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"कैटवाक / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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जेठ-दुपहरी चिड़िया रानी
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जेठ-दुपहरी  
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चिड़िया रानी
 
सुना रही है फाग
 
सुना रही है फाग
  
कैटवाक करती सड़कों पर
+
कैटवाक  
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करती सड़कों पर
 
पढ़ी-पढ़ाई चिड़िया रानी
 
पढ़ी-पढ़ाई चिड़िया रानी
उघरी हुई देह से जादू
+
उघरी हुई देह के जादू-
पलछिन करती चिड़िया रानी
+
से इतराई  चिड़िया रानी
  
पॉप धुनों पर गाती रहती
+
पॉप धुनों पर  
हरदम दीपक राग
+
थिरके तन-मन
 +
गाये दीपक राग
  
बिना परों के उड़ती-फिरती
+
पंख लगाकार
ताक रहे तारे ललचाए
+
उड़ती बदली
हाथ जोड़कर कुआँ खड़ा है
+
देख रहे सब है मुँह बाए
पानी लेकर बदरा आए
+
रेगिस्तान खड़े राहों में
 +
कोई उनकी प्यास बुझाए
  
जब चाहे तब सींचा करती
+
जब चाहे तब  
अपने मन का बाग
+
सींचा करती
 +
उनके मन का बाग़
  
कितने उलझे दृश्य-कथा में
+
कितनी उलझी
कुछ द्विअर्थी संवादों के
+
दृश्य-कथा है
अनजानी मस्ती में खोए
+
सम्मोहक संवादों में  
आकर्षण झूठे वादों के
+
कागज़ के फूलों-सी-सीरत
 +
छिपी हुई पक्के वादों में
  
पल भर में बरसाती पानी
+
लाख भवन के
पल भर में है आग
+
आकर्षण में  
 +
आखिर लगती आग
 
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08:07, 18 मार्च 2012 के समय का अवतरण

जेठ-दुपहरी
चिड़िया रानी
सुना रही है फाग

कैटवाक
करती सड़कों पर
पढ़ी-पढ़ाई चिड़िया रानी
उघरी हुई देह के जादू-
से इतराई चिड़िया रानी

पॉप धुनों पर
थिरके तन-मन
गाये दीपक राग

पंख लगाकार
उड़ती बदली
देख रहे सब है मुँह बाए
रेगिस्तान खड़े राहों में
कोई उनकी प्यास बुझाए

जब चाहे तब
सींचा करती
उनके मन का बाग़

कितनी उलझी
दृश्य-कथा है
सम्मोहक संवादों में
कागज़ के फूलों-सी-सीरत
छिपी हुई पक्के वादों में

लाख भवन के
आकर्षण में
आखिर लगती आग