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कौन जाने किस दिशा में | कौन जाने किस दिशा में | ||
− | जा रहे | + | जा रहे हैं इस तरह हम |
जिधर दिखता हरा चारा | जिधर दिखता हरा चारा | ||
उधर मुड़ता प्रगति का क्रम | उधर मुड़ता प्रगति का क्रम | ||
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देखते सुनते समझते | देखते सुनते समझते | ||
− | कह | + | कह नहीं पाते मगर कुछ |
− | सह रहे | + | सह रहे हैं एक दिग्भ्रम |
भूख प्यास थकान सब कुछ | भूख प्यास थकान सब कुछ | ||
08:26, 5 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
यह समय की बैलगाड़ी
सो रहा है मस्त गाड़ीवान
पीकर आज ताड़ी ।
राह के अभ्यस्त
दोनों बैल आगे बढ़ रहे हैं
वृक्ष पर बैठे परिन्दे
ग़र्म ख़बरें पढ़ रहे हैं
रात भर जलकर बुझी है
लालटेन टँगी पिछाड़ी ।
कौन जाने किस दिशा में
जा रहे हैं इस तरह हम
जिधर दिखता हरा चारा
उधर मुड़ता प्रगति का क्रम
बज रही हैं घंटियाँ भी
कंठ मे बाँधी अगाड़ी ।
देखते सुनते समझते
कह नहीं पाते मगर कुछ
सह रहे हैं एक दिग्भ्रम
भूख प्यास थकान सब कुछ
इस समय का गीत गाता
एक चरवाहा अनाड़ी।