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इस अंचल की एक इंच भूमि भी  
 
इस अंचल की एक इंच भूमि भी  
 
 
ऎसी नहीं कि जहाँ होकर गुज़री न हो
 
ऎसी नहीं कि जहाँ होकर गुज़री न हो
 
 
यह नदी
 
यह नदी
 
  
 
पर क्रोध नहीं शोक है मुझे कि
 
पर क्रोध नहीं शोक है मुझे कि
 
  
 
बार बार जो बदलती रही रास्ता
 
बार बार जो बदलती रही रास्ता
 
 
बार बार जो पोंछती रही अपने ही छाप
 
बार बार जो पोंछती रही अपने ही छाप
 
 
जो एक पल कभी बैठी नहीं थिर
 
जो एक पल कभी बैठी नहीं थिर
 
 
पा न सकी वो रास्त अब तक
 
पा न सकी वो रास्त अब तक
 
 
जिसे ढूँढती फिरी सारी धरती उकटेर ।
 
जिसे ढूँढती फिरी सारी धरती उकटेर ।
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13:22, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

इस अंचल की एक इंच भूमि भी
ऎसी नहीं कि जहाँ होकर गुज़री न हो
यह नदी

पर क्रोध नहीं शोक है मुझे कि

बार बार जो बदलती रही रास्ता
बार बार जो पोंछती रही अपने ही छाप
जो एक पल कभी बैठी नहीं थिर
पा न सकी वो रास्त अब तक
जिसे ढूँढती फिरी सारी धरती उकटेर ।