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"अभिधा में नहीं / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर

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व्यंजना में कहती है वह
 
व्यंजना में कहती है वह
 
कभी लक्षणा में
 
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अभिधा में नहीं लेकिन
 
अभिधा में नहीं लेकिन
कभी
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कोई अदालत है प्रेम जैसे
 
कोई अदालत है प्रेम जैसे
कबूल अभिधा में जो
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क़बूल अभिधा में जो
कर लिया
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                  कर लिया
--सजा से बचेगी कैसे!
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—सज़ा से बचेगी कैसे !
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15 अप्रैल 2010
 
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14:27, 26 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

जो कुछ कहना हो उसे
—ख़ुद से भी चाहे—
व्यंजना में कहती है वह
कभी लक्षणा में
अभिधा में नहीं लेकिन
                     कभी

कोई अदालत है प्रेम जैसे
क़बूल अभिधा में जो
                   कर लिया
—सज़ा से बचेगी कैसे !

15 अप्रैल 2010