} प्रभु-आगमन सुनत तुलसी मनो मीन मरत जल पायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.01} छेमकरी! बलि, बोलि सुबानी |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.01} कुसल छेम सिय राम-लषन कब ऐहैं, अंब! अवध रजधानी ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.02} ससिमुखि, कुङ्कुम-बरनि, सुलोचनि, मोचनि सोचनि बेद बखानी |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.02} देवि! दया करि देहि दरसफल, जोरि पानि बिनवहिं सब रानी ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.03} सुनि सनेहमय बचन, निकट ह्वै, मञ्जुल मण्डल कै मड़रानी |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.03} सुभ मङ्गल आनन्द गगन-धुनि अकनि-अकनि उर-जरनि जुड़ानी ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.04} फरकन लगे सुअंग बिदिसि दिसि, मन प्रसन्न, दुख-दसा सिरानी |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.04} करहिं प्रनाम सप्रेम पुलकि तनु, मानि बिबिध बलि सगुन सयानी ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.05} तेहि अवसर हनुमान भरतसों कही सकल कल्यान-कहानी |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 286.05} तुलसिदास सोइ चाह सजीवनि बिषम बियोग ब्यथा बड़ि भानी ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.01} अयोध्यामें आनन्द
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.राग} धनाश्री
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.01} सुनियत सागर सेतु बँधायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.01} कोसलपतिकी कुसल सकल सुधि कोउ इक दुत भरत पहँ ल्यायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.02} बध्यो बिराध, त्रिसिर, खर-दूषन सूर्पनखाको रूप नसायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.02} हति कबन्ध, बल-अंध बालि दलि, कृपासिन्धु सुग्रीव बसायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.03} सरनागत अपनाइ बिभीषन, रावन सकुल समूल बहायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.03} बिबुध-समाज निवाजि, बाँह दैं बन्दिछोर बर बिरद कहायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.04} एक-एकसों समाचार सुनि नगर लोग जहँ तहँ सब धायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.04} घन-धुनि अकनि मुदित मयूर-ज्यों, बूड़त जलधि पार-सो पायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.05} "अवधि आजु यौं कहत परसपर, बेगि बिमान निकट पुर आयो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.05} उतरि अनुज-अनुगनि समेत प्रभु गुर-द्विजगन सिर नायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.06} जो जेहि जोग राम तेहि बिधि मिलि, सबके मन अति मोद बढ़ायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.06} भेण्टी मातु, भरत भरतानुज, क्यों कहौं प्रेम अमित अनमायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.07} तेही दिन मुनिबृन्द अनन्दित तुरत तिलकको साज सजायो |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 287.07} महाराज रघुबंस-नाथको सादर तुलसिदास गुन गायो ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.01} राज्याभिषेक
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.राग} जैतश्री
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.01} रन जीति राम राउ आए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.01} सानुज सदल ससीय कुसल आजु, अवध आनन्द-बधाए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.02} अरिपुर जारि, उजारि, मारि रिपु, बिबुध सुबास बसाए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.02} धरनि-धेनु, महिदेव-साधु, सबके सब सोच नसाए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.03} दई लङ्क, थिर थपे बिभीषन, बचन-पियूष पिआए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.03} सुधा सीञ्चि कपि, कृपा नगर-नर-नारि निहारि जिआए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.04} मिलि गुर, बन्धु, मातु, जन, परिजन, भए सकल मन भाए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.04} दरस-हरस दसचारि बरसके दुख पलमें बिसराए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.05} बोलि सचिव सुचि, सोधि सुदिन, मुनि मङ्गल-साज सजाए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.05} महाराज-अभिषेक बरषि सुर सुमन निसान बजाए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.06} लै लै भेण्ट नृप-अहिप-लोकपति अति सनेह सिर नाए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.06} पूजि, प्रीति पहिचानि राम आदरे अधिक, अपनाए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.07} दान मान सनमानि जानि रुचि, जाचक जन पहिराए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.07} गए सोक-सर सूखि, मोद-सरिता-समुद्र गहिराए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.08} प्रभु-प्रताप-रबि अहित-अमङ्गल-अघ-उलूक-तम ताए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.08} किये बिसोक हित-कोक-कोकनद लोक सुजस सुभ छाए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.09} रामराज कुलकाज सुमङ्गल, सबनि सबै सुख पाए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.09} देहिं असीस भूमिसुर प्रमुदित, प्रजा प्रमोद बढ़ाए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.10} आस्रम-धरम-बिभाग बेदपथ पावन लोग चलाए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.10} धरम-निरत, सिय-राम-चरन-रत, मनहु राम-सिय-जाए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.11} कामधेनु महि, बिटप कामतरु, कोउ बिधि बाम न लाये |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 288.11} ते तब, अब तुलसी तेउ जिन्ह हित सहित राम-गुन गाये ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.राग} टोड़ी
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.01} आजु अवध आनन्द-बधावन, रिपु रन जीति राम आए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.01} सजि सुबिमान निसान बजावत मुदित देव देखन धाए ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.02} घर-घर चारु चौक, चन्दन-मनि, मङ्गल-कलस सबनि साजे |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.02} ध्वज-पताक, तोरन, बितानबर, बिबिध भाँति बाजन बाजे ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.03} राम-तिलक सुनि दीप दीपके नृप आए उपहार लिये |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.03} सीयसहित आसीन सिंहासन निरखि जोहारत हरष हिये ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.04} मङ्गलगान, बेदधुनि, जयधुनि, मुनि-असीस-धुनि भुवन भरे |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.04} बरषि सुमन सर-सिद्ध प्रसंसत, सबके सब सन्ताप हरे ||
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.05} राम-राज भै कामधेनु महि, सुख सम्पदा लोक छाए |
| + | |
− | {गीता.[लङ्] 289.05} जनम जनम जानकीनाथके गुनगन तुलसिदास गाये ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.01} गीतावली
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.01} उत्तरकाण्ड
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.01} रामराज्य
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.राग} सोरठ
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.01} बनतें आइकै राजा राम भए भुआल |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.01} मुदित चौदह भुअन, सब सुख सुखी सब सब काल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.02} मिटे कलुष-कलेस-कुलषन, कपट-कुपथ-कुचाल |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.02} गए दारिद, दोष दारुन, दम्भ-दुरित-दुकाल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.03} कामधुक महि, कामतरु तरु, उपल मनिगन लाल |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.03} नारि-नर तेहि समय सुकृती, भरे भाग सुभाल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.04} बरन-आश्रम-धरमरत, मन बचन बेष मराल |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.04} राम-सिय-सेवक-सनेही, साधु, सुमुख, रसाल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.05} राम-राज-समाज बरनत सिद्ध-सुर-दिगपाल |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 290.05} सुमिरि सो तुलसी अजहुँ हिय हरष होत बिसाल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 291.01} रामरूप-वर्णन
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 291.राग} ललित
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 291.01} भोर जानकी-जीवन जागे |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 291.01} सूत मागध, प्रबीन, बेनु-बीना-धुनि द्वारे, गायक सरस राग रागे ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 291.02} स्यामल सलोने गात, आलसबस जँभात प्रिया प्रेमरस पागे |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 291.02} उनीन्दे लोचन चारु, मुख-सुखमा-सिङ्गार हेरि हारे मार भूरि भागे ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 291.03} सहज सुहाई छबि, उपमा न लहैं कबि, मुदित बिलोकन लागे |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 291.03} तुलसिदास निसिबासर अनूप रूप रहत प्रेम-अनुरागे ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.राग} कल्याण
