(नया पृष्ठ: खा जाएगा गच्चा प्यारे ख़ुद को ज़रा सम्हाल काला नहीं दाल में भाई क…) |
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− | खा जाएगा गच्चा प्यारे ख़ुद को ज़रा सम्हाल | + | {{KKGlobal}} |
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+ | |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' | ||
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+ | <poem>खा जाएगा गच्चा प्यारे ख़ुद को ज़रा सम्हाल | ||
काला नहीं दाल में भाई काली पूरी दाल | काला नहीं दाल में भाई काली पूरी दाल | ||
− | + | ठन ठन गोपाल | |
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लड़ना ही था तो लड़ लेते काहे भागे थाने | लड़ना ही था तो लड़ लेते काहे भागे थाने | ||
मुंशी और दरोग़ा ने मिलकर रसगुल्ले छाने | मुंशी और दरोग़ा ने मिलकर रसगुल्ले छाने | ||
दोनों की जेबों के मुर्ग़े अच्छे हुए हलाल | दोनों की जेबों के मुर्ग़े अच्छे हुए हलाल | ||
− | + | ठन ठन गोपाल | |
खा जाएगा गच्चा .................. | खा जाएगा गच्चा .................. | ||
काम कराना है तो थोड़ा खर्चा-पानी कर दे | काम कराना है तो थोड़ा खर्चा-पानी कर दे | ||
चपरासी के हाथों में भी जाकर सौ का धर दे | चपरासी के हाथों में भी जाकर सौ का धर दे | ||
वरना फ़ाइल दफ़्तर में घूमेंगी सालों-साल | वरना फ़ाइल दफ़्तर में घूमेंगी सालों-साल | ||
− | + | ठन ठन गोपाल | |
खा जाएगा गच्चा ...................... | खा जाएगा गच्चा ...................... | ||
क्या अपनापन कैसी यारी कैसी रिश्तेदारी | क्या अपनापन कैसी यारी कैसी रिश्तेदारी | ||
चाँदी की जूती दुनिया में पड़ती सब पे भारी | चाँदी की जूती दुनिया में पड़ती सब पे भारी | ||
पान खिलाओ तो मुंह लाल वरना आँखें लाल | पान खिलाओ तो मुंह लाल वरना आँखें लाल | ||
− | + | ठन ठन गोपाल | |
खा जाएगा गच्चा ...................... | खा जाएगा गच्चा ...................... | ||
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सच्चे आँसू जैसे ही थे वो घड़ियाली आँसू | सच्चे आँसू जैसे ही थे वो घड़ियाली आँसू | ||
दर्जन भर से ज़्यादा गीले कर डाले रूमाल | दर्जन भर से ज़्यादा गीले कर डाले रूमाल | ||
− | + | ठन ठन गोपाल | |
खा जाएगा गच्चा ........................ | खा जाएगा गच्चा ........................ | ||
सबको लगा यहाँ पर यारो हाई जंप का चश्का | सबको लगा यहाँ पर यारो हाई जंप का चश्का | ||
दरवाजे़ पर खड़ा भिखारी माँग रहा है दस का | दरवाजे़ पर खड़ा भिखारी माँग रहा है दस का | ||
अब क्या होगा पूछ रहा है विक्रम से बेताल | अब क्या होगा पूछ रहा है विक्रम से बेताल | ||
− | + | ठन ठन गोपाल | |
खा जाएगा गच्चा ........................ | खा जाएगा गच्चा ........................ | ||
+ | </poem> |
17:32, 5 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
खा जाएगा गच्चा प्यारे ख़ुद को ज़रा सम्हाल
काला नहीं दाल में भाई काली पूरी दाल
ठन ठन गोपाल
लड़ना ही था तो लड़ लेते काहे भागे थाने
मुंशी और दरोग़ा ने मिलकर रसगुल्ले छाने
दोनों की जेबों के मुर्ग़े अच्छे हुए हलाल
ठन ठन गोपाल
खा जाएगा गच्चा ..................
काम कराना है तो थोड़ा खर्चा-पानी कर दे
चपरासी के हाथों में भी जाकर सौ का धर दे
वरना फ़ाइल दफ़्तर में घूमेंगी सालों-साल
ठन ठन गोपाल
खा जाएगा गच्चा ......................
क्या अपनापन कैसी यारी कैसी रिश्तेदारी
चाँदी की जूती दुनिया में पड़ती सब पे भारी
पान खिलाओ तो मुंह लाल वरना आँखें लाल
ठन ठन गोपाल
खा जाएगा गच्चा ......................
नेताजी ने करूणा का नाटक खेला क्या धाँसू
सच्चे आँसू जैसे ही थे वो घड़ियाली आँसू
दर्जन भर से ज़्यादा गीले कर डाले रूमाल
ठन ठन गोपाल
खा जाएगा गच्चा ........................
सबको लगा यहाँ पर यारो हाई जंप का चश्का
दरवाजे़ पर खड़ा भिखारी माँग रहा है दस का
अब क्या होगा पूछ रहा है विक्रम से बेताल
ठन ठन गोपाल
खा जाएगा गच्चा ........................