Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दाग़ देहलवी }} आफत की शोख़ियां है तुम्हारी निगाह में... ...) |
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मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में.. | मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में.. | ||
+ | वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं | ||
+ | मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में.. | ||
− | आती है बात बात मुझे याद बार बार | + | आती है बात बात मुझे याद बार बार |
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कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में.. | कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में.. | ||
+ | इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर | ||
+ | जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में | ||
− | मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे | + | मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे |
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02:02, 27 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
आफत की शोख़ियां है तुम्हारी निगाह में
मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में..
वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं
मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में..
आती है बात बात मुझे याद बार बार
कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में..
इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर
जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में
मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे
ऐ दाग़ तुम तो बैठ गये एक आह में....