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"करवा चौथ / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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करवा चौथ<br />
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|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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बदलते योग<br />
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करवा चौथ
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जानता है सारा समाज<br />
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जिसे करवा चौथ के नाम से  
उस के अस्तित्व को<br />
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जानता है सारा समाज
उस के नारित्व को<br />
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उस के खुद के सरोकारों को<br />
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इस दुनिया की कल्पना ही व्यर्थ है <br />
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उस के अस्तित्व को
दे कर भी <br />
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उस के नारित्व को
क्या देंगे <br />
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उस के खुद के सरोकारों को
हम उसे <br />
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उस के गिर्द घिरी दीवारों को
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हे ईश्वर हमें इतना तो समर्थ कर<br />
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कि हम <br />
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इस दुनिया की कल्पना ही व्यर्थ है  
दे सकें <br />
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उसे <br />
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उस के हिस्से की साँसें<br />
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हे ईश्वर हमें इतना तो समर्थ कर
उस के हिस्से की सोच<br />
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कि हम  
उस के हिस्से की अभिव्यक्ति<br />
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दे सकें  
आसक्ति से कहीं आगे बढ़ कर......................<br />
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उसे  
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उस के हिस्से की ज़मीन
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उस के हिस्से की अनुभूतियाँ
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उस के हिस्से की साँसें
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उस के हिस्से की सोच
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उस के हिस्से की अभिव्यक्ति
 +
आसक्ति से कहीं आगे बढ़ कर......................
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17:55, 30 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

करवा चौथ
बदलता संसार
बदलता व्यवहार
बदलते सरोकार
बदलते संस्कार
बदलते लोग
बदलते योग
बदलते समीकरण
बदलते अनुकरण

बदलता सब कुछ
पर नहीं बदलता
नारी का सुहाग के प्रति समर्पण
साल दर साल निभाती है वो रिवाज
जिसे करवा चौथ के नाम से
जानता है सारा समाज

इस बाबत
बहुत कुछ शब्दों में
बहुत कुछ कहने से अच्छा होगा
हम समझें - स्वीकारें
उस के अस्तित्व को
उस के नारित्व को
उस के खुद के सरोकारों को
उस के गिर्द घिरी दीवारों को

जिस के बिना
इस दुनिया की कल्पना ही व्यर्थ है
दे कर भी
क्या देंगे
हम उसे

हे ईश्वर हमें इतना तो समर्थ कर
कि हम
दे सकें
उसे
उस के हिस्से की ज़मीन
उस के हिस्से की अनुभूतियाँ
उस के हिस्से की साँसें
उस के हिस्से की सोच
उस के हिस्से की अभिव्यक्ति
आसक्ति से कहीं आगे बढ़ कर......................