भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिनखपणो / जितेन्द्र सोनी

49 bytes removed, 05:34, 16 अक्टूबर 2013
|संग्रह=
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
 सलीम !
अब क्यूं नीं मांगै
थारी रुखसाना
म्हारै घरां
तीज-तिंवार
रंधियोड़ी खीर !
क्यूं नीं मन करै
मांग ल्ये
म्हारो रामू
थारी ईद री सिवइयां !
अब क्यूं नीं करै
रामू अर रुखसाना री मां
भींत रै दोन्यूं कानी
ऊभी हुय'र
घरबिद री बातां !
क्यूं म्हारै घर री आरती
अर थारै घर री नमाज
घोळै कानां मांय सीसो !
अब कद कूद'र जावैला
खेलण सारू
रामू अर रुखसाना
अक -दूजै रे घरां !
क्यूं कटग्या सलीम
अब आपां इता
अक - दूजै सूं !बता सलीम बता ,
आपणै घरां बिचली भींत
मोटी अर ऊँची हुगी
का सलीम अर स्याम रो
मिनखपणो छोटो ? 
</Poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,137
edits