भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितनी सुंदर हो जाती हो / पद्मजा शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(''''(सुलोचना रांगेय राघव के लिए)''' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''(सुलोचना रांगेय राघव के लिए)'''
 
 
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
पंक्ति 8: पंक्ति 6:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
+
'''(सुलोचना रांगेय राघव के लिए)'''
  
 
नदी ने बहना, फूलों ने खिलना
 
नदी ने बहना, फूलों ने खिलना

16:12, 15 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

(सुलोचना रांगेय राघव के लिए)

नदी ने बहना, फूलों ने खिलना
सूरज ने उगना तुम से सीखा है

तुम्हें नहीं पता जब तुम हँसती हो
भूल जाती हैं चिड़ियाँ चहकना
शामें ढलना, बादल बरसना

खिलखिलाती हो कभी खुद में खो जाती हो
तब तुम कितनी सुंदर हो जाती हो

यही संुदरता हरियाली है
बच्चे की मुस्कान, पंछियों की उड़ान है

क्या तुम जानती हो
यह उड़ान तुम हो
और वह असीम आसमान भी
तुम ही हो
सुलोचना !