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.01} रघुपति राजीवनयन, सोभातनु कोटि मयन,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.01} करुनारस-अयन चयन-रूप भूप, माई |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.01} देखो सखि अतुलित छबि, सन्त-कञ्ज-कानन रबि,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.01} गावत कल कीरति कबि-कोबिद-समुदाई ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.02} मज्जन करि सरजुतीर ठाढ़े रघुबंसबीर,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.02} सेवत पदकमल धीर निरमल चित लाई |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.02} ब्रह्ममण्डली-मुनीन्द्रबृन्द-मध्य इंदुबदन
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.02} राजत सुखसदन लोकलोचन-सुखदाई ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.03} बिथुरित सिररुह-बरूथ कुञ्चित, बिच सुमन-जूथ,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.03} मनिजुत सिसु-फनि-अनीक ससि समीप आई |
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− | {गीता.[उत्त्] 292.03} जनु सभीत दै अँकोर राखे जुग रुचिर मोर,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.03} कुण्डल-छबि निरखि चोर सकुचत अधिकाई ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.04} ललित भ्रुकुटि, तिलक भाल, चिबुक-अधर-द्विज रसाल,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.04} हास चारुतर, कपोल, नासिका सुहाई |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.04} मधुकर जुग पङ्कज बिच, सुक बिलोक नीरजपर
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.04} लरत मधुप-अवलि मानो बीच कियो जाई ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.05} सुन्दर पटपीत बिसद, भ्राजत बनमाल उरसि,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.05} तुलसिका-प्रसून-रचित, बिबिध-बिधि बनाई |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.05} तरु-तमाल अधबिच जनु त्रिबिध कीर-पाँति-रुचिर,
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− | {गीता.[उत्त्] 292.05} हेमजाल अंतर परि तातें न उड़ाई ||
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− | {गीता.[उत्त्] 292.06} सङ्कर-हृदि-पुण्डरीक निसि बस हरि-चञ्चरीक,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.06} निर्ब्यलीक-मानस-गृह सन्तत रहे छाई |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 292.06} अतिसय आनन्दमूल तुलसिदास सानुकूल,
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− | {गीता.[उत्त्] 292.06} हरन सकल सूल, अवध-मण्डन रघुराई ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.01} राजत रघुबीर धीर, भञ्जन भव-भीर, पीर-
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.01} हरन सकल सरजुतीर निरखहु, सखि! सोहैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.01} सङ्ग अनुज मनुज-निकर, दनुज-बल-बिभङ्ग-करन;
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.01} अंग-अंग छबि अनङ्ग अगनित मन मोहैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.02} सुखमा-सुख-सील-अयन नयन निरखि निरखि नील
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.02} कुञ्चित कच, कुण्डल कल, नासिका चित पोहैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.02} मनहु इंदुबिम्ब मध्य कञ्ज-मीन-खञ्जन लखि
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.02} मधुप-मकर-कीर आए तकि तकि निज गौहैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.03} ललित गण्ड-मण्डल, सुबिसाल भाल तिलक झलक
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.03} मञ्जुतर मयङ्क-अंक रुचिर बङ्क भौहैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.03} अरुन अधर, मधुर बोल, दसन-दमक दामिनि दुति,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.03} हुलसति हिय हँसनि चारु चितवनि तिरछौहैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.04} कम्बुकण्ठ, भुज बिसाल उरसि तरुन तुलसिमाल,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.04} मञ्जुल मुकतावलि जुत जागति जिय जोहैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.04} जनु कलिन्द-नन्दिनि मनि-इंद्रनील-सिखर परसि
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.04} धँसति लसति हंससेनि-सङ्कुल अधिकौहैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.05} दिब्यतर दुकूल भब्य, नब्य रुचिर चम्पक चय,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.05} चञ्चला-कलाप, कनक-निकर अलि! किधौं हैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.05} सज्जन-चष-झष-निकेत, भूषन-मनिगन समेत,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.05} रूप-जलधि-बपुष लेत मन-गयन्द बोहैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.06} अकनि बचन-चातुरी तुरीय पेखि प्रेम-मगन
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.06} पग न परत इत, उत, सब चकित तेहि समौ हैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.06} तुलसिदास यह सुधि नहि कौनकी, कहाँतें आई ,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 293.06} कौन काज, काके ढिग, कौन ठाउँ को हैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.01}
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.01} देखु सखि! आजु रघुनाथ-सोभा बनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.01} नील-नीरद-बरन बपुष भुवनाभरन,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.01} पीत-अंबर-धरन हरन दुति-दामिनि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.02} सरजु मज्जन किए, सङ्ग सज्जन लिए,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.02} हेतु जनपर हिये, कृपा कोमल घनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.02} सजनि आवत भवन मत्त-गजवर, गवन,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.02} लङ्क मृगपति ठवनि कुँवर कोसलधनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.03} सघन चिक्कन कुटिल चिकुर बिलुलित मृदुल,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.03} करनि बिबरत चतुर, सरस सुषमा जनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.03} ललित अहि-सिसु-निकर मनहु ससि सन समर
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.03} लरत, धरहरि करत रुचिर जनु जुग फनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.04} भाल भ्राजत तिलक, जलज लोचन, पलक,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.04} चारु भ्रू, नासिका सुभग सुक-आननी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.04} चिबुक सुन्दर, अधर अरुन, द्विज-दुति सुघर,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.04} बचन गम्भीर, मृदुहास भव-भाननी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.05} स्रवन कुण्डल बिमल गण्ड मण्डित चपल,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.05} कलित कलकान्ति अति भाँति कछु तिन्ह तनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.05} जुगल कञ्चन-मकर मनहु बिधुकर मधुर
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.05} पियत पहिचानि करि सिन्धुकीरति भनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.06} उरसि राजत पदिक, ज्योति रचना अधिक,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.06} माल सुबिसाल चहुँ पास बनि गजमनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.06} स्याम नव जलदपर निरखि दिनकर-कला
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.06} कौतुकी मनहुँ रही घेरि उडुगन-अनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.07} मन्दिरनिपर खरी नारि आनँद-भरी,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.07} निरखि बरषहिं बिपुल कुसुम कुङ्कुम-कनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.07} दास तुलसी राम परम करुनाधाम,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 294.07} काम-सतकोटि-मद हरत छबि आपनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.01} आजु रघुबीर-छबि जात नहि कछु कही |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.01} सुभग सिंहासनासीन सीतारवन,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.01} भुवन-अभिराम, बहु काम सोभा सही ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.02} चारु चामर-व्यजन, छत्र-मनिगन बिपुल
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.02} दाम-मुकुतावली-जोति जगमगि रही |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.02} मनहुँ राकेस सँग हंस-उडुगन-बरहि
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.02} मिलन आए हृदय जानि निज नाथ ही ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.03} मुकुट सुन्दर सिरसि, भालबर, तिलक-भ्रू,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.03} कुटिल कच, कुण्डलनि परम आभा लही |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.03} मनहुँ हर-डर जुगल मारध्वजके मकर
