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झलक रही हैं उन आँखों में शोख़ियाँ कैसी / गुलाब खंडेलवाल
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22:33, 3 जुलाई 2011
ये बीच-बीच में आती हैं बस्तियाँ कैसी!
कोई तो
छिप के
छिपके
सितारों से देखता है हमें
खुली हुई हैं अँधेरे में खिड़कियाँ कैसी!
Vibhajhalani
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