अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोरख पाण्डेय |संग्रह=जागते रहो सोने वालो / गोरख पाण्डे...) |
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हमारी यादों में छटपटाते हैं | हमारी यादों में छटपटाते हैं | ||
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कारीगर के कटे हाथ | कारीगर के कटे हाथ | ||
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सच पर कटी ज़ुबानें चीखती हैं हमारी यादों में | सच पर कटी ज़ुबानें चीखती हैं हमारी यादों में | ||
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हमारी यादों में तड़पता है | हमारी यादों में तड़पता है | ||
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दीवारों में चिना हुआ | दीवारों में चिना हुआ | ||
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अत्याचारी के साथ लगातार | अत्याचारी के साथ लगातार | ||
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होने वाली मुठभेड़ों से | होने वाली मुठभेड़ों से | ||
− | + | भरे हैं हमारे अनुभव। | |
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यहीं पर | यहीं पर | ||
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एक बूढ़ा माली | एक बूढ़ा माली | ||
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हमारे मृत्युग्रस्त सपनों में | हमारे मृत्युग्रस्त सपनों में | ||
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फूल और उम्मीद | फूल और उम्मीद | ||
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(रचनाकाल : 1980) | (रचनाकाल : 1980) | ||
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22:02, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
हमारी यादों में छटपटाते हैं
कारीगर के कटे हाथ
सच पर कटी ज़ुबानें चीखती हैं हमारी यादों में
हमारी यादों में तड़पता है
दीवारों में चिना हुआ
प्यार।
अत्याचारी के साथ लगातार
होने वाली मुठभेड़ों से
भरे हैं हमारे अनुभव।
यहीं पर
एक बूढ़ा माली
हमारे मृत्युग्रस्त सपनों में
फूल और उम्मीद
रख जाता है।
(रचनाकाल : 1980)