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.03} लागि स्रवननि करत मेरुकी बतकही ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.04} अरुन-राजीव-दल-नयन करुना-अयन,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.04} बदन सुषमासदन, हास त्रय-तापही |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.04} बिबिध कङ्कन हार, उरसि गजमनि-माल,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.04} मनहुँ बग-पाँति जुग मिलि चली जलदही ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.05} पीत निरमल चैल, मनहुँ मरकत सैल,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.05} पृथुल दामिनि रही छाइ तजि सहजही |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.05} ललित सायक-चाप, पीन भुज बल अतुल
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.05} मनुजतनु दनुजबन-दहन, मण्डन-मही ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.06} जासु गुन-रूप नहि कलित, निरगुन सगुन,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.06} सम्भु, सनकादि, सुक भगति दृढ़ करि गही |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.06} दास तुलसी राम-चरन-पङ्कज सदा
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 295.06} बचन मन करम चहै प्रीति नित निरबही ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.01} राम राजराजमौलि मुनिबर-मन-हरन, सरन-
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.01} लायक, सुखदायक रघुनायक देखौ री |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.01} लोक-लोचनाभिराम, नीलमनि-तमाल-स्याम,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.01} रूप-सील-धाम, अंग छबि अनङ्ग को री ?||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.02} भ्राजत सिर मुकुट पुरट-निरमित मनि रचित चारु,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.02} कुञ्चित कच रुचिर परम, सोभा नहि थोरी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.02} मनहुँ चञ्चरीक-पुञ्ज कञ्जबृन्द प्रीति लागि
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.02} गुञ्जत कल गान तान दिनमनि रिझयो री ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.03} अरुनकञ्ज-दल-बिसाल लोचन, भ्रू-तिलकभाल,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.03} मण्डित स्रुति कुण्डल बर सुन्दरतर जोरी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.03} मनहुँ सम्बरारि मारि, ललित मकर-जुग बिचारि,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.03} दीन्हें ससिकहँ पुरारि भ्राजत दुहुँ ओरी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.04} सुन्दर नासा-कपोल, चिबुक, अधर अरुन, बोल
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.04} मधुर, दसन राजत जब चितवत मुख मोरी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.04} कञ्ज-कोस भीतर जनु कञ्जराज-सिखर-निकर,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.04} रुचिर रचित बिधि बिचित्र तड़ित-रङ्ग-बोरी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.05} कम्बुकण्ठ उर बिसाल तुलसिका नवीन माल,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.05} मधुकर बर-बास-बिबस, उपमा सुनु सो री |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.05} जनु कलिन्दजा सुनील सैलतें धसी समीप,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.05} कन्द-बृन्द बरसत छबि मधुर घोरि घोरी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.06} निरमल अति पीत चैल, दामिनि जनु जलद नील
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.06} राखी निज सोभाहित बिपुल बिधि निहोरी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.06} नयनन्हिको फल बिसेष ब्रह्म अगुन सगुन बेष,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.06} निरखहु तजि पलक, सफल जीवन लेखौ री ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.07} सुन्दर सीतासमेत सोभित करुनानिकेत,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.07} सेवक सुख देत, लेत चितवत चित चोरी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.07} बरनत यह अमित रूप थकित निगम-नागभूप,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 296.07} तुलसिदास छबि बिलोकि सारद भै भोरी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.01} सखि! रघुनाथ-रूप निहारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.01} सरद-बिधु रबि-सुवन मनसिज-मान भञ्जनिहारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.02} स्याम सुभग सरीर जन-मन-काम-पूरनिहारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.02} चारुचन्दन मनहु मरकत-सिखर लसत निहारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.03} रुचिर उर उपबीत राजत पदिक गजमनि-हारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.03} मनहु सुरधनु नखतगन बिच तिमिर-भञ्जनिहारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.04} बिमल पीत दुकूल दामिनि-दुति-बिनिन्दनिहारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.04} बदन सुषमासदन सोभित मदन-मोहनिहारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.05} सकल अंग अनूप, नहिं कोउ सुकबि बरननिहारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 297.05} दासतुलसी निखतहि सुख लहत निरखनिहारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.01} सखि! रघुबीर मुख-छबि देखु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.01} चित्त-भीति सुप्रिति-रङ्ग सुरूपता अवरेखु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.02} नयन-सुषमा निरखि नागरि! सफल जीवन लेखु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.02} मनहुँ बिधि जुग जलज बिरचे ससि सुपूरन मेखु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.03} भ्रकुटि भाल बिसाल राजत रुचिर-कुङ्कुम-रेखु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.03} भ्रमर द्वै रबिकिरनि ल्याए करन जनु उनमेखु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.04} सुमुखि! केस सुदेस सुन्दर सुमन-सञ्जुत पेषु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.04} मनहुँ उडुगन-निबह आए मिलन तम तजि द्वेषु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.05} स्रवन कुण्डल मनहु गुरु-कबि करत बाद बिसेषु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.05} नासिका, द्विज, अधर जनु रह्यो मदनु करि बहु बेषु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.06} रूप बरनि न सकत नारद-सम्भु, सारद-सेषु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 298.06} कहै तुलसीदास क्यों मतिमन्द सकल नरेषु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.राग} जैतश्री
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.01} देखौ, राघव-बदन बिराजत चारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.01} जात न बरनि, बिलोकत ही सुख, मुख किधौं छबिबर नारि सिङ्गारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.02} रुचिर चिबुक, रद-ज्योति अनूपम, अधर अरुन सित हास निहारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.02} मनो ससिकर बस्यो चहत कमल महँ प्रगटत, दुरत, न बनत बिचारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.03} नासिक सुभग मनहुँ सुक सुन्दर चितवत चकि आचरज अपारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.03} कल कपोल, मृदु बोल मनोहर रीझि, चित चतुर अपनपौ वारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.04} नयन सरोज, कुटिल कच, कुण्डल भ्रुकुटु, सुभाल तिलक सोभा-सारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.04} मनहुँ केतुके मकर, चाप-सर गयो, बिसारि भयो मोहित मारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.05} निगम-सेष, सारद, सुक, सङ्कर, बरनत रूप न पावत पारु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 299.05} तुलसिदास कहै, कहौ, धौं कौन बिधि अति लघुमति जड़ कूर गँवारु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.राग} ललित
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.01} आज रघुपति-मुख देखत लागत सुख
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.01} सेवक सुरुष, सोभा सरद-ससि सिहाई |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.01} दसन-बसन लाल, बिसद हास रसाल
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.01} मानो हिमकर-कर राखे राजीव मनाई ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.02} अरुन नैन बिसाल, ललित भ्रुकुटि, भाल
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.02} तिलक, चारु कपोल, चिबुक-नासा सुहाई |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.02} बिथुरे कुटिल कच, मानहु मधु लालच अलि,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.02} नलिन-जुगल उपर रहे लोभाई ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.03} स्रवन सुन्दर, सम कुण्डल कल जुगम,
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.03} तुलसिदास अनूप, उपमा कही न जाई |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.03} मानो मरकत सीप सुन्दर ससि समीप
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 300.03} कनक मकरजुत बिधि बिरची बनाई ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.राग} भैरव
