"अक्कड़ मक्कड़ / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
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दोनों मूरख, दोनों अक्खड़, | दोनों मूरख, दोनों अक्खड़, | ||
हाट से लौटे, ठाठ से लौटे, | हाट से लौटे, ठाठ से लौटे, | ||
− | एक साथ एक बाट से | + | एक साथ एक बाट से लौटे। |
बात-बात में बात ठन गयी, | बात-बात में बात ठन गयी, | ||
− | बांह उठीं और मूछें तन | + | बांह उठीं और मूछें तन गयीं। |
इसने उसकी गर्दन भींची, | इसने उसकी गर्दन भींची, | ||
− | उसने इसकी दाढी | + | उसने इसकी दाढी खींची। |
अब वह जीता, अब यह जीता; | अब वह जीता, अब यह जीता; | ||
दोनों का बढ चला फ़जीता; | दोनों का बढ चला फ़जीता; | ||
लोग तमाशाई जो ठहरे | लोग तमाशाई जो ठहरे | ||
− | सबके खिले हुए थे चेहरे ! | + | सबके खिले हुए थे चेहरे! |
मगर एक कोई था फक्कड़, | मगर एक कोई था फक्कड़, | ||
मन का राजा कर्रा - कक्कड़; | मन का राजा कर्रा - कक्कड़; | ||
बढा भीड़ को चीर-चार कर | बढा भीड़ को चीर-चार कर | ||
− | बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ | + | बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर। |
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़, | अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़, | ||
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़, | दोनों मूरख, दोनों अक्खड़, | ||
गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा, | गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा, | ||
− | सही बात पर झुकना पड़ा ! | + | सही बात पर झुकना पड़ा! |
उसने कहा सधी वाणी में, | उसने कहा सधी वाणी में, | ||
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आफ़त का शैतान खड़ा है, | आफ़त का शैतान खड़ा है, | ||
ताकत ऐसे ही मत खोओ, | ताकत ऐसे ही मत खोओ, | ||
− | चलो भाई चारे को | + | चलो भाई चारे को बोओ। |
सुनी मूर्खों ने जब यह वाणी | सुनी मूर्खों ने जब यह वाणी | ||
दोनों जैसे पानी-पानी | दोनों जैसे पानी-पानी | ||
लड़ना छोड़ा अलग हट गए | लड़ना छोड़ा अलग हट गए | ||
− | लोग शर्म से गले छट | + | लोग शर्म से गले छट गए। |
सबकों नाहक लड़ना अखरा | सबकों नाहक लड़ना अखरा | ||
पंक्ति 52: | पंक्ति 52: | ||
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़ | अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़ | ||
− | दोनों मूरख, दोनों | + | दोनों मूरख, दोनों अक्खड़। |
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14:26, 8 मई 2015 के समय का अवतरण
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़,
हाट से लौटे, ठाठ से लौटे,
एक साथ एक बाट से लौटे।
बात-बात में बात ठन गयी,
बांह उठीं और मूछें तन गयीं।
इसने उसकी गर्दन भींची,
उसने इसकी दाढी खींची।
अब वह जीता, अब यह जीता;
दोनों का बढ चला फ़जीता;
लोग तमाशाई जो ठहरे
सबके खिले हुए थे चेहरे!
मगर एक कोई था फक्कड़,
मन का राजा कर्रा - कक्कड़;
बढा भीड़ को चीर-चार कर
बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर।
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़,
गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा,
सही बात पर झुकना पड़ा!
उसने कहा सधी वाणी में,
डूबो चुल्लू भर पानी में;
ताकत लड़ने में मत खोओ
चलो भाई चारे को बोओ!
खाली सब मैदान पड़ा है,
आफ़त का शैतान खड़ा है,
ताकत ऐसे ही मत खोओ,
चलो भाई चारे को बोओ।
सुनी मूर्खों ने जब यह वाणी
दोनों जैसे पानी-पानी
लड़ना छोड़ा अलग हट गए
लोग शर्म से गले छट गए।
सबकों नाहक लड़ना अखरा
ताकत भूल गई तब नखरा
गले मिले तब अक्कड़-बक्कड़
खत्म हो गया तब धूल में धक्कड़
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़।