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"लहर1 / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ?
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जब सावन घन सघन बरसते
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इन आँखों की छाया भर थे 
  
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सुरधनु रंजित नवजलधर से-
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भरे क्षितिज व्यापी अंबर से
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हरित कूल युग मधुर अधर थे 
  
वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ?<br>
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प्राण पपीहे के स्वर वाली  
जब सावन घन सघन बरसते<br>
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बरस रही थी जब हरियाली  
इन आँखों की छाया भर थे<br><br>
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प्राण पपीहे के स्वर वाली<br>
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बरस रही थी जब हरियाली<br>
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जो मदमाते गंध विधुर थे<br><br>
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नील मेघ पट पर वह विरला<br>
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खिल उठते वे रूप मधुर थे<br><br>
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खिल उठते वे रूप मधुर थे
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00:32, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ?
जब सावन घन सघन बरसते
इन आँखों की छाया भर थे

सुरधनु रंजित नवजलधर से-
भरे क्षितिज व्यापी अंबर से
मिले चूमते जब सरिता के
हरित कूल युग मधुर अधर थे

प्राण पपीहे के स्वर वाली
बरस रही थी जब हरियाली
रस जलकन मालती मुकुल से
जो मदमाते गंध विधुर थे

चित्र खींचती थी जब चपला
नील मेघ पट पर वह विरला
मेरी जीवन स्मृति के जिसमें
खिल उठते वे रूप मधुर थे