{{KKPrasiddhRachna}}
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<poem>भारति, जय, विजय करे<br>कनक - शस्य - कमल धरे!<br><br>
लंका पदतल - शतदल<br>गर्जितोर्मि सागर - जल<br>धोता शुचि चरण - युगल<br>स्तव कर बहु अर्थ भरे!<br><br>
तरु-तण वन - लता - वसन<br>अंचल में खचित सुमन,<br>गंगा ज्योतिर्जल - कण<br>धवल - धार हार लगे!<br><br>
मुकुट शुभ्र हिम - तुषार<br>प्राण प्रणव ओंकार,<br>ध्वनित दिशाएँ उदार,<br>शतमुख - शतरव - मुखरे!<br><br/poem>