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"किसको कौन उबारे! / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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दिन-भर देह गलाना | दिन-भर देह गलाना | ||
− | + | तीन रुपैया | |
+ | मिले मजूरी | ||
नौ की आग बुझाना | नौ की आग बुझाना | ||
− | + | अलग-अलग है | |
− | + | रामकहानी | |
+ | टूटे हुए शिकारे! | ||
− | बढ़ती जाती रोज उधारी | + | बढ़ती जाती |
+ | रोज उधारी | ||
ले-दे काम चलाना | ले-दे काम चलाना | ||
− | रोज-रोज झोपड़ पर अपने | + | रोज-रोज |
+ | झोपड़ पर अपने | ||
नए तगादे आना | नए तगादे आना | ||
− | + | घात सिखाई है | |
− | किसको कौन उबारे | + | तंगी ने |
+ | किसको कौन उबारे | ||
− | + | भरा जलाशय | |
− | + | जो दिखता है | |
− | + | ||
केवल बातें घोले | केवल बातें घोले | ||
+ | प्यासा तोड़ दिया | ||
+ | करता दम | ||
+ | मुख को खोले-खोले | ||
− | + | अपने स्वप्न, भयावह | |
− | + | कितने | |
+ | उनके सुखद सहारे | ||
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18:33, 11 मार्च 2012 के समय का अवतरण
बिना नाव के
माझी देखे
मैंने नदी किनारे
इनके-उनके
ताने सुनना
दिन-भर देह गलाना
तीन रुपैया
मिले मजूरी
नौ की आग बुझाना
अलग-अलग है
रामकहानी
टूटे हुए शिकारे!
बढ़ती जाती
रोज उधारी
ले-दे काम चलाना
रोज-रोज
झोपड़ पर अपने
नए तगादे आना
घात सिखाई है
तंगी ने
किसको कौन उबारे
भरा जलाशय
जो दिखता है
केवल बातें घोले
प्यासा तोड़ दिया
करता दम
मुख को खोले-खोले
अपने स्वप्न, भयावह
कितने
उनके सुखद सहारे