"यहीं कोई नदी होती / ओम निश्चल" के अवतरणों में अंतर
Om nishchal (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम निश्चल |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> तुम्हारे संग सोन…) |
Om nishchal (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
बसाते हम क्षितिज की छॉंव में | बसाते हम क्षितिज की छॉंव में | ||
कोई बसेरा-सा | कोई बसेरा-सा | ||
− | + | कहीं सरसों खिली होती | |
कहीं फूली मटर होती | कहीं फूली मटर होती | ||
यहीं कोई भँवर होता | यहीं कोई भँवर होता | ||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
कि जैसे गॉंव की बगिया में | कि जैसे गॉंव की बगिया में | ||
कोयल गीत गाती हो | कोयल गीत गाती हो | ||
− | उनींदे | + | उनींदे स्वप्न के परचम |
फहरते रोज नींदों में | फहरते रोज नींदों में | ||
तुम्हारी सॉंवली सूरत | तुम्हारी सॉंवली सूरत | ||
बगल में मुस्काराती हो | बगल में मुस्काराती हो | ||
− | + | तुम्हांरे साथ इक लंबे सफर पर फिर गुज़रना हो। | |
− | भटकते | + | भटकते चित्त को विश्वास का |
एक ठौर मिल जाए | एक ठौर मिल जाए | ||
मुहब्बत के चरागों को | मुहब्बत के चरागों को |
23:02, 19 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
तुम्हारे संग सोना हो
तुम्हारे संग जगना हो
कुटी हो प्यार की कोई
कि जिसमें संग रहना हो
कही जो अनकही बातें
तुम्हारे संग करनी हों
तुम्हारे संग जीना हो
तुम्हारे संग मरना हो।
यहीं होता कहीं पर
गॉंव अपना एक छोटा-सा
बसाते हम क्षितिज की छॉंव में
कोई बसेरा-सा
कहीं सरसों खिली होती
कहीं फूली मटर होती
यहीं कोई भँवर होता
यहीं कोई नदी होती
जहॉं तक दृष्टि जाती खिलखिलाता एक झरना हो।
बरसता मेह सावन में
हवा यों मुस्कराती हो
कि जैसे गॉंव की बगिया में
कोयल गीत गाती हो
उनींदे स्वप्न के परचम
फहरते रोज नींदों में
तुम्हारी सॉंवली सूरत
बगल में मुस्काराती हो
तुम्हांरे साथ इक लंबे सफर पर फिर गुज़रना हो।
भटकते चित्त को विश्वास का
एक ठौर मिल जाए
मुहब्बत के चरागों को
खुदा का नूर मिल जाए,
तुम्हारी चितवनों से झॉंकती
कोई नदी उन्मन
हमारा मन अयोध्या हो
तुम्हारी देह वृन्दावन
समय की सीढ़ियों पर साथ चढ़ना हो उतरना हो।