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.01} प्रातकाल रघुबीर-बदन-छबि चितै, चतुर चित मेरे |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.01} होहिं बिबेक-बिलोचन निरमल सुफल सुसीतल तेरे ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.02} भाल बिसाल बिकट भ्रुकुटी बिच तिलक-रेख रुचि राजै |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.02} मनहुँ मदन तम तकि मरकत-धनु जुगुल कनक सर साजै ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.03} रुचिर पलक लोचन जुग तारक स्याम, अरुन सित कोए |
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− | {गीता.[उत्त्] 301.03} जनु अलि नलिन-कोस महँ बन्धुक-सुमन सेज सजि सोए ||
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− | {गीता.[उत्त्] 301.04} बिलुलित ललित कपोलनिपर कच मेचक कुटिल सुहाए |
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− | {गीता.[उत्त्] 301.04} मनो बिधुमहँ बनरुह बिलोकि अलि बिपुल सकौतुक आए ||
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− | {गीता.[उत्त्] 301.05} सोभित स्रवन कनक-कुण्डल कल लम्बित बिबि भुजमूले |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.05} मनहुँ केकि तकि गहन चहत जुग उरग इंदु प्रतिकूले ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.06} अधर अरुनतर, दसन-पाँति बर, मधुर मनोहर हासा |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.06} मनहुँ सोन सरसिज महँ कुलिसनि तड़ित सहित कृत बासा ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.07} चारु चिबुक, सुकतुण्ड बिनिन्दक सुभग सून्नत नासा |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 301.07} तुलसिदास छबिधाम राममुख सुखद, समन भवत्रासा ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.राग} केदारा
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− | {गीता.[उत्त्] 302.01} सुमिरत श्रीरघुबीरजीकी बाहैं |
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− | {गीता.[उत्त्] 302.01} रोत सुगम भव-उदधि अगम अति, कोउ लाँघत, कोउ उतरत थाहैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.02} सुन्दर-स्याम-सरीर-सैलतें धँसि जनु जुग जमुना अवगाहैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.02} अमित अमल जल-बल परिपूरन, जनु जनमी सिँगार सविता हैं ||
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− | {गीता.[उत्त्] 302.03} धारैं बान, कूल धनु, भूषन जलचर, भँवर सुभग सब घाहैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.03} बिलसति बीचि बिजय-बिरदावलि, कर-सरोज सोहत सुषमा हैं ||
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− | {गीता.[उत्त्] 302.04} सकल-भुवन-मङ्गल-मन्दिरके द्वार बिसाल सुहाई साहैं |
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− | {गीता.[उत्त्] 302.04} जे पूजी कौसिक-मख ऋषियनि, जनक-गनप, सङ्कर-गिरिजा हैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.05} भवधनु दलि जानकी बिबाही, भए बिहाल नृपाल त्रपा हैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.05} परसुपानि जिन्ह किये महामुनि जे चितए कबहू न कृपा हैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.06} जातुधान-तिय जानि बियोगिनि दुखई सीय सुनाइ कुचाहैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.06} जिन्ह रिपु मारि सुरारि-नारि तेइ सीस उघारि दिवाई धाहैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.07} दसमुख-बिबस तिलोक लोकपति बिकल बिनाए नाक चना हैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.07} सुबस बसे गावत जिन्हके जस अमर-नाग-नर सुमुखि सना हैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.08} जे भुज बेद-पुरान, सेष-सुक-सारद सहित सनेह सराहैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.08} कलपलताहुकी कलपलता बर, कामदुहहुकी कामदुहा हैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.09} सरनागत-आरत-प्रनतनिको दै दै अभयपद ओर निबाहैं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 302.09} करि आईं, करिहैं, करती हैं तुलसिदास दासनिपर छाहैं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 303.राग} भैरव
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 303.01} रामचन्द्र-करकञ्ज कामतरु बामदेव-हितकारी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 303.01} सियसनेह-बर बेलि-बलित बर-प्रेम बन्धु बर बारी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 303.02} मञ्जुल मङ्गल-मूल मूल तनु, करज मनोहर साखा |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 303.02} रोम परन, नख सुमन, सुफल सब काल सुजन-अभिलाषा ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 303.03} अबिचल, अमल, अनामय, अबिरल ललित, रहित छल छाया |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 303.03} समन सकल सन्ताप-पाप-रुज-मोह-मान-मद-माया ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 303.04} सेवहिं सुचि मुनि भृङ्ग-बिहग मन-मुदित मनोरथ पाए |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 303.04} सुमिरत हिय हुलसत तुलसी अनुराग उमगि गुन गाए ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 304.01} रामचरन अभिराम कामप्रद तीरथ-राज बिराजै |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 304.01} सङ्कर-हृदय-भगति-भूतलपर प्रेम-अछयबट भ्राजै ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 304.02} स्यामबरन पद-पीठ, अरुन तल, लसति बिसद नखस्रेनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 304.02} जनु रबि-सुता सारदा-सुरसरि मिलि चलीं ललित त्रिबेनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 304.03} अंकुस-कुलिस-कमल-धुज सुन्दर भँवर तरङ्ग-बिलासा |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 304.03} मज्जहिं सुर-सज्जन, मुनिजन-मन मुदित मनोहर बासा ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 304.04} बिनु बिराग-जप-जाग-जोग-ब्रत, बिनु तप, बिनु तनु त्यागे |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 304.04} सब सुख सुलभ सद्य तुलसी प्रभु-पद-प्रयाग अनुरागे ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.राग} बिलावल
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.01} रघुबर-रूप बिलोकु, नेकु मन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.01} सकल लोक-लोचन-सुखदायक, नखसिख सुभग स्यामसुन्दर तन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.02} चारु चरन-तल-चिन्ह चारि फल चारि देत परचारि जानि जन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.02} राजत नख जनु कमल-दलनिपर अरुन-प्रभा-रञ्जित तुषार-कन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.03} जङ्घा-जानु आनु कदली उर, कटि किङ्किनि, पटपीत सुहावन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.03} रुचिर निषङ्ग, नाभि, रोमावलि, त्रिबलि, बलित उपमा कछु आव न ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.04} भृगुपद-चिन्ह, पदिक, उर सोभित, मुकुतमाल, कुङ्कुम-अनुलेपन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.04} मनहुँ परसपर मिलि पङ्कज-रबि प्रगट्यो निज अनुराग, सुजस घन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.05} बाहु बिसाल ललित सायक-धनु, कर कङ्कन केयूर महाधन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.05} बिमल दुकूल-दलन दामिनि-दुति, यज्ञोपवीत लसत अति पावन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.06} कम्बुग्रीव, छबि सींव, चिबुक, द्विज, अधर, कपोल, बोल, भय-मोचन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.06} नासिक सुभग, कृपापरिपूरन तरुन अरुन राजीव बिलोचन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.07} कुटिल भ्रुकुटिबर, भाल तिलक रुचि, सुचि सुन्दरता स्रवन-बिभूषन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.07} मनहुँ मारि मनसिज पुरारि दिय ससिहि चाप सर-मकर अदूषन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.08} कुञ्चित कच, कञ्चन-किरीट सिर, जटित ज्योतिमय बहुबिधि मनिगन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 305.08} तुलसिदास रबिकुल रबि-छबि कबि कहि न सकत सुक-सम्भु-सहसफन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.राग} कान्हरा
