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"किस तरह मिलूँ तुम्हें / पवन करण" के अवतरणों में अंतर
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किस तरह मिलूँ तुम्हें | किस तरह मिलूँ तुम्हें | ||
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क्यों न खाली क्लास रूम में | क्यों न खाली क्लास रूम में | ||
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किसी बेंच के नीचे | किसी बेंच के नीचे | ||
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और पेंसिल की तरह पड़ा | और पेंसिल की तरह पड़ा | ||
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तुम चुपचाप उठाकर | तुम चुपचाप उठाकर | ||
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रख लो मुझे बस्ते में | रख लो मुझे बस्ते में | ||
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क्यों न किसी मेले में | क्यों न किसी मेले में | ||
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और तुम्हारी पसन्द के रंग में | और तुम्हारी पसन्द के रंग में | ||
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रिबन की शक़्ल में दूँ दिखाई | रिबन की शक़्ल में दूँ दिखाई | ||
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और तुम छुपाती हुई अपनी ख़ुशी | और तुम छुपाती हुई अपनी ख़ुशी | ||
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खरीद लो मुझे | खरीद लो मुझे | ||
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या कि कुछ इस तरह मिलूँ | या कि कुछ इस तरह मिलूँ | ||
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जैसे बीच राह में टूटी | जैसे बीच राह में टूटी | ||
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तुम्हारी चप्पल के लिए | तुम्हारी चप्पल के लिए | ||
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बहुत ज़रूरी पिन | बहुत ज़रूरी पिन | ||
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20:32, 31 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
किस तरह मिलूँ तुम्हें
क्यों न खाली क्लास रूम में
किसी बेंच के नीचे
और पेंसिल की तरह पड़ा
तुम चुपचाप उठाकर
रख लो मुझे बस्ते में
क्यों न किसी मेले में
और तुम्हारी पसन्द के रंग में
रिबन की शक़्ल में दूँ दिखाई
और तुम छुपाती हुई अपनी ख़ुशी
खरीद लो मुझे
या कि कुछ इस तरह मिलूँ
जैसे बीच राह में टूटी
तुम्हारी चप्पल के लिए
बहुत ज़रूरी पिन