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"शहर जंगल / अरविन्द श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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लपलपाते छुरे का वह बन सकता है शिकार | लपलपाते छुरे का वह बन सकता है शिकार | ||
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उसके जिस्म पर चोट के और | उसके जिस्म पर चोट के और | ||
नीचे पत्थर पर | नीचे पत्थर पर | ||
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उसने गुत्थमगुत्थी-सा प्रयास छोड़ दिया है | उसने गुत्थमगुत्थी-सा प्रयास छोड़ दिया है | ||
उसकी आँखें आँसू से लबालब हैं | उसकी आँखें आँसू से लबालब हैं | ||
वह तलाश रहा है किसी मददगार को | वह तलाश रहा है किसी मददगार को | ||
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पशु की मानिंद | पशु की मानिंद | ||
उनकी मंशाएँ ठीक नहीं लगतीं | उनकी मंशाएँ ठीक नहीं लगतीं | ||
चाहता हूँ मैं उसे बचाना | चाहता हूँ मैं उसे बचाना | ||
− | पास खडे़ | + | पास खडे़ पुलिसवाले की गुरेरती आँखें |
− | देख रही हैं मुझे! | + | देख रही हैं मुझे ! |
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23:50, 14 जून 2012 के समय का अवतरण
उसकी साँसे गिरवी पड़ी हैं मौत के घर
पलक झपकते किसी भी वक़्त
लपलपाते छुरे का वह बन सकता है शिकार
पिछले दंगे में बच गया था वह
अभी उसने रोटी चुराई है
उसके जिस्म पर चोट के और
नीचे पत्थर पर
ख़ून के ताज़े निशान हैं
उसने गुत्थमगुत्थी-सा प्रयास छोड़ दिया है
उसकी आँखें आँसू से लबालब हैं
वह तलाश रहा है किसी मददगार को
कुछ वहशियों ने पकड़ रखा है उसे
पशु की मानिंद
उनकी मंशाएँ ठीक नहीं लगतीं
चाहता हूँ मैं उसे बचाना
पास खडे़ पुलिसवाले की गुरेरती आँखें
देख रही हैं मुझे !