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"अँधेरे अकेले घर में / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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कि कहने को तुम्हें इस | कि कहने को तुम्हें इस | ||
इतने घने अकेले में | इतने घने अकेले में | ||
− | मेरे पास कुछ भी नहीं है | + | मेरे पास कुछ भी नहीं है बात। |
− | क्यों नहीं पहले कभी मैं इतना गूँगा हुआ ? | + | क्यों नहीं पहले कभी मैं इतना गूँगा हुआ? |
क्यों नहीं प्यार के सुध-भूले क्षणों में | क्यों नहीं प्यार के सुध-भूले क्षणों में | ||
मुझे इस तीखे ज्ञान ने छुआ | मुझे इस तीखे ज्ञान ने छुआ | ||
− | कि खो देना | + | कि खो देना तो देना नहीं होता- |
− | भूल जाना और, उत्सर्ग है और बात : | + | भूल जाना और, उत्सर्ग है और बात: |
कि जब तक वाणी हारी नहीं | कि जब तक वाणी हारी नहीं | ||
और वह हार मैंने अपने में पूरी स्वीकारी नहीं, | और वह हार मैंने अपने में पूरी स्वीकारी नहीं, | ||
अपनी भावना, संवेदना भी वारी नहीं- | अपनी भावना, संवेदना भी वारी नहीं- | ||
तब तक वह प्यार भी | तब तक वह प्यार भी | ||
− | निरा संस्कार है,संस्कारी | + | निरा संस्कार है,संस्कारी नहीं। |
हाय, कितनी झीनी ओट में | हाय, कितनी झीनी ओट में | ||
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और मुझे घेरे रही | और मुझे घेरे रही | ||
अँधेरे अकेले घर में | अँधेरे अकेले घर में | ||
− | अँधेरी अकेली | + | अँधेरी अकेली रात। |
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09:38, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
अँधेरे अकेले घर में
अँधेरी अकेली रात ।
तुम्हीं से लुक-छिप कर
आज न जाने कितने दिन बाद
तुम से मेरी मुलाक़ात ।
और इस अकेले सन्नाटे में
उठती है रह-रह कर
एक टीस-सी अकस्मात
कि कहने को तुम्हें इस
इतने घने अकेले में
मेरे पास कुछ भी नहीं है बात।
क्यों नहीं पहले कभी मैं इतना गूँगा हुआ?
क्यों नहीं प्यार के सुध-भूले क्षणों में
मुझे इस तीखे ज्ञान ने छुआ
कि खो देना तो देना नहीं होता-
भूल जाना और, उत्सर्ग है और बात:
कि जब तक वाणी हारी नहीं
और वह हार मैंने अपने में पूरी स्वीकारी नहीं,
अपनी भावना, संवेदना भी वारी नहीं-
तब तक वह प्यार भी
निरा संस्कार है,संस्कारी नहीं।
हाय, कितनी झीनी ओट में
झरते रहे आलोक के सोते अवदात-
और मुझे घेरे रही
अँधेरे अकेले घर में
अँधेरी अकेली रात।