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.01} देखो रघुपति-छबि अतुलित अति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.01} जनु तिलोक-सुषमा सकेलि बिधि राखी रुचिर अंग-अंगनि प्रति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.02} पदुमराग रुचि मृदु पदतल धुज-अंकुस-कुलिस-कमल यहि सूरति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.02} रही आनि चहुँ बिधि भगतिनिकी जनु अनुरागभरी अंतरगति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.03} सकल-सुचिन्ह-सुजन-सुखदायक, ऊरधरेख बिसेष बिराजति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.03} मनहुँ भानु-मण्डलहि सँवारत धर्यो सूत बिधि-सुत बिचित्रमति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.04} सुभग अँगुष्ठ, अंगुली अबिरल, कछुक अरुन नख-ज्योति जगमगति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.04} चरन-पीठ उन्नत नत पालक, गूढ़ गुलुफ, जङ्घा कदलीजति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.05} काम तून-तल-सरिस जानु जुग, उरु करिकर करभहि बिलखावति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.05} रसना रचित रतन चामीकर, पीत बसन कटि कसे सरसावति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.06} नाभी सर, त्रिवली निसेनिका, रोमराजिस सैवल-छबि पावति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.06} उर मुकुतामनि-माल मनोहर मनहु हंस-अवली उड़ि आवति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.07} हृदय पदिक, भृग-चरन चिन्हबर-बाहु बिसाल जानुलगि पहुँचति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.07} कल केयूर पूर कञ्चन-मनि, पहुँची मञ्जु कञ्जकर सोहति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.08} सुजव सुरेख सुनख अंगुलिजुत सुन्दर पानि मुद्रिका राजति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.08} अंगुलित्रान-कमान-बानछबि सुरनि सुखद, असुरनि उर सालति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.09} स्याम सरीर सुचन्दन-चरचित पीत दुकूल अधिक छबि छाजति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.09} नील जलदपर निरखि चन्द्रिका दुरनि त्यागि दामिनि जनु दमकति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.10} यज्ञोपबीत पुनीत बिराजत गूढ़ जत्रु बनि पीन अंस तति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.10} सुगढ़ पुष्ट उन्नत कृकाटिका, कम्बु-कण्ठ-सोभा मन मानति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.11} सरद-समय-सरसीरुह-निन्दक मुख सुषमा कछु कहत न बानति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.11} निरखतही नयननि निरुपम सुख, रबिसुत-मदन-सोम-दुति निदरित ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.12} अरुन अधर, द्विजपाँति अनूपम, ललित हँसनि जनु मन आकरषति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.12} बिद्रुम-रचित बिमानमध्य जनु सुरमण्डली सुमन-चय-बरसति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.13} मञ्जुल चिबुक, मनोरम हनुथल, कल कपोल, नासा मन मोहति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.13} पङ्कज-मान-बिमोचन लोचन, चितवनि चारु अमृत-जल सीञ्चति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.14} केस सुदेस, गँभीर बचन बर स्रुतिकुण्डल-डोलनि जिय जागति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.14} लखि नवनील पयोद, रवित सुनि, रुचिर मोर जोरी जनु नाचति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.15} भौंहै बङ्क मयङ्क-अंक-रुचि, कुङ्कुमरेख भाल भलि भ्राजति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.15} सिरसि, हेम-हीरक-मानिकमय मुकुट-प्रभा सब भुवन प्रकासति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.16} बरनत रूप पार नहिं पावत निगम-सेष-सुक-सङ्कर-भारति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 306.16} तुलसिदास केहि बिधि बखानि कहै यह मन-बचन अगोचर मूरति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.01} राम-हिण्डोला
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.राग} मलार
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.01} आली री! राघोके रुचिर हिण्डोलना झूलन जैए ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.01} फटिक-भीति सुचारु चहुँ दिसि, मञ्जु मनिमय पौरि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.01} गच काँच लखि मन नाच सिखि जनु, पाँचसर-सुफँसौरि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.01} तोरन-बितान-पताक-चामर-धुज सुमन-फल घौरि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.01} प्रतिछाँह-छबि कबि-साखि दै प्रति सों कहै गुरु हौं रि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.02} मदन-जयके खम्भ-से रचे खम्भ सरल बिसाल |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.02} पाटीर-पाटि बिचित्र भँवरा बलित, बेलन लाल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.02} डाँड़ो कनक कुङ्कुम-तिलक-रेख-सी मनसिज-भाल |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.02} पटुली पदिक रति-हृदय जनु कलधौत कोमल माल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.03} उनये सघन घनघोर, मृदु झरि सुखद सावन लाग |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.03} बगपाँति, सुरधनु, दमक दामिनि हरित भूमि-बिभाग ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.03} दादुर मुदित, भरे सरित-सर, महि उमग जनु अनुराग |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.03} पिक-मोर-मधुप-चकोर-चातक-सोर उपबन बाग ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.04} सो समौ देखि सुहावनो नवसत सँवारि-सँवारि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.04} गुन-रूप-जोबन-सींव सुन्दरि चलीं झुण्डनि झारि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.04} हिण्डोल-साल बिलोकि सब अंचल पसारि-पसारि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.04} लागीं असीसन राम-सीतहि सुख-समाजु निहारि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.05} झूलहिं, झुलावहिं, ओसरिन्ह गावैं सुहो, गौण्डमलार |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.05} मञ्जीर-नूपुर-बलय-धुनि जनु काम-करतल-तार ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.05} अति मुचत स्रमकन मुखनि, बिथुरे चिकुर, बिलुलित हार |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.05} तम तड़ित उडुगन अरुन बिधु जनु करत ब्योम- बिहार ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.06} हिय हरषि, बरषि प्रसून निरखति बिबुध-तिय तृन तूरि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.06} आनन्द-जल-लोचन, मुदित मन, पुलक तनु भरि पूरि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.06} सब कहहिं, अबिचल राज नित, कल्यान-मङ्गल भूरि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 307.06} चिर जियौ जानकिनाथ जग तुलसी-सजीवनि-मूरि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} अयोध्याकी रमणीयता
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} वर्षा-वर्णन
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.राग} सूहो
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} कोसलपुरी सुहावनी लरि सरजूके तीर |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} भूपावली-मुकुटमनि नृपति जहाँ रघुबीर ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} पुर-नर-नारि चतुर अति, धरमनिपुन, रत-नीति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} सहज सुभाय सकल उर श्रीरघुबर-पद-प्रीति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} श्रीरामपद-जलजात सबके प्रीति अबिरल पावनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} जो चहत सुक-सनकादि, सम्भु-बिरञ्चि, मुनि-मन-भावनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} सबहीके सुन्दर मन्दिराजिर, राउ-रङ्क न लखि परै |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.01} नाकेस-दुरलभ भोग लोग करहिं, न मन बिषयनि हरै ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.02} सब रितु सुखप्रद सो पुरी, पावस अति कमनीय |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.02} निरखत मनहिं हरत हठि हरित अवनि रमनीय ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.02} बीरबहूटि बिराजहीं, दादुर-धुनि चहु ओर |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.02} मधुर गरजि घन बरषहिं, सुनि सुनि बोलत मोर ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.02} बोलत जो चातक-मोर, कोकिल-कीर, पारावत घने |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.02} खग बिपुल पाले बालकनि कूजत उड़ात सुहावने ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.02} बकराजि राजति गगन, हरिधनु, तड़ित दस दिसि सोहहीं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.02} नभ-नगरकी सोभा अतुल अवलोकि मुनि-मन मोहहीं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.03} गृह-गृह रचे हिडोलना, महि गच काँच सुढार |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.03} चित्र बिचित्र चहू दिसि परदा फकि-पगार ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.03} सरल बिसाल बिराजहीं बिद्रुम-खम्भ सुजोर |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.03} चारु पाटि पटि पुरटकी झरकत मरकत भौंर ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.03} मरकत भवँर डाँड़ी कनक मनि-जटित दुति जगमगि रही |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.03} पटुली मनहु बिधि निपुनता निज प्रगट करि राखी सही ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.03} बहुरङ्ग लसत बितान मुकुतादाम-सहित मनोहरा |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.03} नव-सुमन-माल-सुगन्ध लोभे मञ्जु गुञ्जत मधुकरा ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.04} झुण्ड-झुण्ड झूलन चलीं गजगामिनि बर नारि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.04} कुसुँभि चीर तनु सोहहीं, भूषन बिबिध सँवारि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.04} पिकबयनी मृगलोचनी सारद ससि सम तुण्ड |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.04} रामसुजस