Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
हम उनके प्यार में जगते रहे हैं सारी रात | हम उनके प्यार में जगते रहे हैं सारी रात | ||
− | + | ख़ुद अपने आप को ठगते रहे हैं सारी रात | |
ये क्या हुआ कि सुबह उनकी एक झलक न मिली, | ये क्या हुआ कि सुबह उनकी एक झलक न मिली, | ||
गले से आके जो लगते रहे हैं सारी रात! | गले से आके जो लगते रहे हैं सारी रात! | ||
− | + | धधकके बुझ भी गए हों, हम उनसे अच्छे हैं | |
जो बेजले ही सुलगते रहे हैं सारी रात | जो बेजले ही सुलगते रहे हैं सारी रात | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
कभी तो पायेंगे काग़ज़ गुलाब की रंगत | कभी तो पायेंगे काग़ज़ गुलाब की रंगत | ||
− | हम अपने | + | हम अपने ख़ून से रँगते रहे हैं सारी रात |
− | + | ||
<poem> | <poem> |
02:16, 10 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
हम उनके प्यार में जगते रहे हैं सारी रात
ख़ुद अपने आप को ठगते रहे हैं सारी रात
ये क्या हुआ कि सुबह उनकी एक झलक न मिली,
गले से आके जो लगते रहे हैं सारी रात!
धधकके बुझ भी गए हों, हम उनसे अच्छे हैं
जो बेजले ही सुलगते रहे हैं सारी रात
हज़ार बार जिगर में समा चुके हैं, मगर
वे अजनबी से ही लगते रहे हैं सारी रात
कभी तो पायेंगे काग़ज़ गुलाब की रंगत
हम अपने ख़ून से रँगते रहे हैं सारी रात