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बेलिखे ही उसने जो कुछ लिख दिया, समझे हैं हम | बेलिखे ही उसने जो कुछ लिख दिया, समझे हैं हम | ||
− | प्यार की | + | प्यार की मंज़िल तो है इस बेख़ुदी से दो क़दम |
− | + | सैकड़ों कोसों का जिसको फ़ासिला समझे हैं हम | |
− | आँखों-आँखों में इशारा | + | आँखों-आँखों में इशारा करके आँखें मूँद लीं |
− | + | रुकके दम भर पूछ तो लेते कि क्या समझे हैं हम! | |
देखकर तुझको झुका ली है नज़र उसने, गुलाब! | देखकर तुझको झुका ली है नज़र उसने, गुलाब! |
01:44, 10 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
यों तो उन नज़रों में है जो अनकहा, समझे हैं हम
फिर भी कुछ है इस समझने के सिवा, समझे हैं हम
छोड़ दी सादी जगह ख़त में हमारे नाम पर
बेलिखे ही उसने जो कुछ लिख दिया, समझे हैं हम
प्यार की मंज़िल तो है इस बेख़ुदी से दो क़दम
सैकड़ों कोसों का जिसको फ़ासिला समझे हैं हम
आँखों-आँखों में इशारा करके आँखें मूँद लीं
रुकके दम भर पूछ तो लेते कि क्या समझे हैं हम!
देखकर तुझको झुका ली है नज़र उसने, गुलाब!
हो चुका है ख़त्म पहला सिलसिला, समझे हैं हम!