सब गावहीं सुसुर सुसारँग गुण्ड ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.04} सारङ्ग गुण्ड-मलार, सोरठ, सुहव सुघरनि बाजहीं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.04} बहु भाँति तान-तरङ्ग सुनि गन्धरब किन्नर लाजहीं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.04} अति मचत, छूटत कुटिल कच, छबि अधिक सुन्दरि पावहीं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.04} पट उड़त, भूषन खसत, हँसि-हँसि अपर सखी झुलावहीं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.05} फिरि फिरि झूलहिं भामिनी अपनी अपनी बार |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.05} बिबुध-बिमान थकित भए देखत चरित अपार ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.05} बरषि सुमन हरषहिं उर, बरनहिं हरगुन-गाथ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.05} पुनि पुनि प्रभुहि प्रसंसहीं जय जय जानकिनाथ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.05} जय जानकीपति बिसद कीरति सकल-लोक-मलापहा |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.05} सुरबधू देहिं असीस, चिरजिव राम, सुख-सम्पति महा ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.05} पावस समय कछु अवध बरनत सुनि अघौघ नसावहीं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 308.05} रघुबीरके गुनगन नवल नित दास तुलसी गावहीं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.01} दीपमालिका
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.राग} आसावरी
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.01} साँझ समय रघुबीर-पुरीकी सोभा आजु बनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.01} ललित दीपमालिका बिलोकहिं हित करि अवधधनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.02} फटिक-भीत-सिखरन-पर राजति कञ्चन-दीप-अनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.02} जनु अहिनाथ मिलन आयो मनि-सोभित सहसफनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.03} प्रति मन्दिर कलसनिपर भ्राजहिं मनिगन दुति अपनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.03} मानहुँ प्रगटि बिपुल लोहितपुर पठै दिये अवनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.04} घर घर मङ्गलचार एकरस हरषित रङ्क-गनी |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 309.04} तुलसिदास कल कीरति गावहिं, जो कलिमल-समनी ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.01} वसन्त-विहार
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.राग} गौरी
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.01} अवध नगर अति सुन्दर बर सरिताके तीर |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.01} नीति-निपुन नर-दिय सबहिं धरम-धुरन्धर, धीर ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.02} सकल रितुन्ह सुखदायक, तामहँ अधिक बसन्त |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.02} भूप-मौलि-मनिजहँ बस नृपति जानकीकन्त ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.03} बन उपबन नव किसलय, कुसुमित नाना रङ्ग |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.03} बोलत मधुर मुखर खग पिकबर, गुञ्जत भृङ्ग ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.04} समय बिचारि कृपानिधि, देखि द्वार अति भीर |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.04} खेलहु मुदित नारि-नर, बिहँसि कहेउ रघुबीर ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.05} नगर-नारि-नर हरषित सब चले खेलन फागु |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.05} देखि राम छबि अतुलित उमगत उर अनुराग ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.06} स्याम-तमाल-जलदतनु निरमल पीत दुकूल |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.06} अरुन-कञ्ज-दल-लोचन सदा दास अनुकूल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.07} सिर किरीट स्रुति कुण्डल, तिलक मनोहर भाल|
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.07} कुञ्चित केस, कुटिल भ्रू, चितवनि भगत-कृपाल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.08} कल कपोल, सुक नासिक, ललित अधर द्विज जोति |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.08} अरुन कञ्ज महँ जनु जुग पाँति रुचिर गज-मोति ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.09} बर दर-ग्रीव, अमितबल बाहु सुपीन बिसाल |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.09} कङ्कन-हार मनोहर, उरसि लसति बनमाल ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.10} उर भृगु-चरन बिराजत, द्विज-प्रिय चरित पुनीत |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.10} भगत हेतु नर बिग्रह सुरबर गुन-गोतीत ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.11} उदर त्रिरेख मनोहर, सुन्दर नाभि गँभीर |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.11} हाटक-घटित, जटित मनि कटितट रट मञ्जीर ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.12} उरु अरु जानु पीन, मृदु, मरकत खम्भ समान |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.12} नूपुर मुनि-मन मोहत, करत सुकोमन गान ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.13} अरुनबरन पदपङ्कज, नखदुति इंदु-प्रकास |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.13} जनक-सुता-करपल्लव-लालित बिपुल बिलास ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.14} कञ्जकुलिस-धुज-अंकुस-रेख रचन सुभ चारि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.14} जन-मन-मीन हरन कहँ बंसी रची सँवारि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.15} अंग अंग प्रति अतुलित सुषमा बरनि न जाइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.15} एहि सुख मगन होइ मन फिरि नहि अनत लोभाइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.16} खेलत फागु, अवधपति, अनुज-सखा सब सङ्ग |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.16} बरषि सुमन सुर निरखहिं सोभा अमित अनङ्ग ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.17} ताल, मृदङ्ग, झाँझ, डफ बाजहिं पनव-निसान |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.17} सुघर सरस सहनाइन्ह गावहिं समय समान ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.18} बीना-बेनु-मधुर-धुनि सुनि किन्नर-गन्धर्ब |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.18} निज-गुन गरुअ हरुअ अति मानहिं मन तजि गर्ब ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.19} निज-निज अटनि मनोहर गान करहिं पिकबैनि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.19} मनहुँ हिमालय-सिखरनि लसहिं अमर-मृगनैनि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.20} धवल धामतें निकसहिं जहँ तहँ नारि-बरूथ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.20} मानहुँ मथत पयोनिधि बिपुल अपसरा-जूथ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.21} किंसुकबरन सुअंसुक सुषमा सुखनि समेत |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.21} जनु बिधु-निबह रहे करि दामिनि-निकर निकेत ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.22} कुङ्कुम सुरस अबीरनि भरहिं चतुर बर नारि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.22} रितु सुभाय सुठि सोभित देहिं बिबिध बिधि गारि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.23} जो सुख जोग, जाग, जप, अरु तीरथतें दूरि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.23} राम-कृपातें सोइ सुख अवध गलिन्ह रह्यो पूरि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.24} खेलि बसन्त कियो प्रभु मज्जन सरजूनीर |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.24} बिबिध भाँति जाचक जन पाए भूषन चीर ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.25} तुलसिदास तेहि अवसर माँगी भगति अनूप |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 310.25} मृदु मुसुकाइ दीन्हि तब कृपादृष्टि रघुभूप ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.राग} बसन्त
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.01} खेलत बसन्त राजाधिराज | देखत नभ कौतुक सुर-समाज ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.02} सोहैं सखा-अनुज रघुनाथ साथ | झोलिन्ह अबीर, पिचकारि हाथ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.03} बाजहिं मृदङ्ग, डफ, ताल, बेनु | छिरकैं सुगन्ध भरे मलय-रेनु ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.04} उत जुबति-जूथ जानकी सङ्ग |पहिरे पट भूषन सरस रङ्ग ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.05} लिये छरी बेन्त सोन्धैं बिभाग | चाँचरि झूमक कहैं सरसराग ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.06} नूपुर-किङ्किनि-धुनि अति सोहाइ | ललना-गन जब जेहि धरैँ धाइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.07} लोचन आँजहिं फगुआ मनाइ | छाड़हिं नचाइ, हाहा कराइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.08} चढ़े खरनि बिदूषक स्वाँग साजि | करैं कूटि, निपट गई लाज भाजि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.09} नर-नारि परसपर गारि देत | सुनि हँसत राम भाइन समेत ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.10} बरषत प्रसून बर-बिबुध-बृन्द | जय-जय दिनकर-कुल-कुमुदचन्द ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.11} ब्रह्मादि प्रसंसत अवध बास | गावत कलकीरति तुलसिदास ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.02} अयोध्याका आनन्द
