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"डरपत मन मोरा / सुधीर सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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राम जी !  
 
राम जी !  
 
आकाश में जब भी गरजते हैं मेघ,  
 
आकाश में जब भी गरजते हैं मेघ,  
कड़कती हैं बिजलियां
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कड़कती हैं बिजलियाँ
 
मेरा भी मन डरता है
 
मेरा भी मन डरता है
 
ठीक तुम्हारी तरह
 
ठीक तुम्हारी तरह
प्रिया से दूर हूं मैं
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प्रिया से दूर हूँ मैं
इंद्रप्रस्थ में एकाकी.
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इंद्रप्रस्थ में एकाकी
 
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12:51, 8 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

सुनो,
राम जी !
आकाश में जब भी गरजते हैं मेघ,
कड़कती हैं बिजलियाँ
मेरा भी मन डरता है
ठीक तुम्हारी तरह
प्रिया से दूर हूँ मैं
इंद्रप्रस्थ में एकाकी