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"दुख / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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13:20, 21 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण

एक व्यर्थ होता दुख

एक हाय-हाय फँसी हुई दिल में

मृत्यु के नाख़ून गड़ते हैं

कहीं चुभती फाँस तीखी


जीवन मुझे भूला नहीं है

वह अवकाश में है

कहता--

लो, भरो मुझे

जैसे मैं

भरता हूँ दुख को ।