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.राग} केदारा
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.02} नगर-रचना सिखनको बिधि तकत बहु बिधिबृन्द |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.02} निपट लागत अगम, ज्यों जलचरहि गमन सुछन्द ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.03} मुदित पुरलोगनि सराहत निरखि सुखमाकन्द |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.03} जिन्हके सुअलि-चख पियत राम-मुखारबिन्द-मरन्द ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.04} मध्य ब्योम बिलम्बि चलत दिनेस-उडुगन-चन्द |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 311.04} रामपुरी बिलोकि तुलसी मिटत सब दुख-द्वन्द ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.01} रामराज्य
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.राग} सोरठ
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.01} पालत राज यों राजा राम धरमधुरीन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.01} सावधान, सुजान, सब दिन रहत नय-लयलीन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.02} स्वान-खग-जति-न्याउ देख्यो आपु बैठि प्रबीन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.02} नीचु हति महिदेव-बालक कियो मीचुबिहीन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.03} भरत ज्यों अनुकूल जग निरुपाधि नेह नवीन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.03} सकल चाहत रामही, ज्यों जल अगाधहि मीन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.04} गाइ राज-समाज जाँचत दास तुलसी दीन |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 312.04} लेहु निज करि, देहु निज-पद-प्रेमपावन पीन ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.01} सीता-वनवास
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.01} सङ्कट-सुकृतको सोचत जानि जिय रघुराउ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.01} सहस द्वादस पञ्चसतमें कछुक है अब आउ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.02} भोग पुनि पितु-आयुको, सोउ किए बनै बनाउ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.02} परिहरे बिनु जानकी नहि और अनघ उपाउ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.03} पालिबे असिधार-ब्रत, प्रिय प्रेम-पाल सुभाउ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.03} होइ हित केहि भाँति, नित सुबिचारु, नहि चित चाउ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.04} निपट असमञ्जसहु बिलसति मुख मनोहरताउ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.04} परम धीर-धुरीन हृदय कि हरष-बिसमय काउ ?||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.05} अनुज-सेवक-सचिव हैं सब सुमति, साध सखाउ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.05} जान कोउ न जानकी बिनु अगम अलख लखाउ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.06} राम जोगवत सीय-मनु, प्रिय-मनहि प्रानप्रियाउ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 313.06} परम पावन प्रेम-परमिति समुझि तुलसी गाउ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 314.01} राम बिचारि कै राखी ठीक दै मन माहिं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 314.01} लोक-बेद-सनेह पालत पल कृपालहि जाहिं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 314.02} प्रियतमा, पति देवता, जिहि उमा रमा सिहाहिं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 314.02} गुरुविनी सुकुमारि सिय तियमनि समुझि सकुचाहिं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 314.03} मेरे ही सुख सुखी, सुख अपनो सपनहूँ नाहिं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 314.03} गेहिनी-गुन-गेहिनी गुन सुमिरि सोच समाहिं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 314.04} राम-सीय-सनेह बरनत अगम सुकबि सकाहिं |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 314.04} रामसीय-रहस्य तुलसी कहत राम-कृपाहिं ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.01} चरचा चरनिसों चरची जानमनि रघुराइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.01} दूत-मुख सुनि लोक-धुनि घर घरनि बूझी आइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.02} प्रिया निज अभिलाष रुचि कहि कहति सिय सकुचाइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.02} तीय-तनयसमेत तापस पूजिहौं बन जाइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.03} जानि करुनासिन्धु भाबी-बिबस सकल सहाइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.03} धीर धरि रघुबीर भोरहि लिए लषन बोलाइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.04} "तात तुरतहि साजि स्यन्दन सीय लेहु चढ़ाइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.04} बालमीकि मुनीस आस्रम आइयहु पहुँचाइ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.05} "भलेहि नाथ, सुहाथ माथे राखि राम-रजाइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 315.05} चले तुलसी पालि सेवक-धरम अवधि अघाइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 316.01} आइ लषन लै सौम्पी सिय मुनीसहि आनि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 316.01} नाइ सिर रहे पाइ आसिष जोरि पङ्कजपानि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 316.02} बालमीकि बिलोकि ब्याकुल लषन गरत गलानि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 316.02} सरबिबद बूझत न, बिधिकी बामता पहिचानि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 316.03} जानि जिय अनुमानही सिय सहस बिधि सनमानि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 316.03} राम सदगुन-धाम-परमिति भई कछुक मलानि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 316.04} दीनबन्धु दयालु देवर देखि अति अकुलानि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 316.04} कहति बचन उदास तुलसीदास त्रिभुवन-रानि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 317.01} तौलों बलि, आपुही कीबी बिनय समुझि सुधारि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 317.01} जौलों हौं सिखि लेउँ बन रिषि-रीति बसि दिन चारि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 317.02} तापसी कहि कहा पठवति नृपनिको मनुहारि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 317.02} बहुरि तिहि बिधि आइ कहिहै साधु कोउ हितकारि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 317.03} लषनलाल कृपाल! निपटहि डारिबी न बिसारि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 317.03} पालबी सब तापसनि ज्यों राजधरम बिचारि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 317.04} सुनत सीता-बचन मोचत सकल लोचन-बारि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 317.04} बालमीकि न सके तुलसी सो सनेह सँभारि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 318.01} सुनि ब्याकुल भए, उतरु कछु कह्यो न जाइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 318.01} जानि जिय बिधि बाम दीन्हों मोहि सरुष सजाइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 318.02} कहत हिय मेरी कठिनई लखि गई प्रीति लजाइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 318.02} आजु अवसर ऐसेहू जौं न चले प्रान बजाइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 318.03} इतहि सीय-सनेह-सङ्कट उतहि राम-रजाइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 318.03} मौनही गहि चरन, गौने सिख-सुआसिष पाइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 318.04} प्रेम-निधि पितुको कहे मैं परुष बचन अघाइ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 318.04} पाप तेहि परिताप तुलसी उचित सहे सिराइ ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.01} गौने मौनही बारहि बारि परि परि पाय |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.01} जात जनु रथ चीर कर लछिमन मगन पछिताय ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.02} असन बिनु बन, बरम बिनु रन, बच्यौ कठिन कुघाय |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.02} दुसह साँसति सहनको हनुमान ज्यायो जाय ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.03} हेतु हौं सियहरनको तब, अबहु भयो सहाय |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.03} होत हठि मोहि दाहिनो दिन दैव दारुन दाय ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.04} तज्यो तनु सङ्ग्राम जेहि लगि गीध जसी जटाय |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.04} ताहि हौं पहुँचाइ कानन चल्यों अवध सुभाय ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.05} घोरहृदय कठोर-करतब सृज्यो हौं बिधि बायँ |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 319.05} दास तुलसी जानि राख्यो कृपानिधि रघुराय ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.01} पुत्रि! न सोचिए आई हौं जनक-गृह जिय जानि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.01} कालिही कल्यान-कौतुक, कुसल तव, कल्यानि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.02} राजरिषि पितु-ससुर प्रभु पति, तू सुमङ्गलखानि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.02} ऐसेहू थल बामता, बड़ि बाम बिधि की बानि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.03} बोलि मुनि कन्या सिखाई प्रीति-गति पहिचानि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.03} आलसिन्हकी देवसरि सिय सेइयहु मन मानि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.04} न्हाइ प्रातहि पूजिबो बट बिटप अभिमत-दानि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.04} सुवन-लाहु, उछाहु दिन दिन, देबि, अनहित-हानि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.05} पार-ताप-बिमोचनी कहि कथा सरस पुरानि |
