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कविता कोनी
 
फाङ’र धरती री कूख
 
फाङ’र धरती री कूख
 
चाण’चक उपङ्‍यो भंफोड.!
 
चाण’चक उपङ्‍यो भंफोड.!
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कींकर कम हुवै
 
कींकर कम हुवै
 
सिरजणहार रै सिरजण सूं
 
सिरजणहार रै सिरजण सूं
कवि रो रचाव.? </poem>
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कवि रो रचाव.?
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21:00, 11 जून 2017 के समय का अवतरण

कविता कोनी
फाङ’र धरती री कूख
चाण’चक उपङ्‍यो भंफोड.!
कविता कोनी
खींप री खिंपोळी में
पळता भूंडिया
जका
बगत-बेगत
उड। जावै
अचपळी पून रो
पकड। बां’वङो.!
नीं है कविता
खेत बिचाळै
खङ्‍यो अङवो
जको
ना खावै ना खावणद्‍यै।!
कविता सिरजण है
जीवण रो!
अनुभव री खात में
सबदां रा बीज भरै
नूंवीं-नकोर आंख्यां में
सुपनां रा
निरवाळा रंग।
अब बता-
कींकर कम हुवै
सिरजणहार रै सिरजण सूं
कवि रो रचाव.?