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 320.05} बालमीकि प्रबोधि तुलसी, गई गरुइ गलानि ||
| + | |
− | {गीता.[उत्त्] 321.01} जबतें जानकी रही रुचिर आस्रम आइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 321.01} गगन, जल, थल बिमल तबतें, सकल मङ्गलदाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 321.02} निरस भूरुह सरस फूलत, फलत अति अधिकाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 321.02} कन्द-मूल, अनेक अंकुर स्वाद सुधा लजाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 321.03} मलय मरुत, मराल-मधुकर-मोर-पिक-समुदाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 321.03} मुदित-मन मृग-बिहग बिहरत बिषम बैर बिहाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 321.04} रहत रबि अनुकूल दिन, ससि रजनि सजनि सुहाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 321.04} सीय सुनि सादर सराहति सखिन्ह भलो मनाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 321.05} मोद बिपिन बिनोद चितवत लेत चितहि चोराइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 321.05} राम बिनु सिय सुखद बन, तुलसी कहै किमि गाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 322.01} लव-कुश-जन्म
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− | {गीता.[उत्त्] 322.01} सुभ दिन, सुभ घरी, नीको नखत, लगन सुहाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 322.01} पूत जाये जानकी द्वै, मुनिबधू, उठीं गाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 322.02} हरषि बरषत सुमन सुर गहगहे बधाए बजाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 322.02} भुवन, कानन, आस्रमनि रहे मोद-मङ्गल छाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 322.03} तेहि मुनिसों बिदा गवनें भोर सो सुख पाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 322.04} मातु-मौसी-बहिनिहूतें, सासुतें अधिकाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 322.04} करहिं तापस-तीय-तनया सीय-हित चित लाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 322.05} किए बिधि-ब्यवहार मुनिबर बिप्रबृन्द बोलाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 322.05} कहत सब, रिषिकृपाको फल भयो आजु अघाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 322.06} सुरुष ऋषि, सुख सुतनिको, सिय-सुखद सकल सहाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 322.06} सूल राम-सनेहको तुलसी न जियतें जाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 323.01} मुनिबर करि छठी कीन्हीं बारहेङ्की रीति |
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− | {गीता.[उत्त्] 323.01} बन-बसन पहिराइ तापस, तोषि पोषे प्रीति ||
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− | {गीता.[उत्त्] 323.02} नामकरन सुअन्नप्रासन बेद बाँधी नीति |
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− | {गीता.[उत्त्] 323.02} समय सब रिषिराज करत समाज साज समीति ||
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− | {गीता.[उत्त्] 323.03} बाल लालहिं, कहहिं करहैं राज सब जग जीति |
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− | {गीता.[उत्त्] 323.03} राम-सिय-सुत, गुर-अनुग्रह, उचित, अचल प्रतीति ||
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− | {गीता.[उत्त्] 323.04} निरखि बाल-बिनोद तुलसी जात बासर बीति |
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− | {गीता.[उत्त्] 323.04} पिय-चरित-चित-चितेरो लिखत नित हित-भीति ||
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− | {गीता.[उत्त्] 324.01} बालक सीयके बिहरत मुदित-मन दोउ भाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 324.01} नाम लव-कुस राम-सिय अनुहरति सुन्दरताइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 324.02} देत मुनि मुनि-सिसु खेलौना, ते लै धरत दुराइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 324.02} खेल खेलत नृप-सिसुन्हके बालबृन्द बोलाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 324.03} भूप-भूषन-बसन-बाहन, राज-साज सजाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 324.03} बरम-चरम, कृपान-सर, धनु-तून लेत बनाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 324.04} दुखी सिय पिय-बिरह तुलसी, सुखी सुत-सुख पाइ |
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− | {गीता.[उत्त्] 324.04} आँच पय उफनात सीञ्चत सलिल ज्यों सकुचाइ ||
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− | {गीता.[उत्त्] 325.01} कैकेयी जौलों जियति रही |
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− | {गीता.[उत्त्] 325.01} तौलों बात मातुसों मुँह भरि भरत न भूलि कही ||
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− | {गीता.[उत्त्] 325.02} मानी राम अधिक जननीतें, जननिहु गँस न गही |
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− | {गीता.[उत्त्] 325.02} सीय-लषन रिपुदवन राम-रुख लखि सबकी निबही ||
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− | {गीता.[उत्त्] 325.03} लोक-बेद-मरजाद दोष-गुन-गति चित चख न चही |
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− | {गीता.[उत्त्] 325.03} तुलसी भरत समुझि सुनि राखी राम-सनेह सही ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.01} रामचरितका उल्लेख
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− | {गीता.[उत्त्] 326.राग} रामकली
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− | {गीता.[उत्त्] 326.01} रघुनाथ तुम्हारे चरित मनोहर गावहिं सकल अवधबासी |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.01} अति उदार अवतार मनुज-बपु धरे ब्रह्म अज अबिनासी ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.02} प्रथम ताड़का हति, सुबाहु बधि, मख राख्यो द्विज, हितकारी |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.02} देखि दुखी अति सिला सापबस रघुपति बिप्रनारि तारी ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.03} सब भूपनको गरब हर्यो, हरि भञ्ज्यो सम्भु-चाप भारी |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.03} जनकसुता समेत आवत गृह परसुराम अति मदहारी ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.04} तात-बचन तजि राज-काज सुर चित्रकूट मुनिबेष धर्यो |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.04} एक नयन कीन्हों सुरपति-सुत, बधि बिराध रिषि-सोक हर्यो ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.05} पञ्चबटी पावन राघव करि सूपनखा कुरूप कीन्हीं |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.05} खर-दूषन संहारि कपटमृग-गीधराज कहँ गति दीन्हीं ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.06} हति कबन्ध, सुग्रीव सखा करि, बेधे ताल, बालि मार्यो |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.06} बानर-रीछ सहाय, अनुज सँग सिन्धु बाँधि जस बिस्तार्यो ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.07} सकुल पुत्र दल सहित दसानन मारि अखिल सुर-दुख टार्यो |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.07} परमसाधु जिय जानि बिभीषन लङ्कापुरी तिलक सार्यो ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.08} सीता अरु लछिमन सँग लीन्हें औरहु जिते दास आए |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.08} नगर निकट बिमान आए, सब नर-नारी देखन धाए ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.09} सिव-बिरञ्चि, सुक-नारिदादि मुनि अस्तुति करत बिमल बानी |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.09} चौदह भुवन चराचर हरषित, आए राम राजधानी ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.10} मिले भरत, जननी, गुर, परिजन चाहत परम अनन्द भरे |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.10} दुसह-बियोग-जनित दारुन दुख रामचरन देखत बिसरे ||
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− | {गीता.[उत्त्] 326.11} बेद-पुरान बिचारि लगन सुभ महाराज अभिषेक कियो |
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− | {गीता.[उत्त्] 326.11} तुलसिदास जिय जानि सुअवसर भगति-दान तब माँगि लियो ||
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